खाप पंचायतों का गैरकानूनी वजूद - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

खाप पंचायतों का गैरकानूनी वजूद

NULL

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने खाप पंचायतों की भूमिका औऱ कार्यकलापों के बारे में दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए साफ कर दिया है कि संविधान द्वारा स्थापित सामाजिक नागरिक अधिकारिता के क्षेत्र में कोई भी संस्था या समाज अथवा परिवार किन्हीं दो वयस्क व्यक्तियों के जीवन साथी चुनने के अधिकार में दखल नहीं दे सकता है। इस सम्बन्ध में चाहे लड़का हो या लड़की उस पर किसी भी प्रकार का कैसा भी दबाव कोई भी व्यक्ति या समूह नहीं बना सकता है। वयस्क आयु प्राप्त कर लेने के बाद किसी भी नागरिक का यह मूल अधिकार है कि वह किसी भी समुदाय से अपने मनपसन्द का जीवन साथी चुन सकता है। किन्तु उत्तर भारत के कुछ राज्यों में जाति या समुदाय अथवा गोत्र या फिर धर्म के नाम पर दो वयस्कों को अपनी पसन्द का साथी चुनने से न केवल रोकने के विविध उपाय किये जाते हैं बल्कि उनके खिलाफ जघन्य आपराधिक काम भी किये जाते हैं। इनमें सबसे अधिक बर्बरता कथित खाप पंचायतें दिखाती हैं जिन्हें किसी खास जाति का सामुदायिक संगठन कहा जाता है।

ये पंचायतें खुद को एेसे कानूनी अधिकारों से लैस मानने की गलत फहमी में रहती हैं जो उनकी जाति के समुदाय को अलग पहचान देती हैं। इतना ही नहीं ये अपने कानून तक लोगों पर चलाती हैं बाकायदा किसी स्वजातीय परिवार के घरेलू मसलों पर न्यायिक फैसला तक सुनाती हैं। 21वीं सदी के आधुनिक भारत में आदिम कबायली समाज के अवशेषों को ढोने के लिए किसी भी भारतीय नागरिक को बाध्य नहीं किया जा सकता है परन्तु इन कथित खाप पंचायतों में समाज के दबंग लोग इस प्रकार कार्य करते हैं जैसे वे ही समाज के ठेकेदार हों और पुरानी जंग लगी परंपराओं को आगे जारी रखने की जिम्मेदारी उन्हें हर हाल में पूरी करनी है। भारत में जातिवाद की जड़ों को जमाये रखने में खाप पंचायतों की भूमिका बहुत अहम रही है क्योंकि इन्होंने अपने समुदायों के युवा वर्ग को लीक से हट कर सामाजिक कार्य करने से हमेशा रोका है। यह कार्य इस हद तक क्रूरता के साथ किया जाता रहा है कि किसी वयस्क लड़के या लड़की के परिवार वाले तक झूठी जातिगत शान के झांसे में आकर अपने ही घर के चश्मो- चिरागों तक को नरक में धकेल देते हैं। परन्तु सबसे अफसोसजनक यह है कि चन्द वोटों की खातिर सभी राजनीतिक दल इन खाप पंचायतों के क्रूर व अमानवीय कृत्यों को परोक्ष रूप से समर्थन देते रहे हैं। ये राजनीतिक दल खाप पंचायतों के उन कामों की तरफ निगाह दौड़ाना शुरू कर देते हैं जो कभी राष्ट्रीय आन्दोलनों के दौरान किये गये थे।

परन्तु वे भूल जाते हैं कि राष्ट्रीय आन्दोलन किसी जाति या वर्ग के मोहताज नहीं होते बल्कि प्रत्येक वर्ग को राष्ट्र से जुड़े रहने के लिए उनमें शामिल होना पड़ता है। अतः विचारणीय यह है कि जिस संस्था के मूल या जड़ में ही सम्पूर्ण समाज में भेदभाव पैदा करने की भावना पड़ी हुई हो उसका कोई भी कार्य किस प्रकार समाज या राष्ट्र को जोड़ने वाला हो सकता है ? स्वगोत्र या स्वजाति अथवा एक ही गांव के दो युवक- युवती के बीच विवाह को नकारने वाली खाप पंचायतें सबसे ज्यादा जुल्म लड़कियों पर ही ढहाती हैं और सम्पूर्ण स्त्री जाति को पुरुष के मुकाबले निचले पायदान पर रख कर देखती हैं। यह कुप्रथा नहीं है बल्कि एेसा सामाजिक विषाणु है जो भारत की कुछ ग्रामीण जातियों को लगातार पिछड़ा बनाये रखना चाहता है। मगर इसका दूसरा स्वरूप हमें अन्तर धार्मिक विवाहों में देखने को मिल रहा है। किसी हिन्दू व मुस्लिम लड़के या लड़की की शादी होने का अर्थ समाज में असन्तोष पैदा करने वाला माना जाता है। जबकि संवैधानिक रूप से इसमें कहीं कोई अड़चन नहीं है। अब एेसे विवाहों को एक नये नाम ‘लव जिहाद’ से नवाजा जाने लगा है।

दो युवा लोगों के मिलन में न धर्म बीच में आड़े आ सकता है और न अमीरी – गरीबी अथवा जाति का ऊंचा या नीचा होना। देखना केवल यह होता है कि एेसा सम्बन्ध किसी स्वार्थ या लोभ अथवा साजिश पर न टिका हुआ हो। जीवन साथी चुनने में मां- बाप अक्सर अपनी औलाद की मदद करते हैं मगर अपनी राय थोप कर वह अपनी ही औलाद का जीवन भी दूभर नहीं बनाना चाहते हैं। इसके बावजूद यदि औलाद अपनी पसन्द को ही उपयुक्त मानती है तो मां- बाप का फर्ज बन जाता है कि वे प्रसन्नता के साथ इस सम्बन्ध को स्वीकार करें और उनके उज्व्वल भविष्य की कामना करें परन्तु कथित खाप पंचायतें एसे मां- बापों को सार्वजनिक रूप से और सामाजिक तौर पर जलील करने तक का काम करती हैं और अपने संविधानेत्तर वजूद को दिखाने की हिमाकत करती हैं। किन्तु इसकी जड़ हिन्दू समाज में होने वाली शादी – ब्याह की परंपराओं व रवायतों में हैं।

जातिवाद को जमाये रखने में इस परंपरा की बहुत बड़ी भूमिका है जिसे आज का राजनीतिक समाज भी खूब फैला रहा है। यह बेवजह नहीं था कि महात्मा गांधी ने यह अहद किया हुआ था कि वह किसी विवाह में भाग नहीं लेंगे और केवल उसी में जाने की सोचेंगे जिसमें अन्तर्जातीय विवाह सम्पन्न हो रहा हो। सोचने वाली बात यह भी कम नहीं है कि उस देश को किस प्रकार प्रगतिशील या विकास करने वाला कहा जा सकता है जिसके लोग पुराने दकियानूस बन्धनों में इस कदर कसे हुए हों कि किसी लड़के या लड़की को अपनी मनपसन्द का साथी चुनने पर कत्ल तक करने से गुरेज न करते हों और एेसे काम को ‘आनर किलिंग’ का नाम दे देते हों। इससे ज्यादा दुखद और क्या हो सकता है कि संविधान का खुला उल्लंघन करने वाले लोगों को सरकार का कोई डर ही न हो। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि एेसा करना गैर कानूनी या असंवैधानिक है। सवाल यह है कि खाप पंचायतें किस तरह गैर कानूनी फैसले करने के लिए आजाद छोङी जा सकती हैं। सबसे पहले इनके वजूद को ही कानून के दायरे में लिया जाना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five + eighteen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।