जम्मू-कश्मीर और लद्दाख : उलझते सवाल - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख : उलझते सवाल

जम्मू-कश्मीर में 2 लाख 31 हजार जवान अभी भी तैनात हैं। इन जवानों में से केवल 7200 नियमित सैनिक हैं। इनके अलावा 50,000 जवान आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए तैनात हैं।

यद्यपि गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर से केन्द्रीय सशस्त्र बलों के करीब 7200 ​जवानों को हटाने का ऐलान कर दिया है। सीआरपीएफ की 24, बीएसएफ की 12, आईटीबीपी की 12, सीआईएसएफ की 12 और एसएसबी की 12 कम्पनियों को हटाया गया है। सशस्त्र बलों की इन कम्पनियों को हटाने की प्रक्रिया भी तुरन्त शुरू कर दी गई है। जम्मू-कश्मीर में 2 लाख 31 हजार जवान अभी भी तैनात हैं। इन जवानों में से केवल 7200 नियमित सैनिक हैं। इनके अलावा 50,000 जवान आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए तैनात हैं। 
शेष बचे सैनिकों में अर्धसैनिक बलों और सैन्य संचार सेवा के जवान शामिल हैं। अगस्त में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दौरान केन्द्र सरकार ने अतिरिक्त जवानों की तैनाती की थी। वहीं जुलाई में अमरनाथ यात्रा के समय करीब 40 हजार सैनिक यात्रियों की सुरक्षा के लिए तैनात किए गए थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा के लिए केन्द्र भारी-भरकम खर्च कर रहा है। यह भी सही है कि अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाए जाने के बाद एक भी गोली नहीं चली है। सुरक्षा बलों द्वारा आतंकवादियों का सफाया लगातार किया जा रहा है। 
जम्मू-कश्मीर में 17 नवम्बर, 1956 को जो संविधान पारित ​किया था, वह पूरी तरह से खत्म हो गया है। अब वहां भारतीय संविधान पूरी तरह लागू है। अब केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर विधानसभा होगी। लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी, वह उपराज्यपाल के अधीन होगा। अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सम्पत्तियों के बंटवारे पर घमासान चल रहा है। सम्पत्तियों के बंटवारे के लिए एक पैनल गठित किया गया है। दो राज्यों में सम्पत्तियों का बंटवारा कोई सहज नहीं होता। इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है। यह पैनल अपनी रिपोर्ट दो माह बाद देगा। 
पैनल दिल्ली, अमृतसर, चंडीगढ़ और मुम्बई में और अन्य राज्यों में अचल सम्पत्तियों का बंटवारा तय करेगा। फार्मूले के अनुसार सम्पत्तियां 80-20 के अनुपात में बांटे जाने की सिफारिश पर विचार किया जा रहा है परन्तु जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों का कहना है कि बंटवारा दोनाें केन्द्र शासित प्रदेशों की आबादी के हिसाब से हो। इसलिए जम्मू-कश्मीर का हक ज्यादा सम्पत्ति पर बनता है। इसका तर्क है कि कुछ वर्ष पूर्व राज्य वित्तीय आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट में केवल 13.5 फीसदी संसाधन लद्दाख डिवीजन के लिए देने की सिफारिश की थी परन्तु इस रिपोर्ट को राज्य सरकार ने कभी स्वीकार नहीं किया। 
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि राज्य से बाहर की अचल सम्पत्तियों में से लद्दाख को कितना ​हिस्सा दिया जाए। दिल्ली, अमृतसर, चंडीगढ़, मुम्बई के अलावा दिल्ली के राजाजी मार्ग स्थित कश्मीर हाउस और चाणक्यपुरी में जम्मू-कश्मीर हाऊस है। कश्मीर हाऊस का इस्तेमाल फिलहाल सेना कर रही है और वह भी इसे खाली करने को तैयार नहीं। अचल सम्पत्तियों का बंटवारा किस अनुपात में किया जाए यह एक बड़ी चुनौती है। अकबर रोड स्थित राज्य सरकार को आवंटित बंगले का बंटवारा हो ही नहीं सकता। 
सम्भव है कि केन्द्र सरकार लद्दाख को अपनी तरफ से कोई सम्पत्ति अलाट करे। एक और चुनौती विभिन्न विभागों के अधिकारियों के बंटवारे को लेकर है। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून के प्रावधानों के अनुसार अधिकारियों को दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों में से किसी एक को चुनने की छूट दी गई है। इस बात की आशंका है कि अधिकांश अधिकारी जम्मू-कश्मीर को चुनेंगे और लद्दाख में काफी पद रिक्त हो जाएंगे। बिना विधानसभा के रिक्तियों पर भर्ती यूपीएससी द्वारा की जाएगी। इससे लद्दाख के स्थानीय लोगों को बड़ा नुक्सान होगा। इससे कई तरह की आशंकाएं पैदा हो गई हैं। इससे सीमांत राज्य की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। 
इन सब चुनौतियों के बीच जम्मू-कश्मीर में तमाम पाबंदियों के चलते 5 महीनों में करीब 15 हजार करोड़ का नुक्सान हो चुका है। कश्मीर चैम्बर आफ कामर्स का कहना है कि इंटरनेट सेवाओं, आंदोलन, हड़ताल से रोजगार को नुक्सान हुअा है। केन्द्र के फैसले से हस्तशिल्प, पर्यटन और ई-कामर्स क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। सभी प्लेटफार्मों पर इंटरनेट सेवाओं और प्रीपेड मोबाइल सेवाओं पर अब भी अंकुश के चलते हस्तशिल्प क्षेत्र में ही 50,000 लोगों ने रोजगार गंवाया है। इस वजह से यहां के व्यापारियों को नए आर्डर नहीं मिल रहे। 
होटल और रेस्त्रां उद्योग में 30 हजार से अधिक लोगों ने नौकरी खो दी है। ई-कामर्स क्षे​त्र, जिसमें आनलाइन खरीद के लिए कूरियर सेवाएं शामिल हैं, में भी दस हजार लोगों ने नौकरियां खोई हैं। जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को हुए भयंकर नुक्सान से उबरने के ​लिए काफी लम्बा समय लग सकता है। पर्यटन उद्योग उस दिन का इंतजार कर रहा है जब स्थितियां सामान्य हों और पाबंदियां हटें और जनजीवन सामान्य हो। इस समय तो लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पैदा करने के लिए ही खरीदारी के लिए इतवारी बाजार में निकलते हैं। बहुत से सवाल उलझे पड़े हैं। कहीं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में नई सुबह का इंतजार करने के लिए बहुत लम्बा समय न लग जाए, इसके लिए केन्द्र को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 × 1 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।