आज सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी महाराज का जन्म दिन है और गंगा स्नान भी है। गुरु नानक देव जी महाराज ने अपनी वाणी से संपूर्ण मानव जाति को एकता और भाईचारे का संदेश देकर शांति और सौहार्द की बात की। उन्होंने संदेश दिया कि पूरी मानव जाति एक है और मजहब या धर्म उनका आपस में बंटवारा नहीं करता है। उनका कहना था कि मानस की जात सबौ एको पहचानबो। उन जैसे महापुरुष कई सदियों में जाकर पैदा होते हैं। उन्होंने जो सिख धर्म चलाया वह वास्तव में मानव धर्म माना जाता है क्योंकि इसमें मानव सेवा को प्रमुख स्थान दिया गया है और व्यक्ति के कर्म को सर्वोच्च महत्ता दी गई है। गुरु नानक देव जी महाराज ऐसी दिव्य विभूति थे जिनका जन्म देव दीपावली अर्थात कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनका इस विशेष दिन धरती पर अवतरण किसी देव के अवतरण के समान देखा गया और उन्होंने अपने संदेश में भी देव आत्माओं के समान ही समूची मानव जाति को एक सूत्र में बांधने में अपने उपदेशों और वाणी द्वारा उत्प्रेरक की भूमिका निभाई और प्रथम मुगल शासक बाबर के समक्ष भी चुनौती उत्पन्न की कि वह सत्ता के मद में आपे से बाहर हुए बिना प्रजा के साथ सद्भावना और न्याय का रास्ता अपनाए।
बाबर को गुरु नानक देव जी महाराज ने ही सर्वप्रथम बादशाह कह कर संबोधित किया और एक प्रकार से उसे भारत में राज्य करने के लिए कुछ नियमों से इस प्रकार बांधा कि वह आम जनता के साथ मानवता का व्यवहार करें। नानक देव जी महाराज ऐसी विभूति थे जिन्होंने पूरे भारतवर्ष और आसपास के देशों का भी भ्रमण किया तथा यह समूची मानव जाति जो विविध धर्मों में बंटी हुई थी वह अपने-अपने धार्मिक आग्रहों को लेकर उत्तेजित क्यों रहती है, इसके लिए उन्होंने कहा कि कोई बोले राम-राम कोई खुदाए कोई सेवै गुसईयां कोई अलाए। वर्तमान समय में हमें गुरु नानक देव जी महाराज के संदेश की प्रासंगिकता को समझना चाहिए और उसी के अनुरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन करना चाहिए। हमारा आचरण ऐसा हो कि प्रत्येक मनुष्य दूसरे मनुष्य के साथ भाईचारा दिखाए। धर्म उसका व्यक्तिगत मामला है और वह अपने धर्म के अनुसार पूजा पद्धति अपना सकता है। इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
इसके साथ ही गंगा स्नान का पर्व उत्तर भारत के कुछ विशेष इलाकों में विशेष महत्व रखता है। विशेषकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि प्रदेशों में इनमें से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विशेष उत्साह के साथ गंगा स्नान पर्व मनाया जाता है। इस दिन गंगा जी के तट पर विभिन्न मेले आयोजित होते हैं, जिसे जंगल में मंगल का नाम भी दिया जाता है, इन सभी मेलों में गढ़मुक्तेश्वर मेला, बिजनौर में विदुर कुटी मेला, हरिद्वार तो विशेष महत्व रखता ही है, इन सभी मेलों में लाखों में श्रद्धालु आकर गंगा स्नान करते हैं और हिंदू संस्कृति के अनुसार धर्म लाभ कमाते हैं। हमें यह देखना होगा कि हिंदू संस्कृति में नदियों को विशेष महत्ता क्यों की गई है । इसका प्रमुख कारण नदियां हमारे जीवन का अभिन्न भाग हैं और यह कहावत जल बिन सब सून पूरी तरह हर युग में खरी उतरती है। सभ्यता का विकास नदियों के साथ-साथ हुआ है। जहां-जहां नदियां है वहीं -वहीं शहरों का विकास हुआ अब इंटरनेट युग में यह परंपरा बदल रही है, मगर नदियों की सभ्यता में विशेष महत्ता को कभी भी कम करके नहीं देखा जा सकता।
इसी प्रकार कार्तिक महीने में छठ का उत्सव आता है जो बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के भागों में विशेषता के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार पर सूर्य की पूजा होती है। सूर्य और जल मनुष्य के जीवन में और पूरी संस्कृति के विकास में जो भूमिका निभाते हैं, वह जीवन के सदा गतिमान रहने का प्रमाण होती है, सूर्य प्रकृति में ऊर्जा भरकर उसका पुनर्जागरण करते हैं और उसका विस्तार करते हैं, साथ ही उसमें विविधता लाते हैं। यह व्यवस्था जब मनुष्य जन्म लेता है उसके मरण तक उसके समक्ष जीवंत रहती है। इसीलिए हिंदू संस्कृति कुछ वैज्ञानिक नियमों पर आधारित मानी जाती है। कार्तिक मास दीपावली के पर्व का भी गवाह रहता है, यह ऋतु परिवर्तन का भी गवाह होता है अतः भारतीय संस्कृति में वैज्ञानिक तर्कों के साथ जनता को जोड़ने की कोशिश शुरू से ही की गई है। भारत में रहने वाले सभी हिंदू मुसलमान सबसे पहले भारतीय होते हैं और भारत की संस्कृति के अनुसार अर्थव्यवस्था भी कहीं न कहीं घूमती रहती है, अतः हमें सोचना होगा कि सभी हिंदू मुसलमान आपस में भाईचारा बनाकर रखें और भारत की धरती ने जो कुछ भी हमें प्रदान किया है उस पर गर्व करते हुए उसका संरक्षण करें और महान गुरु की परंपराओं को भी आगे बढ़ाते रहें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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