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‘मोदी’ है तो ‘मौका’ है

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का उत्तर देते हुए समस्त देशवासियों को भारत की समन्वित शक्ति में पूर्व विश्वास रखने का सन्देश देकर साफ कर दिया है।

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का उत्तर देते हुए समस्त देशवासियों को भारत की समन्वित शक्ति में पूर्व विश्वास रखने का सन्देश देकर साफ कर दिया है कि उनके नेतृत्व में चलने वाली सरकार देश की हर समस्या के समाधान का हिस्सा होने में गर्व का अनुभव करेगी।
यदि उनके भाषण का बेबाक विश्लेषण किया जाये तो आज का उनका वक्तव्य 2014 में पहली बार प्रधानमन्त्री बनने पर संसद में दिये वक्तव्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण और समावेशी था। आज के भाषण में एक ऐसा अनुभवी राजनीतिज्ञ अपने मनोभावों को प्रकट कर रहा था जो अपनी ही आलोचना को सृजनात्मक तरीके से लेते हुए राष्ट्रीय समस्याओं में समूचे राजनैतिक जगत की सहभागिता के साथ उनका समाधान ढूंढना चाहता था।
समूचे भाषण के दौरान प्रधानमन्त्री ने जिस विनोद प्रियता के साथ भारतीय लोकतन्त्र में वैचारिक विविधता और मतभिन्नता को प्रतिष्ठापित किया उससे आम जनता में फैले कई प्रकार के भ्रमों को दूर होने का अवसर अवश्य मिलेगा।
श्री मोदी ने बहुत सरल भाषा में कृषि सुधारों को लेकर बनाये गये तीन नये कानूनों के पेंच को जिस तरह खोला उसे उनके विरोधी राजनीतिक चातुर्य जरूर बता सकते हैं मगर हकीकत यही रहेगी कि श्री मोदी ने देश के अब तक के किसानों के सबसे बड़े नेता पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. चौधरी चरण सिंह के छोटे किसानों की मुसीबतों के बारे में दिये गये एक वक्तव्य का उद्हारण देकर साफ कर दिया कि उनकी सरकार की कृषि नीतियां एक एकड़ से कम की खेती का रकबा रखने वाले 86 प्रतिशत किसानों के हित में है और उनके सशक्तीकरण के लिए ही विभिन्न परियोजनाएं चलाई जा रही हैं जिनमें किसान सम्मान निधि से लेकर फसल बीमा योजना शामिल हैं।
श्री मोदी ने एक रहस्योद्घाटन भी किया कि अभी तक जो किसान कर्ज माफी की घोषणाएं किसी भी चुनाव से पहले की जाती हैं वे केवल वोट बनाने की राजनीति के तहत ही की जाती हैं। उनसे भी छोटे किसानों काे कोई लाभ नहीं होता क्योंकि ऐसे किसानों के पहले बैंक में खाते तक नहीं होते थे और कर्ज उनका माफ होता था जो बैंक से कर्ज लेते थे।
प्रधानमन्त्री का यह कथन कृषि क्षेत्र की असली समस्या की तरफ ध्यान आकृष्ट करता है जिसका सम्बन्ध सीधे ग्रामीण अर्थव्यवस्था से है। वस्तुतः किसानों और कृषि क्षेत्र से जुड़े कई भ्रम आज राज्यसभा में दूर कर दिये। इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य सुरक्षा को लेकर जो गफलत का माहौल बन रहा था, वह दूर हो गया।
उन्होंने कहा कि समर्थन मूल्य पहले भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा और सरकार 80 करोड़ लोगों को कम मूल्य पर अनाज भी सुलभ करायेगी। यह बात उन्होंने संसद में कही है और इसे रेखांकित करते हुए उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि सदन में कही गई बात की पवित्रता होती है।
दरअसल आज संसद में बोलते हुए श्री मोदी ने भारत के संसदीय इतिहास के पुराने दिनों को लौटाते हुए स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की याद ताजा कर डाली। जब उन्होंने यह कहा कि नये कृषि कानून स्थिर नहीं हैं, समय अनुरूप परखते हुए इनमें बदलाव की संभावना हमेशा बनी रहेगी, अतः कम से कम इन्हें जमीन पर उतारते हुए परखने का मौका तो दीजिये और अगर इनका लाभ हो तो उसका श्रेय विपक्ष ले लें और बदनामी हो तो उसे मेरे खाते में जमा कर दे।
श्री मोदी का अन्दाज निश्चित रूप से ही लोकतन्त्र के दायरे में बतौर सत्ता में होते हुए अपनी प्रखर आलोचना पर भी प्रसन्नता जाहिर करने का था जिससे जाहिर होता है कि प्रधानमन्त्री उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं जिसकी अपेक्षा भारत के 130 करोड़ देशवासियों को उनसे है।
यदि कृषि क्षेत्र की ही बात की जाये तो उन्होंने साफ किया कि इसमें सुधारों की जरूरत सदन में मौजूद लगभग सभी दलों के प्रमुख राजनीतिज्ञों ने स्वीकार की है। इस सन्दर्भ में उन्होंने पूर्व प्रधानमन्त्री श्री एच.डी. देवेगौड़ा व पूर्व कृषि मन्त्री श्री शरद पंवार का नाम विशेष रूप से लिया और कहा कि हर पार्टी ने सत्ता में रहते हुए इस तरफ कुछ न कुछ जरूरी कदम उठाये हैं।
मगर श्री मोदी ने कटाक्ष भी किया कि कृषि कानूनों की उपादेयता (मेरिट) पर सदन में कम चर्चा हुई जबकि आन्दोलन पर ज्यादा। बेशक आन्दोलन पर चर्चा भी महत्वपूर्ण है मगर विरोधी दलों के नेताओं को किसानों को समझाना चाहिए कि ये कानून कृषि व ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए बनाये गये हैं और एक कदम आगे की तरफ बढ़ने की तरह हैं।
पंजाबी व सिख आंदोलनकारियों के बारे में गलत भाषा प्रयोग करने वालों को उन्होंने सचेत भी किया। प्रधानमन्त्री ने अपने भाषण में कोराना संक्रमण का भी विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय वैज्ञानिकों ने जिस तरह बहुत कम समय में वैक्सीन को ईजाद किया उसका श्रेय केवल हिन्दोस्तान को जाता है, किसी राजनीतिज्ञ को नहीं।
मगर इसकी भी आलोचना करना उचित नहीं कहा जा सकता। इसी कोरोना काल में भारत में विदेशी निवेश का रिकार्ड स्तर पर बढ़ना और रिकार्ड स्तर पर अनाज का उत्पादन होना भारत की अन्तर्निहित शक्ति को दर्शाता है। यह ऐसे काल को भी अवसर में बदलने का प्रतीक कहा जा सकता है।
फिर भी आलोचना करनी है तो करिये मगर भारत के आगे बढ़ने पर एकमत रहिये। विपक्ष को उनका यह कहना कि आप मेरी आलोचना करते रहें -मोदी है तो मौका है, पूरे सदन में ऐसी खनखनाहट बिखेर गया जिसकी खनक आने वाले समय तक सुनी जाती रहेगी।

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