भारत-भूटान संबंध दक्षिण एशिया में ऐसे द्विपक्षीय संबंध हैं जो प्रेम और सहयोग की भावना रखते हैं। आजादी के बाद से ही भारत और भूटान हर समय साथ खड़े रहे। संयुक्त राष्ट्र में भूटान जैसे छोटे हिमालयी देश के प्रवेश का समर्थन भी भारत द्वारा ही किया गया था। जिसके बाद इस देश को भी संयुक्त राष्ट्र से विशेष सहायता मिलनी शुरू हुई। दोनों देशों के रिश्तों का आधार 1949 की भारत-भूटान संधि द्वारा स्थापित किया गया जो स्थायी शांति और दोस्ती, मुक्त व्यापार प्रदान करता है। चीन ने हमेशा भारत के पड़ोसी देशों के संबंधों में खलल डालने की कोशिश की है। पिछले कुछ समय से ऐसा आभास हो रहा था कि भूटान चीन की तरफ झुक रहा है। भूटान के प्रधानमंत्री के हाल ही में दिए गए वक्तव्यों ने भारत की चिंताएं बढ़ा दी थीं। भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेयरिंग ने एक इंटरव्यू में तीन बातें ऐसी कहीं जो भारत को पसंद नहीं आईं। उन्होंने भूटान के भीतर चीन की घुसपैठ को सिरे से नकार दिया जबकि 2020 में ऐसी कई खबरें आई थीं जिनमें बताया गया था कि भूटान के बॉर्डर के भीतर चीन गांव बना रहा है। जबकि अब ला लेब्रे को दिए इंटरव्यू में लोटे शेयरिंग ने कहा है कि चीन ने जो गांव बनाए हैं वे भूटान के भीतर नहीं हैं। दूसरी बात उन्होंने कही कि चीन और भूटान के बीच का सीमा विवाद हल करने की दिशा में प्रगति हुई है और सम्भव है कि अगली दो या तीन वार्ताओं में इसका समाधान निकल आए। तीसरी बात यह कि उस क्षेत्र में जहां भारत, भूटान और चीन की सीमाएं मिलती हैं, वहां मौजूद विवाद के बारे में उन्होंने कहा कि तीनों देश समानता के स्तर पर बातचीत करके इसका हल निकालेंगे। यानी एक तो उन्होंने इस विवाद में चीन को बराबर का हित-धारक बताया और दूसरे उन्होंने इस धारणा को तोड़ने की कोशिश की कि भूटान की विदेश और रक्षा नीति तय करने में भारत की भूमिका होती है।
भूटान के प्रधानमंत्री का इशारा डोकलाम की तरफ था। जहां 2017 में भारत-चीन के सैनिकों मेें झड़प हुई थी। पहले भूटान डाकेलाम काे भारत-भूटान का आपसी मामला बताता रहा है। इस बयानबाजी के बाद भूटान नरेेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक की भारत यात्रा का काफी कूटनीतिक महत्व है। भूटान नरेश और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में द्विपक्षीय संबंधों पर बातचीत हुई। बातचीत के दौरान आपसी हितों से जुड़े मुद्दों पर गर्मजोशी के साथ चर्चा हुई। बातचीत के दौरान डोकलाम का मुद्दा भी उठा। हालांकि भारत और भूटान सुरक्षा से जुड़े हर मुद्दे पर आपस में सम्पर्क बनाए हुए हैं। भारत ने भूटान को हर सम्भव सहायता देने का वचन भी दिया आैर दोनों देशों में कई समझौते भी हुए। दोनों देश भारत-भूटान सीमा पर एकीकृत जांच चौकी स्थापित करने, कोकराझार-गेलेफू रेल लिंक परियोजना में तेजी लाने और कई जगह और सम्पर्क बढ़ाने पर सहमत हुए हैं। भारत भूटान को कृषि वस्तुओं का निर्यात और कई अन्य वस्तुओं की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए काम करेगा। इन सब बातों के अलावा भारत की चिंता डोकलाम को लेकर है।
भारत के लिए डोकलाम सामरिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण देश है। पूर्वी क्षेत्र में चीन के साथ सीमा विवाद के नजरिये से भूटान की अहमियत काफी बढ़ गई है। भारत के लिए यह जरूरी है कि वह अपने हितों की रक्षा के लिए भूटान-चीन सीमा वार्ता पर बारीकी से नजर रखे। दरअसल आपसी समझ के मुताबिक चीन उत्तर में अपने क्षेत्र का कुछ हिस्सा भूटान को दे सकता है और उसके एवज में भूटान अपने पश्चिम क्षेत्र से कुछ हिस्सा चीन को दे सकता है। भूटान के इसी इलाके में डोकलाम का हिस्सा भी आता है। ऐसे में अगर चीन किसी भी तरह से डोकलाम पर नियंत्रण हासिल करने में कामयाब हो जाता है तो इससे चीन की पहुंच उत्तर-पूर्वी हिस्से तक आसान हो जाएगी। ये इलाका चिकन नेक वाले क्षेत्र में आता है जिसे हम सब सिलीगुड़ी कॉरिडोर के नाम से भी जानते हैं। भारत कतई नहीं चाहेगा कि भूटान सीमा विवाद के समाधान में डोकलाम के इलाकों पर चीन के नियंत्रण को स्वीकार कर ले। अगर ऐसा हो जाता है तो फिर बीजिंग को भारत पर कूटनीतिक लाभ मिल सकता है।
यद्यपि भूटान का यह कहना कि डोकलाम पर उसके रुख में कोई बदलाव नहीं आया। इससे भारत को संतुष्ट नहीं होना चाहिए। भारत को हर पल सतर्क रहना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत और भूटान के आर्थिक, रणनीतिक संबंध काफी मजबूत हैं लेकिन अगर भूटान अलग नेरेटिव खड़ा करना चाहता है जिससे भारतीय हितों पर आंच आ रही हो तो भारत को अपनी नीति नए सिरे से तय करनी होगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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