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भारत-इजरायल संबंध

इजरायल और भारत का उदय एक ही वर्ष 1947 में हुआ था। हालांकि आधिकारिक तौर पर इजरायल को स्वतंत्रता 1948 में मिली।

इजरायल और भारत का उदय एक ही वर्ष 1947 में हुआ था। हालांकि आधिकारिक तौर पर इजरायल को स्वतंत्रता 1948 में मिली। भारत और इजरायल दोनों देशों के संंबंध शुरूआत में अच्छे नहीं रहे। 1947 में ही भारत ने इजरायल को एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता देने के विरोध में वोट दिया था। इसी तरह 1949 में एक बार फिर भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इजरायल को सदस्य देश बनाने के ​विरोध में वोट दिया था। 1950 में पहली बार बतौर स्वतंत्र राष्ट्र इजरायल को मान्यता दी। तब से लेकर दुनिया काफी बदल गई। वैश्विक समीकरणों में उलटफेर हुआ। भारत ने भी परंपरागत विदेश नीति से इतर नए युग में प्रवेश किया। इजरायल के बाद धर्म निरपेक्ष सरकार एक वर्ग विशेष की संतु​ष्टि के ​लिए ऐसे किसी भी देश को तरजीह देने से परहेज करती रही जो अप्रत्यक्ष रूप से हमारा हितैषी बना रहा। कभी वह दौर भी रहा कि जब 1977 में मोरारजी देसाई सरकार बनने के बाद इजरायल के तत्कालीन रक्षामंत्री मोशे दायां को दिल्ली हवाई अड्डे से वापस लौटा दिया गया था। अब हम भारत-इजरायल संबंधों की 30वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर अपना वीडियो संदेश भी जारी किया और कहा कि दुनिया में महत्वपूर्ण बदलावों के दृष्टिगत भारत और इजरायल के आपसी संबंधों का महत्व और बढ़ गया है और दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के नए लक्ष्य निर्धा​रित करने का अच्छा अवसर और हो ही नहीं सकता। 
दोनों देशों के संबंधों की शुरूआत तब शुरू हुई जब 1982 में स्वर्गीय राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री बने तो उन्होंने पूरे देश में ड्रिप इर्रीगेशन (बूंद-बूंद से सिंचाई) की जरूरत बताई थी और अपनी नजर में इसके लिए विशेष प्रावधान किया था। इजरायल ने ड्रिप इर्रीगेशन का इस्तेमाल कर अपनी सूखी धरती को हरा चमन बनाने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त कर ली थी। इजरायल ने सिंचाई प्रौद्यौगिकी प्रबंधन में हमारी मदद भी की। प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इजरायल की यात्रा की थी। 1992 में स्वर्गीय नरसिम्हाराव की सरकार ने इजरायल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे। हालांकि भारत के घरेलू दांव-पेचों के बीच इजरायल से हमारे संबंधों को लेकर हाय-तौबा मचती रही है। भारत के इजरायल से लगते फलस्तीन देश के साथ भी अच्छे संबंध रहे। फलस्तीन के ताकतवर नेता यासर अराफात तो भारत आते-जाते रहते थे। मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते देश की सरकारों ने इजरायल से दूरी बनाये रखी लेकिन राष्ट्रहितों को देखते हुए नीतिगत परिवर्तन किया गया। वर्षों तक भारत-इजरायल गोपनीय संबंध भी बने रहे लेकिन महसूस किया गया कि भारत भविष्य में इजरायल की उपेक्षा केवल घरेलू स्तर पर मुसलमान वोटों के लिए नहीं कर सकता। 
आज इजरायल दुनिया का सामरिक उद्योग क्षेत्र का महारथी माना जाता है और आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध लड़ने का माहिर भी माना जाता है। कृषि और विज्ञान के क्षेत्र में इस छोटे से देश ने जबर्दस्त तरक्की की है जबकि वह चारों तरफ अरब देशों जैसे, फलस्तीन, सीरिया, जोर्डन, मिस्र और लेबनान से घिरा हुआ है। इजरायल ने दुश्मनों से घिरे होने के बावजूद अपने अस्तित्व पर आंच नहीं आने दी। इजरायल एक ऐसा देश है जो अपने दुश्मनों को ढूंढकर मारता है। इस काम में उसकी गुप्तचर संस्था ‘मोसाद’ काफी कुख्यात है। भारत ने महसूस ​किया कि इजरायल की वैज्ञानिक प्रगति और रक्षा सामग्री उत्पादन के अनुभव का लाभ उठाने की जरूरत है। जानकार बताते हैं कि 1962 के चीन युद्ध के दौरान इजरायल ने पुरानी घटनाओं को भुलाकर भारत की हथियारों और युद्धक सामग्री में मदद की थी, तब भी सार्वजनिक तौर पर दोनों देशों ने एक-दूसरे से दूरी कर ली। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान इजरायल ने ही हमें सैन्य सामग्री दी। 
नवम्बर 2008 के मुंबई पर आतंकी हमले के बाद दोनों देशों ने आतंकवाद विरोधी सहयोग भी बढ़ाया। इजरायल और भारत के बीच बदले संबंधों की असल कहानी सार्वजनिक तौर पर 2015 में नजर आने लगी। संयुक्त राष्ट्र में इजरायल में मानवाधिकार अधिकारों के हनन संबंधी वोट प्रस्ताव के समय भारत अनुपस्थित रहा और इसी के साथ ही सार्वजनिक रूप से भारत ने इजरायल का साथ शुरू कर दिया। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही इस बात का अंदाजा था कि भारत की विदेश नीति में बड़े पैमाने पर परिवर्तित होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल की यात्रा की और तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू से मुलाकात की। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने 2006 में इजरायल की यात्रा की थी। दोनों देशों में रक्षा सौदों में बढ़ौतरी हुई। अब दोनों देशों के बीच गोपनीय प्रेस संबंध खुले प्रेस संबंधों में बदल चुके हैं। इजरायल हर तरह से भारत को सहयोग कर रहा है। मोदी सरकार के शासन में भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत किरदार के तौर पर उभरा और उसने अपने पर आधारित नीतियों को अपनाया। इजरायल भारत के लिए तीसरा सबसे बड़ा हथियारों का स्रोत है। भारत और इजरायल के प्रगाढ़ संबंधों का अर्थ मुस्लिम विरोधी होना नहीं है बल्कि जैसे-जैसे निकट परिदृष्य बदलता गया तो भारत ने भी यथार्थवादी रुख अपनाया। आज इजरायल के अरब राष्ट्रों से गहरे संबंध हैं तो भारत को अपनी विदेश, आर्थिक कूटनीति के चलते अपने हितों को देखना ही चाहिए। अब बहुत साफ है ​कि इजरायल से उच्चस्तरीय प्रगाढ़ संबंध भारत के बुलंद इरादों के ​हित में ही है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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