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भारतीय टी.वी. सीरियलों से डरा पाकिस्तान!

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इस बात से किसी की भी मतभिन्नता नहीं हो सकती कि 14 अगस्त, 1947 से पूर्व इस पृथ्वी पर पाकिस्तान नाम के देश अथवा भू-भाग का नाम न तो पाकिस्तान था और न ही इतिहास के किसी भी काल खंड में ऐसे किसी भी भौगोलिक राष्ट्र की अवधारणा ही थी। पाकिस्तान नामक किसी राष्ट्र-राज्य की संस्कृति या इतिहास का उल्लेख भी हमें इससे पूर्व में नहीं मिलता। हजारों वर्षों में जो काम भारतीय मुस्लिम साम्राज्यों के गौरी, गजनबी, गुलाम, तुगलक सैयद लोदी, तुर्क मुगल और पठान सुल्तान, बादशाह और नवाब नहीं कर सके, इसे एक अकेले मुहम्मद अली जिन्ना ने अंग्रेजों से मिलकर कर दिखाया। एक विराट भारतीय भू-भाग के हिस्से का इस्लामीकरण। यह इस्लामीकरण भारत विरोधी विचारधारा की उपज थी। देश विभाजन के दौरान खूनी दंगों ने लाखों लोगों की जान ले ली। दस लाख से ज्यादा हिन्दू, मुस्लिम और सिख मार दिए गए।

दो लाख से अधिक बच्चे नृशंसता का शिकार हो गए। मानवता कालकवलित हो गई। चिनाब लहूलुहान हो गई। इस मुल्क के नेताओं ने सतियों के शवों से भरे हुए वे कुएं भी देखे जो हिन्दू और सिख महिलाओं द्वारा अस्तित्व बचाने के लिए भर दिए गए थे। उधर पाकिस्तान बना, हर झंडा लहराया और वहां के नेताओं के हौसले बुलंद हो गए। जिन्ना और लियाकत अली ने आप्रेशन कश्मीर नामक अभियान शुरू कर दिया। चारों तरफ हलचल मची हुई थी। कबालियों के भेष में पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया। यह पाकिस्तान का जेहाद था जिसने आधा कश्मीर हड़प लिया। उसके बाद का इतिहास भारत के लोग जानते ही हैं। पाकिस्तान ने भारत से तीन-तीन युद्ध किए और लगातार पराजित हुआ।

जिस देश का जन्म ही खूनी हो उससे इस बात की उम्मीद नहीं लगाई जा सकती कि वह संस्कृति, साहित्य या इनकी विधाओं का सम्मान करेगा। पाकिस्तान एक तरफ तो भारत से रिश्ते सुधारने की बातें करता है लेकिन कश्मीर को अशांत रखने की वो पुरजोर कोशिश भी करता है। अब तो पाकिस्तान को भारतीय टी.वी. कार्यक्रमों से भी डर लगने लगा है। पाकिस्तान की शीर्ष अदालत को भी लगता है कि भारतीय सीरियल्स के कंटेंट की वजह से पाकिस्तान की संस्कृति खतरे में है। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शाकिब निसार की भी यही सोच है। शाकिब निसार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट भारतीय कार्यक्रमों के पाकिस्तान में दिखाने की इजाजत नहीं देगा। दरअसल पाकिस्तान इलैक्ट्रोनिक मीडिया रेगुलेटरी ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

हाईकोर्ट ने भारतीय कार्यक्रमों को पाकिस्तान के लिए खतरा माना था। हाईकोर्ट के आर्डर से पहले ही विदेशी कंटेंट को बैन किया जा चुका है। भारत ने कई पाकिस्तानी कलाकारों को सम्मान देकर उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया है। अदनान सामी जैसे गायकों को भारतीय नागरिकता प्रदान की है। यह सही है कि भारतीय टी.वी. सीरियलों में खुलापन आया है लेकिन यह खुलापन केवल भारत के टी.वी. कार्यक्रमों में ही आया है, ऐसा भी नहीं है, यह खुलापन बदलते जमाने के साथ-साथ पूरी दुनिया में आया है। आज दुनियाभर के सर्च इंजनों पर ढेरों ऐसे कार्यक्रम उपलब्ध हैं जो संस्कारों और मर्यादाओं का उल्लंघन करते नज़र आते हैं। सोशल साइटों पर भी ऐसा कंटेंट मौजूद है जिसे आसानी से देखा जा सकता है। केवल भारतीय मनोरंजक सीरियलों से पाकिस्तान की संस्कृति बिगड़ रही है। यह कहना पूरी तरह गलत है।

पाकिस्तान इलैक्ट्रोनिक मीडिया रेगुलेटरी अथारिटी ने भी एक गाइडलाइन जारी कर चैनलों पर कपल के बीच इंटीमेट सीन, बैड सीन, रेप सीन दिखाने पर पाबंदी लगा दी है। पाकिस्तान में समाज के सच्चे स्वरूप को ही टी.वी. पर दिखाने की नसीहत दी गई है। सच तो यह है कि पाकिस्तान में पितृ सत्ता और मर्दों की तानाशाही के खिलाफ औरतों की कहानी वाले सीरियल काफी लोकप्रिय रहे हैं। ऐसे सीरियल जिनमें महिलाओं को रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देते दिखाया जाता है, काफी पसंद किए जा रहे हैं। पिछले वर्ष सोशल मीडिया स्टार कंदील बलोच की विवादित जिन्दगी पर आधारित एक ड्रामा पाकिस्तान में काफी लोकप्रिय रहा था। कंदील बलोच अपने बेवाक बयान आैर बोल्ड सेल्फी के कारण सोशल मीडिया पर चर्चित थी। 2016 में कंदील के भाई ने ही घर में उसकी हत्या कर दी थी। पाकिस्तान के टी.वी. निर्माता निर्देशक भी ऐसे विषयों पर सीरियल बनाने लगे हैं लेकिन निशाना भारत को बनाना उचित नहीं है।

पाकिस्तान के समाज का सच्चा स्वरूप आखिर क्या है? वहां के हुक्मरानों ने अपने देश की छवि आतंकवाद की खेती करने वाले मुल्क की बना दी है और समाज को आतंकवाद की भट्टी में झोंका जा रहा है। युवाओं को आतंकवाद की ट्रेनिंग देकर उन्हें जन्नत के सब्जबाग दिखाकर मौत के मुंह में धकेला जा रहा है। महिलाओं को आज भी रूढ़िवादी संस्कारों के साथ जीने को मजबूर किया जाता है। जिस मुल्क ने आतंकवाद को अपनी संस्कृति बना लिया हो, उसे भारतीय फिल्मों और टी.वी. सीरियलों से आतंकित होना स्वाभाविक है। डर तो इस बात का है कि महिलाओं के अधिकारों आैैर आजादी से जुड़े सीरियल पाकिस्तान के अवाम को जनक्रांति की राह दिखा सकते हैं।पाकिस्तान को युवाओं को जेहादी बनाने का कंटेंट सोशल साइटों पर स्वीकार है लेकिन महिलाओं के खुलेपन का कंटेंट स्वीकार नहीं। जिस देश में समाज की मानसिकता ही खूनी हो चुकी हो उसे कोई टी.वी. सीरियल क्या बर्बाद करेगा। पाकिस्तान खुद बर्बादी के कगार पर बैठा है।

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