एक कहावत मशहूर है कि जर्मनी का असलहा, चीन की कूटनीति और भारत का फौजी जिसके पास है उसे दुनिया की कोई ताकत शिकस्त नहीं दे सकती। यह कहावत दर्शाती है कि अब भारतीय सेना का रुतबा कितना ऊंचा है लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू बहुत हैरान कर देने वाला है कि हमारे यहां 57 हजार अफसर और सैनिक ऐसे थे जो नॉन आप्रेशनल गतिविधियों में लगाए गए थे। इन लोगों का सेना की मोर्चेबंदी या अन्य ड्ïयूटी से कोई संबंध नहीं था। कुल मिलाकर एक सैनिक से सैनिक वाला काम न कराकर कोई और काम कराना, यह सब हमारी सेना में पिछली सरकारों के शासनकाल में होता रहा है परन्तु अब भारतीय सेना में सुधार का चक्का तेजी से घूमने लगा है। इसीलिए वित्त मंत्रालय के साथ-साथ रक्षा का महकमा भी देख रहे अरुण जेटली ने सेना में सुधारों की योजना को मंजूरी दे दी है। इस बारे में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लम्बी बातचीत की। दरअसल सैनिकों का मनोबल बुलंदी पर रखने के लिए यह पग जरूरी था और हम इसका स्वागत करते हैं।
इसी सेना में कभी हम यह सुनते रहे हैं कि गोला बारूद खत्म हो रहा है या फिर हथियारों की खरीद में गड़बड़ी के आरोप लगते रहे हैं। चाहे अद्र्ध सैन्य बल क्यों न हो तो भी भोजन को लेकर शिकायत दर्ज कराने के वीडियो भी वायरल होते रहे हैं। भारत बदल रहा है तो सेना की ताकत को बढ़ाए रखने के लिए सुधारों का स्वागत किया जाना चाहिए। कल तक अफसरों और जवानों को कभी सेना के अपने डाक विभाग में तैनात कर दिया जाता या किसी और रैजिमेंट में बड़े अफसर के बंगलो पर उनकी ड्ïयूटियां लगा दी जाती थी। अब यह सब क्यों होता रहा हम इस बहस में पडऩा नहीं चाहते लेकिन जब दुनिया में विशेष रूप से भारत में आतंकवाद ने अपने खूनी पंजे फैलाने शुरू किए तो निगाहें सेना पर भी जाती हैं और इसी सेना ने देशवासियों को आज की तारीख में सुकून भरी नींद दी है। चाहे सियाचिन की आसमान छूती बर्फ की चोटियां हों या फिर कोई भी आपदा, चाहे वह बाढ़ हो या भूकम्प, हमारी सेना ने ही आगे बढ़कर न सिर्फ अपनी देशभक्ति दिखाई है बल्कि शहादत भी दी है। ऐसे मेंं सेना में बदलाव बहुत जरूरी था और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अब नियमित सुधारों को लागू करने का फैसला किया गया तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
देश में सेना के डेयरी फार्म हों या फिर अन्य मिलिट्री बैंड या फिर अनेक गोल्फ और पोलो के मैदान हों वहां अधिकारियों व जवानों को स्थाई तौर पर तैनात करना कभी भी वाजिब नहीं कहा जा सकता। तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के कार्यकाल में रक्षा मंत्रालय ने लैफ्टिनेंट जनरल डी.बी. शेकतकर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी और इस कमेटी ने यह पाया कि हमारी फौज के ढांचे को ब्रिटिश शासन से जोड़कर रखा गया था। आजादी के इतने वर्षों बाद भी देश में ब्रितानवी शासन का अहसास हमारी फौज के नॉन आपरेशनल जवानों को अगर कराया जाता रहा है तो यह भी ठीक नहीं था। अब यह तमाम खेल जो ब्रिटिश हुकूमत के शौक के थे, उनका महत्व और प्रासांगिकता खत्म हो चुकी है। इसीलिए नए सुधारों के तहत अब 57 हजार अफसरों और सैनिकों की नए सिरे से तैनाती करने का फैसला स्वागत योग्य है औैर ये लोग एक सैनिक की तरह हर मोर्चे पर डटकर काम करेंगे यह हमारी फौज की क्षमता बढ़ाने के लिए काफी है।
सेना की ताकत और बढ़ेगी। एक वह राष्ट्र जो अपने स्वाभिमान और इज्जत के साथ-साथ अपनी शक्ति की विरासत से जीता हो वहां पुरानी दकियानूसी परम्पराएं समाप्त किये जाने का स्वागत किया जाना चाहिए। देश के बार्डर पर और देश के अन्दरूनी भागों में सेना ने सचमुच अपनी ड्ïयूटी को अपनी जान देकर निभाया है। देर से ही सही परन्तु सेना में सुधारों को लागू किया गया यह मोदी सरकार की एक बड़ी सफलता है। जवानों की कत्र्तव्यपरायणता को हमारा सैल्यूट है और सरकार की इस पहल का हम स्वागत करते हैं, जिसने हमारे जवानों के आत्मविश्वास को फिर से बढ़ाया है। 70 साल की हो चली हमारी सेना का दमखम अभी तरोताजा है और दुश्मन के दांत खट्टे करने में यह किसी से कम नहीं है। चुनौतियों से टकरा कर देश की शान बनाने वाली इस सेना में सुधारों की शुरूआत हो गई है, वह इसके गौरव को दुगना-चौगुना बढ़ाते हुए देश का सीना छप्पन इंच कर देगी, ऐसा विश्वास है।