महर्षि कश्यप की भूमि कश्मीर प्राचीनकाल में ही हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का पालना रहा है। मध्य युग में मुस्लिम आक्रान्ता कश्मीर पर काबिज हो गए। कुछ मुसलमान शाह और उनके अधिकारी हिन्दुओं से अच्छा व्यवहार करते थे। कश्मीर घाटी को दुनिया की जन्नत माना जाता है। कश्मीर केसर की खेती के लिए प्रसिद्ध है। कश्मीरी शॉल की बुनाई तो बाबर के समय से ही चली आ रही है। अखरोट, बादाम, नाशपाती, सेब तथा मधु का निर्यात किया जाता रहा है। डल झील, शालीमार, निशात आदि रमणीक बागों के चलते सम्राट अशोक वर्धन द्वारा स्थापित श्रीनगर शहर आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है।
कभी श्रीनगर की वादियों में, पहलगाम जैसे रमणीय शहर में फिल्मों की शूटिंंग होती थी। हसीन वादियों में अपने प्रिय फिल्मी सितारों को देखने के लिए कश्मीरी अवाम सड़कों पर उमड़ पड़ता था और पुलिस को भीड़ को सम्भालने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी लेकिन अफसोस पड़ोसी पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर के भीतर बैठे नागों ने लगातार षड्यंत्र रचकर घाटी का माहौल ऐसा जहरीला बना दिया जिसकी बहुत भारी कीमत भारत को चुकानी पड़ी। आये दिन घुसपैठ, गोलीबारी और आतंकी धमाके होते रहे।
90 के दशक में आतंकवाद ने अपना सिर फैलाना शुरू किया। पिछले 37 वर्षों में 23 जून 2019 तक 47,334 आतंकी घटनाएं हुईं जिसमें 14,903 नागरिकों की मौत हो गई। इस दौरान 6,524 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए और 23,745 आतंकवादी मारे गए। नरेन्द्र मोदी सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अनुच्छेद-370 के तहत राज्य को मिले विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया। साथ ही जम्मू-कश्मीर को केन्द्रशासित राज्य बना दिया गया। साथ ही लद्दाख को अलग कर इसे भी केन्द्रशासित बना दिया गया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य का भूगोल और इतिहास बदल गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनुच्छेद-370 खत्म करने के बाद पहली बार राष्ट्र को सम्बोधित कर कश्मीरी अवाम को भरोसा दिलाया कि अब उन्हें वह सभी सुविधाएं मिलेंगी जो देश के अन्य राज्यों के लोगों को मिलती हैं। केन्द्र सरकार को उनकी सुविधाओं और जरूरतों का पूूरा ध्यान रहेगा। आतंकवाद के चलते केन्द्र की सरकारों और कश्मीरी अवाम के बीच संवाद का तंत्र काफी कमजोर रहा। जेहादी संगठनों और अलगाववादियों ने युवाओं को बरगलाकर उनका जीवन तबाह कर दिया। कश्मीरी बच्चे शिक्षा और रोजगार में पिछड़ते चले गए।
मुझे याद है कि नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने से पहले उन्होंने 2013 में जम्मू की रैली में यह कहकर पार्टी के अन्दर और बाहर बहस छेड़ दी थी कि अनुच्छेद-370 पर चर्चा होनी चाहिए कि वह जम्मू-कश्मीर की आम जनता के लिए कितना फायदेमंद रहा। गुरुवार के अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री ने कश्मीरी अवाम को अहसास दिलाया कि धारा-370 और 35-ए के चलते उनका बहुत नुक्सान हुआ। देशभर में लागू कानून का लाभ लेने से वे वंचित रहे। उन्होंने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के विकास का वादा कर राज्य में शिक्षा और रोजगार के नए अवसर सृजित करने का भरोसा दिलाया। अटल जी कश्मीर की समस्या का समाधान जम्हूरियत, कश्मीरियत और इन्सानियत से करने में विश्वास रखते थे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ऐसा ही भरोसा कश्मीरी अवाम को दिया है। सरकार ने राज्य के कर्मचारियों और पुलिस कर्मचारियों को केन्द्रीय अधिकारियों के बराबर सुविधाएं देने का भरोसा दिया है। कश्मीर में सरकारी नौकरियों के प्रति ललक है, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि आतंकवादी संगठनों की धमकियों के बावजूद वहां के युवा सेना और पुलिस में भर्ती होते रहे हैं। हालांकि आतंकवादी संगठन सेना और पुलिस में भर्ती हुए युवाओं को गोलियों का निशाना बनाते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों का आर्थिक पिछड़ापन दूर करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने राज्य में निवेश को आमंत्रित कर सकारात्मक कदम उठाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
कार्पोरेट सैक्टर जम्मू-कश्मीर में निवेश करने को तैयार बैठा है। राज्य में पर्यटन उद्योग को विकसित करने और फिल्म उद्योग को फिर से स्थापित करने का आह्वान भी उन्होंने किया है। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती कश्मीरी अवाम से संवाद बढ़ाकर उनका मन बदलने की है। प्रधानमंत्री के सम्बोधन में इस्तेमाल शब्दों का विश्लेषण उनके इरादे जाहिर करता है। मैं व्यक्तिगत तौर पर महसूस करता हूं कि इस समय अनुच्छेद-370 के समर्थन में उठ रही आवाजों में तर्क कम और भावनाएं ज्यादा हैं।
उम्मीद है कि धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य हो जाएंगी और कश्मीर के भटके युवाओं को पाकिस्तान के दलालों से मुक्ति मिलेगी। जम्मू-कश्मीर को केन्द्रशासित प्रदेश बनाकर कश्मीर को मुख्यधारा में लाने की बेहतर पहल हो रही है। इसका स्वागत ही किया जाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के चिनार के वर्षों से उदास पेड़ अब देशवासियों को बुलाने लगे हैं। अब हमें कश्मीर के विकास की शपथ लेनी होगी।