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इस्राइल-भारत के सम्बन्ध

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भारत और इस्राइल के बीच औपचारिक दौत्य सम्बन्ध स्थापित हुए 25 वर्ष बीत चुके हैं और इस दौरान उस देश के प्रधानमन्त्री की यह दूसरी यात्रा है। इस बीच दोनों देशों के सम्बन्धों में बहुत परिवर्तन आया है और इस कदर आया है कि भारत के प्रधानमन्त्री भी पहली बार इस देश की पिछले वर्ष यात्रा कर आये हैं। इस्राइली प्रधानमन्त्री नेतन्याहू के सम्मान में राजधानी दिल्ली स्थित तीनमूर्ति चौक का नाम बदलकर ‘तीनमूर्ति हाइफा चौक’ रखा जाना यह बताता है कि भारत इस देश के साथ अपने सम्बन्धों में स्थायित्व लाना चाहता है लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि अरब देशों के साथ हमारे सम्बन्धों पर किसी प्रकार का विपरीत प्रभाव न पड़ने पाये क्योंकि समूचे पश्चिम एशिया के साथ भारत के एेतिहासिक-सांस्कृतिक सम्बन्ध सदियों से रहे हैं, विशेषकर फलस्तीन के नागरिकों के अधिकारों का भारत पूरे जोर-शोर से समर्थन करता रहा है।

फलस्तीन भारत का एेसा सहयोगी देश रहा है जिसने कश्मीर जैसे मुद्दे पर भारत के मत का समर्थन करने में भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई। बिना शक इस्राइल रक्षा सामग्री के क्षेत्र में विश्व के अग्रणी देशों में से एक है और उसकी कोशिश है कि भारत के साथ इस क्षेत्र में उसके सम्बन्ध ज्यादा से ज्यादा गहरे हों। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि भारत पूरी दुनिया में इस समय रक्षा आयुध सामग्री का सबसे बड़ा खरीदार है। इस क्षेत्र में इस्राइल के साथ किसी भी सौदे या समझौते को पक्का करते समय यह ध्यान रखना होगा कि जिस आयुध उपकरण के लिए भी भारत खरीद समझौता करे उसकी टैक्नोलोजी के हस्तांतरण की पुख्ता व्यवस्था हो। भारत ने इस क्षेत्र में शत-प्रतिशत विदेशी निवेश की छूट देने की घोषणा पिछले वर्ष ही कर दी थी। इससे पहले निजी क्षेत्र की आंशिक भागीदारी की नीति भी भारत ने मनमोहन सरकार के रहते ही बना ली थी। अतः रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में हमें अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा का ध्यान सर्वोपरि रखकर ही इस दिशा में आगे बढ़ना होगा।

जाहिर तौर पर इस्राइल को अमेरिका का ही विस्तार माना जाता है और पूरी दुनिया में अमेरिका इस मुल्क का सबसे बड़ा हिमायती समझा जाता है मगर हमें अपने हितों की सुरक्षा बिना किसी दबाव में आये ही करनी होगी। हाल ही में अमरीका ने जिस तरह विवादित शहर यरुशलम को इस्राइल की राजधानी घोषित किया उससे दुनिया के दूसरे मुल्क एक बार तो सकते में आ गये थे क्योंकि अमेरिका का यह कदम एकतरफा था। बाद में राष्ट्रसंघ में इस प्रस्ताव को अमेरिका ने रखा तो उसके पक्ष में केवल सात देश ही और आये। भारत ने यरुशलम के मुद्दे पर अमेरिकी प्रस्ताव के विरुद्ध मत देकर साफ कर दिया कि उसकी विदेश नीति के नियामकों को किसी के भी प्रभाव में बदलना संभव नहीं है। श्री नेतन्याहू भारत की छह दिवसीय राजकीय यात्रा पर आये हैं और इस दौरान वह अहमदाबाद व आगरा आदि भी जायेंगे। इसमें अहमदाबाद में उनका प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के साथ रोड शो करना भी शामिल है।

यह वास्तव में साहसिक कार्य इसलिए माना जायेगा क्योंकि अभी तक भारत के लोगों के मन में इस्राइल के बारे में संशय का वातावरण रहा है और आमतौर पर इस देश की छवि व्यापार करने के माहिर की है। इस संशय को हमें इस तरह दूर करना होगा जिससे लगे कि यहूदियों का यह देश भारत की विविधता में रमे सभी धर्मों के लोगों को सिर्फ भारतीय मानकर अपने सम्बन्ध तय करना चाहता है। जो भी व्यापारिक समझौते या सौदे इस्राइल व भारत के बीच में होंगे उनके केन्द्र में भारत के लोगों की उत्पादकता बढ़ाना होना चाहिए और वैज्ञानिक क्षेत्र में इस्राइल द्वारा किये गये विकास की छाप इन सौदाें पर दिखाई पड़नी चाहिए। यह देश भी केवल 70 वर्ष पहले ही अस्तित्व में आया है। इसके बावजूद इसने कृषि से लेकर औद्योगिक क्षेत्र में विभिन्न कीर्तिमान स्थापित किये हैं। हमारे लिए इसका महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि कृषि क्षेत्र में हमें कई पड़ाव पार करने हैं जिससे हमारा सर्वांगीण विकास सही अर्थों में हो सके।

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