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भारत का पराग

दुनिया के सबसे ज्यादा लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्विटर के सीईओ को पदभार सम्भालने के बाद भारतीय मूल के पराग अग्रवाल ने महत्वपूर्ण फैसले लेने शुरू कर दिए हैं।

दुनिया के सबसे ज्यादा लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफार्म  ट्विटर के सीईओ को पदभार सम्भालने के बाद भारतीय मूल के पराग अग्रवाल ने महत्वपूर्ण फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। ट्विटर के सहसंस्थापक जैक डोर्सी ने अपने पद से इस्तीफा देकर सीईओ की कमान पराग को सौंपी है। अब दुनिया की टॉप आईटी कम्पनियों की कमान भारतीय मूल के लोगों के हाथ में है। गूगल की बात करें तो गूगल और अल्फावेट के सीईओ भारतीय मूल के सुन्दर पिचाई हैं। बिल गेट्स की कम्पनी माइक्रोसाफ्ट के सीईओ भारतीय मूल के सन्या नडेला हैं। आंध्र प्रदेश में जन्मे अरविन्द कृष्णा दुनिया की जानी-मानी कम्प्यूटर हार्डवेयर कम्पनी के चेयरमैन और सीईओ हैं। भारतीय मूल के शांतनु नारायण पड़ोवी यरमैन के प्रेसीडेंट और सीईओ हैं। उन्हें भारत सरकार ने 2019 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया था। शांतनु नाराटर ने एप्पल के साथ करियर शुरू किया था। इसके अलावा उन्होंने फार्मा कम्पनी फाइजर में भी आम भूमिका निभाई थी। इसी तरह थामस कुरियन गूगल के क्लाउड विभाग, जार्ज कुरियन भी खूब झंडे गाड़ रहे हैं। इस समय वह नेट एप कम्पनी के सीईओ हैं। भारतीय मूल की जयश्री उल्लाल लंदन में पैदा हुई थीं और नई दिल्ली में पली-बढ़ी हैं। अब वह अरिस्ता नेटवर्क्स की कमान सम्भाले हुए आईआईटी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र रह चुके निकेश अरोड़ा अमेरिका की साइबर सुरक्षा कम्पनी पालो आल्टो नेटवर्क्स के सीईओ हैं। राजीव सूरी ब्रिटिश मोबाइल सेटेलाइट कम्पनी इनमारसात के सीईओ हैं। नोकिया के सीईओ रहते उन्होंने बहुत नाम कमाया। संजय झा ग्लोबल फाउंडरीज कम्पनी के सीईओ हैं। यह सही है कि भारतीय मूल के युवाओं ने पूरी दुनिया में अपनी प्रतिभा का डंका बजाया हुआ है लेकिन उनका डंका तीखे सवाल भी खड़ा करता है। भारतीय प्रतिभाएं यहीं पली-बढ़ी हैं लेकिन हम अपनी प्रतिभाओं को सम्भाल और सहेज नहीं पाए। यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि विदेशों में भारतीय परसतिभाओ को पहचानने और उनका सम्मान करने का वातावरण है।
 दुनिया की चोटी की कम्पनियां चुन-चुन कर प्रतिभाओं को तलाशती हैं फिर उन्हें तराशती हैं और उसके बाद उनका बखूबी इस्तेमाल करती हैं। ट्विटर के जैक डोर्सी ने ट्वीट किया कि हमारी कम्पनी के बोर्ड ने सारे विकल्प तलाशने के बाद सर्वसम्मति से पराग के नाम पर सहमति जताई है। भारतीय मूल के वैज्ञानिकों को भी सफलता विदेश में ही मिली थी और उन्होंने नोबेल पुरस्कार भी जीते। जब भी भारतीय मूल के लोग कोई भी उपलब्धि हासिल करते हैं तो हर भारतीय गर्व करता है। सोशल प्लेटफार्मों पर उनके नाम ट्रैंड हो जाते हैं। उन्हें करोड़ों भारतीय युवाओं का प्रेरणापुंज माना जाता है। अब कुछ लोग पराग अग्रवाल को निशाना बना रहे हैं। उनके ​पुराने ट्विट को लेकर बहुत कुछ टिप्पणियां की जा रही हैं। पराग की सफलता चमत्कारिक और प्रेरणादायक है।
पराग अग्रवाल ने सीईओ बनने के बाद कुछ नए कदम उठाए हैं जिस पर हंगामा मचा हुआ है। ट्विटर पर पिछले दो दिनों से अचानक कई यूजर्स के फालोअर्स की संख्या घट गई, जिसके यूजर्स ने शिकायतों का अम्बार लगा दिया। विपक्षी दलों से जुड़े कई नेताओं और उनके समर्थकों ने फालोअर्स की संख्या घट जाने पर पराग अग्रवाल और भाजपा के बीच साठगांठ का आरोप तक लगा दिया। ऐसे ही कुछ आरोप सत्ता पक्ष ने भी लगाए हैं। ट्विटर ने अकाउंट फॉलो करने के लिए कुछ नियम भी तैयार किए थे। यह नियम इसलिए बनाए गए हैं ताकि फेक अकाऊंट को कंट्रोल किया जा सके। राजनीतिक दलों के सोशल मीडिया प्रकोष्ठ किस तरह से काम करते हैं और किस तरह फेक अकाउंट बनाकर उनका इस्तेमाल पार्टी के पक्ष में समर्थन तैयार करने के लिए किया जाता है। तभी तो साेशल मीडिया पर फेक कंटेट की बाढ़ आई हुई है। नए आईटी नियमो के बाद सभी सोशल प्लेटफार्मों पर से ऐसे अकाउंट पर बैन लगाना जरूरी हो गया है। सितम्बर माह में व्हाट्सएप ने 20 लाख से ज्यादा अकाउंट्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। ट्विटर द्वारा ऐसा किया जाना कोई असामान्य कदम नहीं है। 
अब सवाल यह भी है कि जैक डोर्सी ने खुद इस्तीफा देकर पराग अग्रवाल को कमान देकर क्या हासिल करना चाहा है। जैक डोर्सी और कम्पनी में बड़ा निवेश करने वाली कम्पनी चाहती है कि ट्विटर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पूरा ध्यान ट्विटर पर ही देना चाहिए। कम्पनी का लक्ष्य ज्यादा राजस्व कमाना है। पराग अग्रवाल की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह कम्पनी का राजस्व लक्ष्य पूरा करने के लिए क्या-क्या प्रयोग करेंगे। हाल ही में ट्विटर पर सियासत से जुड़े मामलों पर आरोपों की बौछार हुई थी। यह भी आरोप लगाया गया है कि ट्विटर ​किसी ​विशेष राजनीतिक दल की विचारधारा  के समर्थन में जनमत तैयार कर रही है। पराग को इन सब चुनौतियों का सामना करना ही पड़ेगा। फिलहाल भारत के पराग की महक अमेरिका में भी ​​बिखर रही है और भारत महसूस कर रहा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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