लाला जगत नारायण जी देश के विभाजन के विरुद्ध थे। उनकी आस्था पंडित नेहरू में नहीं थी, परंतु महात्मा गांधी पर उन्हें पूर्ण विश्वास था। लालाजी ने आजादी के लिए तपस्या तो की, परंतु खंडित आजादी के वह कभी पक्षधर न थे। उन्हें लगा राष्ट्र के साथ बहुत बड़ा छल हुआ है। यही नहीं लाला लाजपत राय को अपना आराध्य मानने तथा महात्मा गांधी को अपना आदर्श बताने वाले लालाजी की बातों से लगता है कि लोगों ने महात्मा गांधी से भी छल किया। लालाजी, जो कि उस समय पंजाब प्रदेश कांग्रेस, जिसका हैड क्वार्टर लाहौर था, के जनरल सैक्रेटरी थे, के ही शब्दों में :
“मैं प्रारंभ से ही भारत के विभाजन के विरुद्ध था। अपने कई भाषणों में गांधी जी को उद्धृत करते हुए मैं कहा करता था कि भारत का विभाजन नहीं होगा लेकिन दुर्भाग्य को कौन रोक सकता है। ‘आल इंडिया कांग्रेस कमेटी’ ने तो इतना बड़ा निर्णय लेने से पूर्व पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी से भी सलाह नहीं की। यह सब बहुत दुःखद था। महात्मा गांधी को भी कुछ स्वार्थी नेताओं ने अंधेरे में ही रखा था। जब हमें लगा कि बात इतनी आगे बढ़ गई है कि विभाजन रुक नहीं सकता तो हम हिंदू और सिखों ने विभाजन रेखा तय करने वाले ‘रैड क्लिफ’ कमीशन में जाने के लिए चंदा इकट्ठा करना शुरू किया ताकि कम से कम लाहौर भारत में ही रह सके।”
बड़े-बड़े भाषण हुए। बहुत तर्क दिए गए। ‘रैड क्लिफ कमीशन’ ने लाहौर पाकिस्तान की झोली में डाल दिया और अमृतसर भारत को मिला। लालाजी ने आिखरी दम तक यह कोशिश की कि भले अल्पसंख्यकों की तरह ही रहना पड़े परंतु वह कुछ हिंदू और सिख परिवारों के साथ लाहौर में ही रहेंगे, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं निकला। अकेले लाहौर शहर में तीन दिनों के अंदर 1000 हत्याएं हो गईं। जहां हिंदू या सिख नजर आता, आततायी उन पर टूट पड़ते। लालाजी ने 16 अगस्त, 1947 तक इंतजार किया और फिर भारत की ओर कूच कर गए।
परिवार उन्होंने पहले ही इस ओर भेज दिया था। वह कैसे इस ओर आए और परिवार को कैसे करतारपुर में स्वर्गीय मरवाह जी के घर में मिले, कैसे जालंधर में कार्य शुरू किया, यह एक लम्बी दास्तां है, काश! मैं उसे सुना पाता। 1948 में लालाजी ने जालंधर में ‘हिंद समाचार’ अखबार निकालने का कार्य शुरू किया। इससे पूर्व वह महाशय कृष्ण के सुपुत्र श्री वीरेंद्र की भागीदारी में ‘जयहिंद’ अखबार निकाल रहे थे परंतु कुछ अपरिहार्य कारणाें से उसे बंद करना पड़ा। महाशय जी के दोनों सुपुत्रों नरेंद्र जी और वीरेंद्र जी ने अपना अखबार ‘प्रताप’ दिल्ली और जालंधर से निकालना शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे फिर दिन लौटने लगे। हमारी दूसरी बुआ स्वर्ण जी के ससुर श्री मैय्यादास जी के प्रोत्साहन से हिंद समाचार का जन्म हुआ। लालाजी की कलम ने पंजाब में अपनी जगह बना ली थी। 1950 में वह पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जनरल सैक्रेटरी चुने गए। लालाजी ने कांग्रेस पार्टी में महात्मा गांधी, पं. नेहरू, स. पटेल एवं नेताजी के नेतृत्व में न केवल पंजाब बल्कि पूरे भारत में एक प्रभावशाली भूमिका निभाई। फिर आया 1952 का वर्ष। लालाजी के शब्दों में : “मैं जब पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी का जनरल सैक्रेटरी हो गया तो हमें दिल्ली से बुलावा आया। सरदार पटेल ने मुझसे कहा “क्या आपके पास कांग्रेस की सेवा का समय है?” मैंने कहा-अवश्य, परंतु मेरा एक छोटा-सा अखबार है, वह भी चलता रहे, यह भी मैं चाहता हूं। 1952 में कांग्रेस ने 126 सीटों में से 98 सीटें हासिल कीं। पंडित नेहरू के खेमे में जीत अप्रत्याशित थी। उन्होंने लालाजी को बधाई दी। लालाजी के शब्दों में : “मेरे साथ 12 और लोग चुनाव लड़ रहे थे। मेरा चुनाव क्षेत्र चंडीगढ़ था। मेरा जालंधर से चुनाव लड़ना इसलिए संभव न हो सका क्योंकि सत्यपाल ग्रुप ने वहां से सीता देवी को दिल्ली वालों को कहकर सीट दिलवा दी।”
लालाजी उन दिनों को स्मरण करके कहते थे : “मैं जब अपने नामांकन पत्र दाखिल करने पहुंचा तो मुझे वहां एक भी ऐसा आदमी न मिला जिससे मेरी अंतरंग पहचान हो। कुछ लोग मेरे विपरीत कार्य कर रहे थे, इसकी जानकारी मुझे थी। मेरी पत्नी की बहन के पति उस समय नारायण गंज में तहसीलदार थे। मैंने अपने पुत्र रमेश (मेरे पिता) से कहा कि वह अपने मौसा जी से बात करें ताकि कुछ अच्छे और जाने-माने लोग मेरे साथ चल सकें।
किस तरह उन्होंने चुनाव लड़ा, कैसे सभी विरोधियों की जमानत जब्त कराकर वह जीते, यह एक लम्बी कहानी है। पंडित नेहरू ने कहा, ‘पंजाब की अप्रत्याशित जीत यह साबित करती है कि लोगों ने आजादी दिलाने में कांग्रेस की भूमिका को स्वीकारा है’, परंतु लालाजी ने कहा, “नहीं यह बात नहीं। यह जीत इसलिए हुई कि कांग्रेस ने जिन लोगों को टिकट दिए वह अधिक चरित्रवान थे।”