यद्यपि भारत और चीन सम्बन्ध बहुत पुराने हैं। 1962 का युद्ध और सीमा विवाद के कारण जो गलतफहमियां दोनों देशों में बढ़ीं, उसका जो नुकसान दोनों देशों को हुआ, वह तो अपने आप में एक बात है, परन्तु इसी तनातनी में पाकिस्तान ने चीन से अपने सम्बन्धों को सुधारने का प्रयास किया जिसमें वह सफल भी हो गया। आज वक्त बदल चुका है। लोग यहां और वहां जब भी प्राच्यशास्त्र पर शोध करते हैं तो पाते हैं कि दोनों देशों ने पुरानी नजदीकियों को नहीं समझा। क्या यह बात कभी भूल जाने वाली है कि महान बौद्ध धर्म भारत से ही सबसे पहले चीन पहुंचा और सन् 65 एडी में दो भारतीय बौद्ध साधू कश्यप मानंग और धर्मरत्न वहां गए, जिन्होंने बौद्ध धर्म और दर्शन से चीन को परिचित कराया, जिसकी स्मृति में आज भी वहां लुपोयांग नामक स्थल पर मठ बने हुए हैं, जो भारत-चीन सम्बन्धों की मजबूत कड़ी की प्राचीनता को दिखाते हैं। सन् 2003 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेयी ने 22 जून से 27 जून तक चीन की यात्रा की थी, जिसके प्रतिनिधिमंडल में मैं भी शािमल था और वहां हमें उन मठों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
यही नहीं, वहां हमें बताया गया कि कश्मीर ने बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार में बड़ी अहम भूमिका चीन में निभाई और ‘संगभूति एवं गौतम संघदेवा’ नामक कश्मीरी विद्वानों ने चीन की यात्रा चौथी सदी में की आैर बौद्ध धर्म का प्रचार किया। कालांतर में नालंदा विश्वविद्यालय का अस्तित्व और चीन से वहां लगातार विद्यार्थियों का आगमन, ह्यूज सांग आैर फाहियान नामक घुमंतू इतिहासकारों का भारत आगमन और सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास शायद कभी न विस्मृत किए जाने वाला इतिहास है। अगर हम बहुत ज्यादा प्राचीन बातों में नहीं जाएं तो आजादी से पूर्व चीन के क्रांतिकारी नेता सत-यान सेन ने भारत के क्रांतिकारियों रास बिहारी बोस और एम.एन. राय से मार्गदर्शन प्राप्त किया और गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने 1924 में अपनी चीन यात्रा के बाद वापस आकर शांति निकेतन की स्थापना की थी।
भारत में ‘कोटनीस की अमर कहानी’ जैसी फिल्मों का बनना, जापान के आक्रमण के समय भारत-जापान में असहमति आैर चीन को नैतिक समर्थन, चीन के सैनिक कमांडर चियांग काई शेक का भारत आना, पंचशील आदि की बातें हैं, जो इंगित करती हैं कि चन्द कूटनीतिज्ञों के पूर्वाग्रह और एकाध-दो सियासतदानों की हठधर्मिता से उपजा विवाद जो 1962 की जंग के रूप में तब्दील हो गया। युद्ध के बाद अविश्वास का जो वातावरण बना उससे भारत आज तक मुक्त नहीं हो पाया। बाद में लगातार ऐसी घटनाएं होती रहीं जिस कारण चीन के प्रति हमारा विश्वास कम होता गया। भारत के कश्मीर का एक भूभाग पाक ने चीन को उपहार स्वरूप दे दिया। चीन की भारतीय इलाकों में लगातार घुसपैठ, अरुणाचल पर नजर गड़ाए रखना ऐसी बातें हैं जिसने हर भारतीय के हृदय में यह धारणा स्थापित कर दी कि चीन ही हमारा शत्रु नम्बर वन है। जब से चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर में चीन-पाक आर्थिक गलियारा बनाना शुरू किया तब से हमारे सम्बन्धों में तल्खी आती गई।
डोकलाम विवाद से तो हर भारतीय परिचित है। डोकलाम पर गतिरोध के बाद भारत-चीन रिश्तों पर जमी बर्फ पिघली आैर विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज द्विपक्षीय सम्बन्धों पर और रिश्तों में सुधार के लिए उच्चस्तरीय संवाद की गति को तेज करने पर चर्चा के लिए चीन दौरे पर गईं आैर चीन के विदेशमंत्री वांग यी से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद तय हुआ कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी माह 27 और 28 अप्रैल को चीन दौरे पर जाएंगे और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे। वांग यी को पिछले महीने ही स्टेट काउंसलर बनाया गया है जिसके बाद वह चीन के पराक्रम में शीर्षस्थ राजनयिक बन गए हैं। साथ ही वह विदेशमंत्री के पद पर भी बने हुए हैं। इस दौरान चीन ने भारत को आश्वस्त किया है कि वह सतलुज और ब्रह्मपुत्र नदी के सम्बन्ध में वर्ष 2018 में डेटा साझा करेगा। इस साल से नाथूला दर्रे से होते हुए कैलाश मानसरोवर यात्रा भी पुनः शुरू हो जाएगी। श्रीमती सुषमा स्वराज की वांग यी से मुलाकात से ठीक पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल तथा चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के शीर्ष अधिकारी यांग जिशा के बीच बातचीत हुई थी।
मुझे याद है जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी चीन यात्रा पर गए थे तो यही सबब निकला था कि चीन के साथ भारत के रिश्ते बराबरी के स्तर पर ही तय होंगे और दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का हल पूरी तरह व्यावहारिक दृष्टि से ही निकाला जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी यही कहते हैं कि भारत आंख से आंख मिलाकर बात करेगा। भारत-चीन इस बात से सहमत हैं कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए दूसरे की भौगोलिक सीमाओं का सम्मान जरूरी है। चीन चाहे तो वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा का उपयोग अपनी विश्वसनीयता जमाने के लिए कर सकता है। सीमा विवाद का व्यावहारिक हल तलाशा जा सकता है। दोनों देश पुरानी रंजिशों काे भूलकर सीमा पर पड़ी अपनी लकीरों का पुनर्मूल्यांकन करें। बस जरूरत है ‘एक नजर प्यार भरी’ की। दोनों देशों का गठबंधन ऐसा होगा जिसे कोई दूसरा चुनौती देने वाला नहीं होगा।