आज जब सुबह लिखने को बैठा ही था तो लम्बे अर्से के बाद अमृता की उसी नज्म को एक दर्द भरी आवाज में फिजां में गूंजते पाया। मैं उस नज्म को बड़ा प्यार करता हूं। कई बार लिखता हूं और आंखें भर आती हैं। चंद बोल देखें,
”अज्ज सब कैदी हो गए
हुस्न इश्क दे चोर
कित्थों लभ के ल्याहीये
वारसशाह इक होर
अज आखां वारसशाह नू,
कितों कब्रा विच बोल,
ते अज्ज किताबे इश्क दा
कोई दूजा वर्का खोल।”
इन पंक्तियों में नारी पीड़ा ही नहीं, उसका इतिहास बोल रहा है। लोगों ने लाख चालाकियां कीं, षड्यंत्र किये। विभाजन की त्रासदी को बिना खडग़, बिना ढाल की जीत बताते अहिंसकों की वाहवाही की, पर काश! कोई दुख की नगरी में प्रवेश कर पाता। कोई आंसुओं की जाति का पता पूछने की हिम्मत जुटा पाता।
बार-बार अमृता प्रीतम के बोल सारे वजूद को झकझोरते रहे और पूछते रहे ”क्या तुम्हें पता है कि तब भारत-पाक विभाजन के समय 1947 में सारी चिनाब का पानी खून की लाली में क्यों सराबोर हो गया था?
क्या तुम्हें पता है कि हिन्दू और सिख औरतों ने कुएं छलांग लगाकर क्यों भर दिए थे?”
इस राष्ट्र ने तब से लेकर आज तक नारी गरिमा को नहीं जाना, नारी व्यथा को नहीं समझा, इसलिए यह राष्ट्र चाहे जितनी तरक्की करे, वह कभी शांति से नहीं रह सकता। ऐसा मेरा सोचना है। सचमुच यह बेहद दुख और शर्म की बात है। आज अमृता को याद करते नारी दुर्दशा पर मन भर आया और सोचता रहा कि हर वर्ष नारी को महामाई, सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा के रूप में पूजने वाले इस देश के लोगों से क्या बात करूं?
दुनिया भर में देश का सिर शर्म से झुका देने वाले निर्भया कांड के दोषियों की फांसी पर मुहर लगाई जा चुकी है। जब अदालत ने दोषियों की फांसी बरकरार रखने का फैसला सुनाया तो लोगों ने अदालत में तालियां बजाकर इस फैसले का स्वागत किया। देश की सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला काफी भावुक कर देने वाली टिप्पणियों के साथ सुनाया था लेकिन क्या सख्त कानून और फांसी की सजा हवस के दरिन्दों में कोई खौफ पैदा कर पाया? निर्भया कांड के बाद जबर्दस्त सामाजिक क्रांति हुई लेकिन क्या कुछ बदला?
रोहतक में भी निर्भया कांड जैसी जघन्य घटना हुई। दरिन्दों ने 23 वर्ष की युवती को अगवा करके गैंगरेप के बाद हत्या कर दी थी। बलात्कारियों ने फिर क्रूरता की हद पार कर दी। दिल्ली हाइवे के पास लड़की की सिर कुचली लाश मिली तो घर वालों ने कपड़ों से उसकी पहचान की। अभी यह घटना अतीत में नहीं गई कि एक और घटना सामने आ गई। दिल्ली से सटे गुरुग्राम में पूर्वोत्तर की 22 वर्ष की लड़की से चलती कार में गैंगरेप किया गया। इस घटना को अंजाम देने वाले अभी तक कानूनी शिकंजे से बाहर हैं। दोनों घटनाओं में हैवान घरों के बाहर के हैं लेकिन अफसोस इस बात का है कि घर के भीतर भी लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। रोहतक में ही एक और शर्मनाक मामला सामने आ गया जिसने रिश्तों को तार-तार कर दिया। 10 वर्ष की मासूम से उसके सौतेले बाप ने हवस का खेल खेला जिससे वह गर्भवती हो गई। मासूम की मां को जब यह पता चला तो उसने अपने पति के खिलाफ मामला दर्ज कराया।
आज खून होना आम बात है। रिश्तों का खून तो हो ही चुका है। इंसान की हैवानियत इस कदर बढ़ गई है कि वह कुछ भी करने को तैयार है, फिर चाहे मामला बलात्कार का हो या अवैध संबंधों का, फिर पकड़े जाने पर जान से मार देने का हो या आत्महत्या करने का हो, इंसानी भूख बढ़ती जा रही है। जल्दी से जल्दी सब कुछ हासिल करने वाली इस पीढ़ी ने सामाजिक ताने-बाने को तोड़ दिया है। क्या कानून की बात करूं, क्या महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था पर बात करूं।
जब फांसी की सजा खौफ पैदा नहीं कर रही तो ऐसी घटनाएं रुकेंगी कैसे? नारी शक्ति का घोर अपमान हो रहा है, जिन्होंने नारी का अपमान किया है वे नरपशु और धनपशु प्रकृति से ही वह सजा पाएंगे कि पुश्तों तक की गर्मी शायद शांत हो जाए। समाज को खुद अपनी मानसिकता के बारे में सोचना होगा। महिलाएं उत्पीडऩ से नहीं बच पा रहीं। दरिन्दों की नग्नता क्रूर अहसास करती नजर आती है। महादेवी की पंक्तियां प्रासंगिक हो उठती हैं-
”मैं नीर भरी दुख की बदरी,
विस्तृत नभ का कोना-कोना
मेरा न कभी अपना होता
परिचय इतना, इतिहास यही
उभरी कल थी, मिट आज चली।”
नारी मातृशक्ति है, राष्ट्र इसके अपमान से बचे अन्यथा विध्वंस हो जाएगा।