कल यानि रविवार 25 अगस्त 2019 के दिन आज से ठीक 40 वर्ष पूर्व मेरी और किरण की आर्य समाज मंदिर में सादे ढंग से एक रुपया शगुन के साथ शादी हुई। वर्ष 1979 में 25 अगस्त के दिन जन्माष्टमी का त्यौहार था। शादी के उपरान्त मैंने अपनी धर्मपत्नी किरण से पूछा कि अब तुम संयुक्त परिवार में रहने के लिए तैयार हाे जाओ। मैं अपने दादा, पिता, माता, चाचा और चाची की बेहद इज्जत करता हूं। अब मैं चाहूंगा कि आप भी ऐसा ही करेंगी।
किरण ने शुरू से लेकर आज तक मुझे दिए इस वादे को निभाया है। हालांकि बचपन से शादी तक किरण अकेले अपने माता-पिता के घर में ही जन्मी, पली और बड़ी हुई लेकिन हमारे संयुक्त परिवार में ऐसी घुली मानों पानी में घी-शक्कर हो। इस बीच शायद मैं कभी अपने उसूलों से फिसला था लेकिन किरण हमेशा मेेरा मार्गदर्शन कर मुझे सही रास्ते पर लाई। उसने तो मेरे से भी ज्यादा मेरे बजुर्गाें को इज्जत दी। अब जब 2018 से 2019 तक मुझे कैंसर हुआ तो मुझे पिछले 10 महीने अमरीका के न्यूयार्क स्थित MSK Hospital, Memorial Salon Kettering में रहना पड़ा।
MSK Hospital न केवल अमेरिका बल्कि दुनिया में सर्वश्रेष्ठ कैंसर अस्पताल है। महंगा तो है लेकिन मैं सोचता हूं कि जिस ढंग से मेरी दो बार इस अस्पताल में सर्जरी हुई और जहां तक इस अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ और डाक्टरों की लियाकत का सम्बन्ध है तो भगवान के बाद यह दूसरी जगह है जहां कैंसर ग्रसित हमारे जैसे रोगी को मरने नहीं दिया जाता। आगे हमारी तकदीर और भगवान की मर्जी! जिस तरह सती सावित्री यम से अपने पति सत्यवान का जीवन वापिस लाई थी, ठीक उसी तरह किरण व मेरे तीनों श्रवण पुत्र आदित्य, आकाश और अर्जुन भी 24 घंटे मेरी तीमारदारी में लगे रहे। आज मैं पहले दिन के कैंसर से पूरी तरह से ताे नहीं लेकिन 80% निकल चुका हूं।
विष्णु सहस्रनामा के अनुसार जब महाप्रलय के उपरान्त भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी की रचना की तो लक्ष्मीजी ने भगवान से प्रश्न किया- आप तो सर्वेसर्वा हो, विश्व के सभी जीव-जन्तुओं के पालनहार हो। आपको मेरी उत्पत्ति की क्या आवश्यकता है। विष्णु भगवान बोले ‘हे लक्ष्मी’ पूरे ब्रह्माण्ड में पुरुष नारी के बिना अधूरा है। पुरुष और नारी मिलकर ही पूर्ण शरीर का निर्माण करते हैं। नारी तो पुरुष की अर्धांगिनी है। एक धर्मपरायण, चरित्रवान और आखिरी समय तक पुरुष का साथ देने वाली नारी ही महान है।
मैं तो अकेला था, अब तुम्हारी उत्पत्ति के पश्चात मैं सम्पूर्ण हूं। मैं तुम्हें वर देता हूं कि मेरे नाम से पहले तुम्हारा नाम लिया जाएगा। उसके बाद ही भगवान विष्णु को ‘लक्ष्मी नारायण’ कहकर पुकारा जाता है। इसी तरह सिया राम और राधा कृष्ण की पूजा की जाती है। मैं भगवान विष्णु का भक्त हूं और किरण भगवान शिव की परम भक्त हैं। हर सोमवार शिवजी का व्रत रखती हैं। मैं भगवान विष्णु के उपरोक्त आदेश के स्वरूप ही पत्नी चाहता था। किरण ने मेरी सभी कामनाएं पूर्ण की हैं। मेरी मार्गदर्शक, मेरी दोस्त, साथी, मेरी अर्धांगिनी बनकर आज तक साथ दिया है।
मेरी हार्दिक इच्छा थी कि मुझे श्रवण कुमार जैसे पुत्र परमात्मा दे। मुझे तीन लड़कों आदित्य, आकाश और अर्जुन का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अगर आज मैं जिन्दा हूं तो मेरी पत्नी और मेरे तीनों लड़कों के अथक प्रयासों, मेहनत और प्यार का नतीजा है। लाखों लोगों की दुआएं और आशीर्वाद के साथ मैं जब इलाज के लिए 10 माह अमरीका के न्यूयार्क शहर में रहा तो मेरे बड़े बेटे और बहू ने दिल्ली में रहकर न केवल अखबार संभाला बल्कि पूरी जिम्मेदारी के साथ अपना दाियत्व निभाया।
जब मैं कैंसर से पीड़ित था और न्यूयार्क के अस्पताल में जीवन और मौत की जंग लड़ रहा था तो कुछ जयचंदों और मीरजाफरों ने विभीषण बन कर मुझ पर, किरण और मेरे तीनों लड़कों और यहां तक कि मेरे मासूम पोतों पर 25 से ज्यादा कोर्ट केस कर दिए। वक्त की नजाकत समझते हुए मैंने अर्जुन को अमेरिका से वापिस दिल्ली भेजा और आदित्य तथा आकाश ने इन जयचंदों-मीरजाफरों का कोर्ट-कचहरी में मेरी अनुपस्थिति में डट कर मुकाबला किया। आज हम लगभग सभी कोर्ट केसों से बाहर निकल चुके हैं और वही मीरजाफर तथा जयचन्द अपने ही फैलाए जाल में फंस चुके हैं।
किरण और छोटे दोनों बेटों ने न्यूयार्क के अस्पताल में दिन-रात मेरी सेवा की जिसका नतीजा है मैं यह लेख लिख रहा हूं। भगवान ऐसी पत्नी और पुत्र सबको देें। शादी के बाद किरण ने जब हमारे परिवार में प्रवेश किया तो कुछ ही दिनों में मेरे दादाजी और माता-पिता का दिल जीत लिया। इस दौरान मेरी पूज्य दादी की इच्छा जो हमेशा किरण की फोटो अपनी रामायण में रखती थी, पूरी न हो सकी और वे 1979 के शुरू में ही स्वर्ग सिधार गईं लेकिन जाते-जाते मेरे दादाजी से यह प्रण लिया कि मेरे पोते अश्विनी आैर किरण की शादी में मेरी मौत अड़चन नहीं बनेगी। फिर अपने गहनेे भी दादाजी को दिए कि वो अपनी पोतनूंह के गले में खुद डाल दें। लालाजी ने ऐसा ही किया।
फरवरी 1979 काे हमारी दादी स्वर्ग सिधारीं और अगस्त 1979 में पहले से तय समय में मेरी शादी करवा दी गई। लालाजी ने अपने हाथों से मेरी दादी के गहने किरण को डाले। मेरे दादाजी को मेरी पत्नी किरण से बेहद प्यार था। किरण भी मेरे दादाजी को बहुत आदर देती थी। मैं हर रात को दादाजी की टांगें दबा कर उन्हें सुलाता। सुबह लालाजी के प्रोग्राम बाहर जाने के बने होते तो सर्दी के मौसम में भी किरण सुबह पांच बजे उठकर दादाजी के लिए तेल के स्टोव पर पानी गर्म करके देती और अपने हाथों से परांठे आैर सब्जी बनाकर उन्हें साथ ले जाने के लिए ‘पैक’ करके दे देती थी।
एक दिन सर्दी की सुबह हम दोनों सो रहे थे कि बाहर से आवाज आई ‘किरण-किरण’! मैं नींद में था, बाेला कौन है? बाहर से आवाज आई ‘जगत नारायण’। मैं उठकर बैठ गया और किरण भी हड़बड़ा कर उठी। फिर किरण बोली ‘बाऊजी मैं उठ गई और आ रही हूं’। हम दोनों पहले तो घबराए, फिर किरण ने मुझे दिलासा दिया ‘मैं संभाल लूंगी’। बाहर जाकर किरण दादाजी के कमरे में गई और उनके पांव छूकर, जो कि वो हर सुबह छूती थी, दादाजी से माफी मांगी। इस तरह लालाजी के गुस्से को शांत किया। इस दौरान मैं अपनी मां के परिवार के बारे में भी कुछ लिखना चाहता हूं।
मेरे नानाजी स्व. कुन्दन लाल चड्ढा का परिवार भी भारत-पाक बंटवारे पर लाहौर से भारत आया था। मेरे नानाजी के.एल. चड्ढा 15 अगस्त 1947 के दिन पूरे परिवार के साथ शिमला में थे। शिमला अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। मेरे नानाजी अंग्रेज शासन में ब्रिटिश फौज के ऑडिटर जनरल (Auditor General) थे। अंग्रेजीयत में पूर्ण रूप से रंगे हुए। उनके तीन बेटे और तीन बेटियां थीं। मेरी मां नीचे से उनकी तीसरी बेटी थी। मेरे तीन मामों में सबसे बड़े स्वर्गवासी अविनाश चड्ढा ने किंग्स मैडिकल कालेज लखनऊ से अपनी मैडिकल की पढ़ाई की थी।
उन्हें स्वर्ण पदक से नवाजा गया था। मेरे दो छोटे मामे स्व. कर्नल सतीश चड्ढा को उनकी बहादुरी के लिए 1966 में भारतीय फौज का ‘वीर चक्र’ मिला था जबकि परिवार में सबसे छोटे दीपक चड्ढा भी लै. कर्नल के तौर पर रिटायर हुए। बाद में मेरे सबसे बड़े मामा अविनाश चड्ढा इंग्लैंड में जा बसे। उन्होंने रोमन कैथेलिक आयरिश अंग्रेज ‘डा. आईलिन’ से शादी रचाई। आज भी 90 वर्ष की आयु में मेरी मामी लंदन में रह रही हैं। मेरे स्व. अविनाश मामाजी ने इंग्लैंड में एक हार्ट सर्जन के तौर पर बहुत नाम कमाया। मैं जीवन में दाे बार किरण और बच्चों समेत उनके पास रहा।
मामाजी और मामीजी से बहुत प्यार मिला। मेरे नानाजी की एक बहन का विवाह खुखरैन बिरादरी के ही श्री कीमती राम आनंद के साथ गुरदासपुर में हुआ। उनके तीनों लड़के तीन दशक तक मुम्बई की फिल्मी दुनिया पर छाए रहे। बड़े बेटे चेतन आनंद, देव आनंद और गोल्डी आनंद। मेरी मां के इन फुफेरे भाइयों को भारत की फिल्मी दुनिया का सितारा कहा जाता है। खासतौर पर देव आनंद तो फिल्मी सितारे थे। मेरी देव आनंद से आखिरी मुलाकात तब हुई जब हम दोनों अटल जी की बस पर सवार होकर लाहौर गए। उससे पहले कई बार मुम्बई क्रिकेट खेलने जाता था। कई बार देव जी के जुहू के बंगले में साथ भी रहा।
लाहौर बस में यात्रा के दौरान देव जी बार-बार मुझे गले लगाते रहे और आशीर्वाद देते रहे। देव साहिब खुद भी तो गवर्नमैंट कालेज लाहौर में पढ़ते थे। चेतन आनंद जी की याद मुझे ताजा हो जाती है क्योंकि मेरी पत्नी किरण अदाकारी में बेहतरीन थी, एक्टिंग के अलावा ‘मोनो एक्टिंग’ में उस जैसा ‘एक्टर’ मैंने आज तक नहीं देखा। आज भी जब हम बड़े-बड़े लोगों से मिलते हैं और मैं किरण से इन लोगों की नकल करने को कहता हूं तो किरण हूबहू ऐसी नकल करती है कि हम दोनों हंस पड़ते हैं। यही हम दोनों के जीवन के स्वर्णिम पल हैं।
किरण ने जब उन दिनों पंजाब में चल रहे ‘यूथ फैस्टिवल’ में अपने कालेज की ड्रामा टीम की मुख्य किरदार, ‘गिद्दा डांस’ (पंजाब का डांस) किया, ‘कैप्टन’ और मोनो एक्टिंग में तीन स्वर्ण पदक प्राप्त किए तो चेतन आनंद तीन दिन तक उस समारोह में बैठे रहे। चेतन साहिब उन दिनों अपनी एक नई फिल्म बनाने जा रहे थे। उन्हें किरण इस कदर पसंद आई कि उन्होंने किरण को अपनी नई फिल्म जो बनाने जा रहे थे ‘हीर रांझा’ में हीरोइन के तौर पर पेशकश कर दी, बाद में चेतन आनंद की यह हीर रांझा हिट साबित हुई। लेकिन किरण के पिता स्व. श्री विष्णु दत्त त्रिखा जी नहीं माने। वे बोले कि चाहे कुछ भी हाे जाए, वे अपनी बेटी किरण को फिल्म लाईन में नहीं भेजेंगे। चेतन आनंद जी का ‘आफर’ ठुकरा दिया गया।
मैं समझता हूं कि किरण के पिता का यह सही निर्णय था वरना मेरी शादी किरण से कैसे होती? सब किस्मत की बातें हैं। शादी के बाद मुम्बई में एक दिन जुहू में देव जी के बंगले पर डिनर पार्टी में चेतन आनंद जी से मुलाकात हुई तो मैंने किरण से भी मिलवाया। पहले तो उन्होंने हम दोनों को आशीर्वाद दिया। बाद में बोले किरण बेटा मैं तो तुम्हें अपनी नई फिल्म की हिरोइन बनाना चाहता था, अगर तुम मेरी बात मान लेती तो आज मुम्बई फिल्मी दुनिया की सबसे सफल और सुप्रसिद्ध स्टार होती।
किरण ने चेतन आनंद जी के पांव हाथ लगाए और कहा ‘मुझे माफ कर दीजिए’। बाद में जब जालन्धर और उससे पहले अमृतसर में दूरदर्शन के स्टूडियो बने तो किरण देश की पहली न्यूज रीडर बनी। शादी के बाद किरण ने दूरदर्शन की न्यूज रीडरी की यह शौक-शौक में की नौकरी छोड़ दी। उसके बाद मेरी और किरण की कई मुलाकातें मामाजी देव और मामाजी चेतन आनंद जी के साथ लंदन स्थित अविनाश मामाजी के भारी-भरकम एवं सुन्दर और एक पहाड़ी पर स्थित Falnham Surry के महलनुमा बंगले पर होती थी।
मेरे मामाजी अविनाश चड्ढा का बंगला इतना विशाल था कि उसमें 20 बैडरूम, 5 डाइनिंग और ड्राइंगरूम और स्विमिंग पूल भी बना था। देव आनंद, चेतन आनंद और गोल्डी आनंद अपने लंदन प्रवास पर यहीं इस बंगले में ठहरते थे। खासतौर पर मेरे मामा देव साहिब ने अपनी फिल्में जैसे ‘गाईड’, ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ और ‘जानी मेरा नाम’ जैसी हिट फिल्मों की स्क्रिप्ट यहीं इस बंगले में महीनों ठहर कर लिखी थी। मामा चेतन आनंद जी ने भी अपनी हिट फिल्मों ‘आखरी रात’ और ‘हीर रांझा’ की स्क्रिप्ट भी लंदन स्थित इस घर में लिखी थी। मेरी मां का परिवार तो फिल्मी दुनिया में देव, चेतन और गोल्डी के बाद भी छाया रहा।
मेरी मां की दूसरी छोटी बुआ यानि मेरे नानाजी की दूसरी बहन की लड़की की शादी उन दिनों के बेहतरीन और सफल अभिनेता नवीन निश्चल से हुई थी। इसी तरह मेरे नानाजी की तीसरी बहन की लड़की की शादी फिल्मी दुनिया के बेहद चर्चित लेखक और फिल्म निर्माता शेखर कपूर के साथ हुई। इस तरह मेरी मां और मेरा नानका परिवार उच्चतम फिल्मी सितारों, पढ़े-लिखे डाक्टरों और फौजी अफसरों से भरा पड़ा था। मुझे अपनी मां की विरासत पर भी नाज है। (क्रमशः)