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It’s My Life (49)

इधर निरंकारियों का केस पंजाब से करनाल ट्रांसफर हुआ और लालाजी इस केस में मुख्य गवाह बनाए गए। उधर पंजाब में भिंडरांवाला समर्थक आतंकवादियों ने प्रदेश में आतंकवाद की इक्का-दुक्का वारदातें शुरू कर दीं।

इधर निरंकारियों का केस पंजाब से करनाल ट्रांसफर हुआ और लालाजी इस केस में मुख्य गवाह बनाए गए। उधर पंजाब में भिंडरांवाला समर्थक आतंकवादियों ने प्रदेश में आतंकवाद की इक्का-दुक्का वारदातें शुरू कर दीं। इस दौरान एक बहुत महत्वपूर्ण दुर्घटना घटित हुई। भिंडरांवाला के समर्थक आतंकियों ने निरंकारी बाबा की हत्या कर दी। इस हत्या के दो कारण ​थे। पहला तो यह कि इन आतंकियों ने अमृतसर में हुए निरंकारियों के साथ झगड़े में मारे गए आतंकवादियों का बदला लिया। दूसरे पूज्य दादा लाला जगतनारायण जी को यह संदेश दिया कि अगर उन्होंने निरंकारियों के हक में कोर्ट में गवाही दी तो उनकी भी हत्या निरंकारी बाबा जैसे की जाएगी। इस दौरान वक्त बीतता गया और अंततः करनाल कोर्ट की अदालत ने वर्ष 1980 में लालाजी को गवाही देने के लिए बुलावा भेजा। 
उधर सभी प्रमुख अकाली नेताओं पर भी भिंडरांवाला और आतंकियों का दबाव बढ़ने लगा। सभी को अपनी जान प्यारी थी। अकालियों ने भी एक नया सत्याग्रह शुरू कर दिया। उन्होंने केंद्र से यह डिमांड रख दी कि दिल्ली से अमृतसर तक चलने वाली फ्लाईंग मेल (Fling Mail) ट्रेन का नाम बदलकर गोल्डन टैंपल एक्सप्रेस (Golden Temple Express) रखा जाए। पंजाब को पूर्ण रूप से चंडीगढ़ पर कब्जा मिले और हरियाणा की राजधानी कहीं और नई बनाई जाए तथा SYL कैनाल पर पंजाब का पूर्ण हक हो आैर प्रदेश को ज्यादा पानी मिले। उधर आतंकवादियों के दबाव में आनंद साहिब मता (Anand Sahib Resulation) अकालियों ने केंद्र के समक्ष रखा हुआ था, जिसमें अमरीका के फैडरल सिस्टम की तरह पंजाब को ज्यादा अधिकार दिए जाएं। 
पंजाब में मामला विस्फोटक होता चला जा रहा था। वहीं भिंडरांवाला आगे चलकर भस्मासुर साबित हुआ। भस्मासुर वह था जिसने शिवजी की घोर तपस्या करके उनसे यह वर प्राप्त किया था कि वह जिस पर भी अपना हाथ रखेगा वह व्यक्ति वहीं भस्म हो जाएगा। वर प्राप्ति के उपरांत भस्मासुर ने कहा कि पहला हाथ तो महादेव तुम पर ही रखूंगा। महादेव शिव भाग पड़े और आगे-आगे वो और पीछे-पीछे भस्मासुर। सभी देवता घबरा गए। आखिर विष्णु जी को मोहिनी रूप धारण करना पड़ा और उन्होंने अपनी हसीन अदाओं से भस्मासुर पर प्रेम की पींगें बढ़ा दीं। भस्मासुर ने मोहिनी से कहा कि मैं तुमसे प्रेम करता हूं और विवाह करना चाहता हूं। 
मोहिनी बोले पहले अपने सिर पर हाथ रखकर कसम खाओ। काम में मस्त भस्मासुर ने अपने ही सिर पर हाथ रख दिया और भस्म हो गया। ठीक वैसे ही  भिंडरांवाला दोधारी तलवार साबित हुआ। कांग्रेस पार्टी से दुश्मनी हो गई, उधर अकाली नेताओं में भी मौत का खौफ बढ़ने लगा। अकालियों की नई डिमांड और आनंद साहिब मते ने धीर-धीरे पूरे पंजाब को आतंकवाद के घेरे में ले लिया। तब लालाजी ने 1981 के शुरू में अपने लेखों में लिखा कि “अगर आनंद साहिब मता केंद्र सरकार मान जाती है तो फिर पंजाब के बाद देश के सभी प्रदेश इसकी डिमांड करेंगे और केंद्र के अधिकार खत्म हो जाएंगे तथा भारत का लोकतांत्रिक ढांचा और प्रदेशों पर केंद्र का कंट्रोल खत्म हो जाएगा। 
आनंद साहिब मता एक देश विरोधी मांग है। इसलिए मैं इसका विरोध करता हूं।  जहां तक पंजाब को चंडीगढ़, अधिक पानी और गोल्डन टैम्पल एक्सप्रेस का प्रश्न है तो मैं अकाली नेताओं से पूछता हूं कि अगर चडीगढ़ पंजाब को मिलेगा, गोल्डन एक्सप्रेस नाम बदलना है और पंजाब के किसानों को ज्यादा पानी देना है तो मुझे कोई ऐतराज नहीं। आखिर पंजाब में आज भी 45 प्रतिशत हिंदू रहते हैं। 
अगर पानी ज्यादा मिलेगा तो सिखों के साथ हिंदू किसानों को भी तो फायदा मिलेगा। इसलिए मैं अकाली नेताओं से प्रार्थना करता हूं कि इन सभी मुद्दों पर पंजाब प्रदेश का माहौल खराब न करें। इन मुद्दों को केवल सिखों की मांग न बनाएं। यह पूरे पंजाब में रहने वाले सिख और हिंदुओं की डिमांड हो सकती है। इसलिए आनंद साहिब मते को छोड़ अन्य तीनों डिमांडों में मैं अकालियों के साथ केंद्र के विरुद्ध सत्याग्रह में बैठने को तैयार हूं।” आतंकवादी अकाली नेताओं को लगा कि अगर लालाजी ने इन सभी मांगों पर सिख-हिंदू एकता का नारा दे दिया और वे सफल हो गए तो उनका जो प्लान था हिंदू और सिखों को आपस में लड़ाना, यह योजना तो फेल हो जाएगी। 
उधर सभी अकाली नेताओं पर भिंडरांवाला का दबाव बढ़ रहा था कि लालाजी को करनाल कोर्ट में जाने से रोको। अगर लालाजी ने सही गवाही दे दी तो निरंकारी छूट जाएंगे। मुझे आज भी याद है पंजाब के मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल आैर पंजाब गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान श्री गुरचरण सिंह टोहरा लालाजी से मिलने हमारे जालंधर दफ्तर में पधारे। उन्होंने लालाजी से कहा कि आप निरंकारियों और भिंडरांवाला के पचड़े में क्यों पड़ते हो, ये केस जैसे चल रहा है वैसे ही चलने दो। 
आप केस में गवाही मत दो लेकिन लालाजी बोले मैं कैसे इस गवाही को रोक सकता हूं ? मुझे तो करनाल कोर्ट से गवाही देने के लिए पेश होने के सम्मन आ चुके हैं। बादल और टोहरा ने लालाजी को बहुत समझाया तो लालाजी ने कहा अच्छा मैं सोचता हूं। यह सभी बातें मेरे समक्ष हुई थीं इसलिए जब अकाली नेता चले गए तो मैंने दादाजी से पूछा अब आप क्या करोगे। लालाजी बोले तू मेरी मनोस्थिति को नहीं समझेगा, अभी छोटा है। फिर भी मैं तुम्हें बताता हूं कि मैंने पूरी जिदंगी झूठ नहीं बोला। मुझे पता है कि अगर मैं करनाल कोर्ट के समक्ष पेश हुआ तो मुझे सत्य ही बोलना पड़ेगा। 
एक तो मेरा दिल झूठ बोलने को नहीं मान रहा। दूसरे मैंने आतंकियों और निरंकारियों की मुठभेड़ के पश्चात यह सम्पादकीय अगले ही दिन लिख दिया था कि निरंकारियों ने अपने आत्मरक्षा में गोलियां चलाई थीं। अगर ऐसा हुआ तो यहे भिंडरांवाला और उसके आतंकी समर्थक मुझे नहीं छोड़ेंगे और मुझे सत्य बोलने की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, इसकी कीमत तो पूरे परिवार को चुकानी होगी लेकिन मैं सत्य ही बोलूंगा। इधर करनाल कोर्ट में गवाही की तारीख नजदीक आती गई और उधर लालाजी पर उनकी अंतरात्मा और अकालियों के बीच दबाव बढ़ने लगा। 
इस दबाव की वजह से 81 वर्षीय लालाजी का ब्लड प्रेशर बढ़ गया और उन्हें माइल्ड एंजाइना का अटैक हो गया। लालाजी ने करनाल कोर्ट को प्रार्थना पत्र भेजा कि क्योंकि उन्हें हार्ट प्राब्लम है इसलिए करनाल कोर्ट में पेश नहीं हो सकते लेकिन कोर्ट ने एक स्पैशल जज नियुक्त कर दिया जिसको यह अधिकार दिए गए कि वह जालंधर जाकर रोगग्रसित लालाजी की गवाही रिकार्ड करके कोर्ट में पेश करे। आज 9 सितम्बर 2019 से ठीक 38 वर्ष पूर्व शाम छह बजे जब लालाजी अपनी कार में पटियाला से जालंधर आ रहे थे तो मोटरसाइकिल पर सवार तीन आतंकवादियों ने लुधियाना के पास गोलियां चलाकर लालाजी का शरीर छलनी कर दिया और उनकी हत्या कर दी गई। 
लालाजी को तो खुद आभास  रहा था कि जिस सच्चाई, निर्भीकता और साहस से उन्होंने जीवन जिया था, उसका अन्त एक न एक दिन ऐसा ही होगा। वो मुझे कहा करते थे कि मैं पलंग पर नहीं मरूंगा, मुझे तो चलते-फिरते गोली से मारा जाएगा। लालाजी की हर बात सत्य साबित हुई। इस संबंध में अगले लेखों में मैं विस्तार से लिखूंगा।जब करनाल कोर्ट का स्पैशल जज हमारे घर लालाजी की गवाही रिकार्ड करने आया तो उस समय मैं भी वहां मौजूद था। जज ने लालाजी से सीधा प्रश्न पूछा- लाला जी 13 अप्रैल 1977 के दिन जब भिंडरांवाला समर्थक और निरंकारियों की मुठभेड़ हुई आप वहां मौजूद थे? लालाजी ने कहा- हां मैं वहीं मौजूद ​था। 
जज ने पूछा आपने क्या देखा? लालाजी बोले भिंडरांवाला समर्थक बंदूकें उठाए निरंकारियों के सम्मेलन की तरफ हमला करने के इरादे से दौड़ रहे थे। मैंने उन्हें समझाया ऐसा न करो, लेकिन वो नहीं माने। इस बीच निरंकारी भी बंदूकें लेकर सम्मेलन स्थल से बाहर आए और दोनों गुटों में मुठभेड़ हुई। निरंकारी अपनी आत्मरक्षा में बाहर आए और दोनों ओर से गोलियां चल रही थीं, इस बीच मैं वहां से चला आया। जज ने पूछा जो बात आप बता रहे हो क्या यही बातें आपने अगले दिन के पंजाब केसरी में अपने सम्पादकीय में लिखीं? लालाजी- हां मैंने वही ब्यौरा सत्य और निष्ठा से कहता हूं अगले दिन अपने सम्पादकीय में लिखा है। 
लालाजी से झूठ नहीं बोला गया और उन्होंने सच-सच सारी बातें स्पैशल जज को बता दीं। लालाजी की गवाही खत्म हुई और इसी के आधार पर हिरासत से सभी निरंकारी छोड़ दिए गए। इनमें से एक निरंकारी नेता गोबिंद सिंह की भी रिहाई हो गई। लालाजी की सच्चाई की खातिर निरंकारियों की रिहाई हुई और अकालियों के आतंकी ग्रुप को ठेस पहंुची। इसके बाद जून 1981 में अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के गुरुनानक निवास और भिंडरांवाला के चौक मेहता का दौरा ​िकया। जो रिपोर्ट मैंने बनाई वह आखें खोलने वाली थी। जब मैंने यह रिपोर्ट पंजाब केसरी, हिंद समाचार आैर हमारे नए शुरू हुए पंजाबी समाचार पत्र जगबाणी में प्रकाशित की तो पूरा पंजाब दहल उठा। इन रिपोर्टों के प्रकाशित होने के उपरांत बाद में पूज्य दादाजी और पिताजी ने कैसे इन मुद्दों पर सम्पादकीय लिखे और उसके बाद पूरे पंजाब केसरी परिवार को इसका खामियाजा चुकाना पड़ा।

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