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अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर एक बहुत अच्छी खबर मिली है। बिजली और खनन क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन से देश में अप्रैल 2022 के दौरान औद्योगिक उत्पादन में 7.1 फीसदी की बढ़ौतरी हुई है

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर एक बहुत अच्छी खबर मिली है। बिजली और खनन क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन से देश में अप्रैल 2022 के दौरान औद्योगिक उत्पादन में 7.1 फीसदी की बढ़ौतरी हुई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के पहले महीने में विनिर्माण क्षेत्र में 6.3 फीसदी की बढ़ौतरी दर्ज की गई थी। देश के औद्योगिक उत्पादन में यह बढ़ौतरी पिछले आठ महीनों में सबसे अधिक ग्रोथ रेट है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर की वजह से पिछले साल के इस महीने में बढ़ौतरी दर का विश्लेेषण करें तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हुआ है। औद्योगिक उत्पादन में बढ़ौतरी को इंडैक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के जरिये ही मापा जाता है। आंकड़ों के अनुसार समीक्षाधीन महीनों में बिजली का उत्पादन 11.8 फीसदी, खनन उत्पादन 8 फीसदी, पूंजीगत सामान के मामले में 14.7 फीसदी, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं, मध्यावर्ती वस्तुओं, बुनियादी ढांचा एवं निर्माण वस्तुओं और उपभोक्ता गैर टिकाऊ क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय बढ़ौतरी हुई। 
कोरोना महामारी के चलते लाॅकडाउन के दौरान औद्योगिक उत्पादन में काफी गिरावट आई थी। बदले हुए वैश्विक, आर्थिक और भूराजनीतिक परिदृश्य में भारत दुनिया का नया मैनुफैक्चरिंग हब बनने की सम्भावनाओं को साकार करने की राह पर बढ़ रहा है। इसके कई प्रमुख कारण हैं। पहला आत्मनिर्भर भारत अभियान और भारत से सम्बद्ध प्रोत्साहन को तेजी से बढ़ावा, दूसरा वैश्विक उद्योग और पूंजी का भारत में आना, तीसरा निर्यात आधारित बनने की भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति और चौथा भारत के मुक्त व्यापार समझौतों और क्वाड के कारण उद्योग कारोबार में वृद्धि। अब पूरा विश्व भारत के उत्पादों की तरफ बड़े भरोसे से देख रहा है और भारत को विभिन्न देशों का अच्छा समर्थन भी मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार इस बात पर बल दे रहे हैं कि आत्मनिर्भर भारत ही हमारा रास्ता है और संकल्प भी। 
इस समय केन्द्र सरकार देश में उद्योग, व्यापार और प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित आत्मनिर्भर अभियान में मैनुफैक्चरिंग के 24 सैक्टरों को प्राथमिकता के साथ बढ़ाया जा रहा है। अभी भी देश में दवाई, मोबाइल, मैडिकल उपकरण, आटो मोबाइल जैसे कई उद्योग चीन से आयातित माल पर आधारित हैं। अब चीन के कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले लगभग डेढ़ वर्ष में सरकार ने पीएलआई स्कीम के तहत 13 उद्योगों काे करीब 2 लाख करोड़ रुपए के आवंटन के साथ प्रोत्साहित किया। कुछ उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं। चीन में कोरोना संक्रमण के कारण उद्योग व्यापार के ठहर जाने से बहुत सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने वहां से बाहर निकलना ही बेहतर समझा। इससे निवेश के मौके भारत की ओर आने लगे। यूक्रेन-रूस युद्ध की चुनौतियों के बीच 2021-22 में भारत का उत्पाद निर्यात 419.65 और सेवा निर्यात 294.24 अरब डालर के स्तर तक पहुंचना इस बात का संकेत है कि अब भारत निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने की ओर अग्रसर है। देश के औद्योगिक उत्पादन में रफ्तार बढ़ाने के प्रयास कोरोना काल से ही जारी हैं। तब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश के हर क्षेत्र के लिए भारी-भरकम पैकेज दिए थे। अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया ने क्वाड के रूप में जिस नई शक्ति के उदय का शंखनाद किया है वह भारतीय उद्योग जगत के ​लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। भारत ने संयुक्त अरब अमीरात और आस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप दे दिया है। जिसके बाद यूरोपीय संघ, कनाडा, ​ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इस्राइल के साथ मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत संतोषजनक ढंग से जारी है। झटकों को बर्दाश्त कर लेना बरसों की आर्थिक नीतियों का परिणाम होता है। इस मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था ने निश्चित रूप से बड़ी दूरी तय की है। 
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार के आठ वर्ष पूरा होने के अवसर पर हम बहुत सी चीजों का विश्लेषण कर सकते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था को 1991 में जबर्दस्त झटका लगा था जिसका कारण पहला खाड़ी युद्ध था जिससे तेल के दाम बहुत बढ़ गए थे और भारत भुगतान न कर पाने के कगार पर था। धीरे-धीरे भारत ने झटकों को सहना सीख लिया। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी भारत में रूस से सस्ता तेल खरीदकर देश की जरूरतों के मुताबिक फैसला लिया। अब आर्थिक गतिविधियों की विविधता, खाद्य पदार्थों और विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार तथा पर्याप्त रूप से वित्त पोषित कल्याण योजनाओं के रूप में अर्थव्यवस्था में समुचित क्षमता है। भारत की स्थिति पड़ोसी देशों श्रीलंका, पाकिस्तान की स्थिति से बिल्कुल अलग है। पिछले 2 वर्षों से कल्याण योजनाओं में सबसे बड़ा उदाहरण करोड़ों लोगों को मुफ्त अनाज देना है। जीएसटी का संग्रह भी अच्छा खासा हो गया है। जब औद्योगिक उत्पादन बढ़ता है तो अन्य चीजें भी बढ़ती हैं। अब केवल इस बात पर ध्यान देना है कि देश में घरेलू मांग लगातार बढ़ती रहे। औद्योगिक उत्पादन बढ़ेगा तो रोजगार के अवसर भी छलांगे लगाकर बढ़ेंगे।

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