राष्ट्रीय लाॅकडाउन समाप्त होने से दो दिन पहले ही गृह मन्त्रालय ने इसे और दो सप्ताह आगे बढ़ाने का फैसला करके साफ कर दिया है कि फिलहाल भारत ऐसा कोई जोखिम नहीं ले सकता जिससे नियन्त्रण में आये कोरोना को और लोगों से ‘हाथ मिलाने’ का मौका मिले। अब आगे का साफ रास्ता नजर नहीं आ रहा है, जिसे बनाने का खाका खींचने में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी रात-दिन एक किये हुए थे। जाहिर है कि यह श्री मोदी की ही अपील थी कि भारत के 130 करोड़ लोगों ने लाॅकडाउन को दैनिक जीवन का अंग बना कर उसका पालन किया मगर अब इससे बाहर निकलने की तरकीब का आम जनता बेसब्री से इन्तजार कर रही है परन्तु गृह मन्त्रालय ने ताकीद कर दी है कि ‘जरा और थोड़े सब्र की जरूरत है’ तो इसमें कुछ भी अनापेक्षित नहीं है। बढे़ हुए लाॅकडाउन के तहत सैद्धान्तिक प्रतिबन्धात्मक व्यवस्था लागू रहेगी मगर कुछ राहतें भी दी जायेंगी।
श्री मोदी पिछले दो दिनों से जिस प्रकार अपने मन्त्रिमंडल के सहयोगियों के साथ मशविरे में लगे हुए थे उसे देखते हुए लगता है कि 4 मई से लोगों की दैनिक जीवनचर्या में कुछ अन्तर आयेगा खास कर उन स्थानों पर जहां कोरोना वायरस ने अपने जहरीले पंजे नहीं मारे हैं। अतः गृह मन्त्रालय ने इस बारे में कुछ नये दिशा निर्देश भी जारी किये हैं। भारत में ऐसे 319 जिले हैं जिनमें पिछले 21 दिनों में कोरोना का एक भी मामला नहीं पाया गया है। इन जिलों में आर्थिक गतिविधियों को शुरू करके सामान्य जीवन जीने की तरफ कदम बढ़ाया जा सकता है। जबकि ओरेंज जोन के माने जाने वाले 284 जिलों में आंशिक गतिविधियां शुरू की जा सकती हैं लेकिन रेड जोन में आने वाले 130 जिलों में लाॅकडाउन के प्रतिबन्ध कड़ाई से जारी रहेंगे। इसलिए कहा जा सकता है कि बढ़ा हुआ लाॅकडाउन कुछ अलग सा है। लाॅकडाउन ने सबसे बड़ा नुकसान देश की अर्थ व्यवस्था को ही पहुंचाया है। अतः इसे सुधारने के लिए अब चरणबद्ध कार्रवाई करना बहुत जरूरी हो गया है।
सबसे बड़ा खतरा यह पैदा हो रहा है कि विदेशी निवेशक भारत की परिस्थितियों से हतोत्साहित न हों और वे इस देश के मूल आर्थिक नियामकों में विश्वास बनाये रखें किन्तु यह कार्य सरकार द्वारा उत्साहित करने वाले कदम उठाये बिना नहीं हो सकता। पिछले एक महीने में भारत से विदेशी निवेशकों ने 16 अरब डालर के लगभग पूंजी बाहर भेजी है, हालांकि भारत के पास फिलहाल 400 अरब डालर से भी ज्यादा का विदेशी निवेश है मगर इसका बाहर जाने का सिलसिला यदि चल पड़ा तो माहौल का मिजाज विपरीत होने में मदद मिलेगी। ऐसा नहीं है कि सरकार इस तथ्य से वाकिफ नहीं है। इसकी वजह से ही संभवतः प्रधानमन्त्री ने दो दिन पहले आगाह किया था कि भारत को विदेशी निवेश के लिए आकर्षक बनाने की जरूरत है। यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत ने कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में यूरोपीय व विकसित अमेरिका जैसे देश को पीछे धकेलते हुए न्यूनतम मृत्यु दर (3 प्रतिशत) व अधिकतम मरीज आरोग्य दर (25 प्रतिशत) प्राप्त करने में सफलता अर्जित की है। यह सब संभव इसीलिए हो पाया है क्योंकि आम जनता ने लाॅकडाउन के नियमों का पालन करने में तत्परता दिखाई। इस दर में और भी अधिक सुधार हो सकता था अगर तबलीगी जमात का बखेड़ा न खड़ा हुआ होता। इसके बावजूद हकीकत को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता और वह यह है कि भारत के लोग लाॅकडाउन से बाहर आने के लिए बेकरार हो रहे हैं।
इसी वजह से गृह मन्त्रालय ने लाॅकडाउन बढ़ाते हुए ग्रीन जोन में आने वाले जिलों को भारी रियायत देने का खाका भी खींचा है। इनकी बेकरारी भी अर्थ व्यवस्था को लेकर ही है। अतः केन्द्र सरकार यदि यह योजना बना रही है कि आर्थिक गतिविधियों का चक्का छोटे व लघु उद्यमों के कारखानों में मशीनें चला कर किया जाये तो यह कारगर माना जायेगा क्योंकि असंगठित क्षेत्र में ही भारत के 90 प्रतिशत लोग रोजगार पाते हैं जिसमें कृषि क्षेत्र भी शामिल है। कृषि में सामान्य गतिविधियां औसत तौर पर जारी हो चुकी हैं परन्तु ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का चक्का अभी चलायमान नहीं हुआ है। ग्रीन जोन में इसे ही चालू करके इसके तार अन्य आर्थिक अवयवों से जोड़नेे होंगे। जिस प्रकार राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों के दूसरे राज्यों मे फंसे हुए मजदूरों को वापस लाने की योजनाओं को अंजाम दे रही है इसे देखते हुए जिस गति से उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ कामगर व मजदूर वर्ग के लोगों की मदद के लिए क्रियाशीलता दिखा रहे हैं वह अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय है।
योगी जी ने मनरेगा के मजदूरों समेत दस्तकारी या फनकारी अथवा रोजदारी करके पेट पालने वाले लोगों को मदद की दूसरी किश्त रवाना कर दी है। इनमें लुहार, कुम्हार से लेकर तेली, तमोली, गडरिये, जुलाहे आदि सभी आते हैं। इसकी वजह यह भी है कि उत्तर प्रदेश में रेड जोन में आने वाले जिलों की संख्या पचास के आसपास आंकी जा रही है परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर मजदूर व कामगर वर्ग को मदद देने के लिए विपक्ष लगातार शोर मचा रहा है, खास कर कांग्रेस के नेता श्री पी. चिदम्बरम बार-बार आग्रह कर रहे हैं कि देश के कुल 26 करोड़ परिवारों में से आधे 13 करोड़ परिवारों के खातों में पांच-पांच हजार रुपए जमा करा दिये जाने चाहिएं। अब रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघु राजन ने हिसाब लगा कर बताया है कि गरीब व अल्प आय वर्ग में आने वाले परिवारों को 5-5 हजार रुपए देने पर कुल खर्च 65 हजार करोड़ रु. आयेगा जो 30 लाख करोड़ के बजट वाले देश भारत की पहुंच में है। जाहिर है कि कामगर वर्ग को मदद देने के साथ ही लघु व मध्यम वर्ग के उद्यमियों को भी मदद देनी होगी जिससे वे अपने कामगारों का वेतन बिना रुकावट के दे सकें। इस सन्दर्भ में केन्द्र ने पहले ही एक लाख 70 हजार करोड़ रु. की विविध मदद योजना घोषित की थी। यह जमीन पर उतरी भी है या नहीं और यदि उतरी है तो उसका क्या असर है? इसका पता लगाना भी सरकार का काम है।