अप्रैल 1932 में एयर इंडिया का जन्म हुआ था। उस समय उद्योगपति जेआरडी टाटा ने इसकी स्थापना की थी मगर इसका नाम एयर इंडिया नहीं बल्कि टाटा एयरलाइन्स हुआ करता था। 1932 में टाटा एयरलाइन्स की शुरूआत से पहले 1919 में जेआरडी टाटा ने शौकिया तौर पर विमान उड़ाया था। टाटा एयरलाइन्स के लिए 1933 पहला व्यावसायिक वर्ष रहा। टाटा सन्स की 2 लाख की लागत से स्थापित कम्पनी ने इसी वर्ष 155 यात्री और लगभग 11 टन डाक भी ढोई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब विमान सेवाओं को बहाल किया गया तब 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइन्स एक पब्लिक लिमिटेड कम्पनी बन गई और इसका नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया। आजादी के बाद 1947 में भारत सरकार ने एयर इंडिया में 49 प्रतिशत की भागीदारी ले ली थी। बहुत से लोगों को याद होगा कि एयर इंडिया की 30वीं बरसी 15 अक्तूबर 1962 को जेआरडी टाटा ने कराची से मुम्बई की उड़ान भरी थी और 50वीं बरसी यानी 15 अक्तूबर 1982 को भी जेआरडी टाटा ने मुम्बई से कराची की उड़ान भरी थी। जिस कम्पनी का इतिहास इतना गौरवपूर्ण हो वह 50 हजार करोड़ के कर्ज के जाल में फंसी हुई है।
सरकार एयर इंडिया में विनिवेश को तैयार थी लेकिन एयर इंडिया कर्मचारी यूनियनों के विरोध के चलते सरकार ने कम्पनी के निजीकरण का इरादा त्याग दिया। जैसे-तैसे कम्पनी हिचकोले लेते हुए चल रही है। निजी एयरलाइन्स कम्पनियों की एंट्री के बाद एयर इंडिया को भारी नुक्सान हुआ। एयर इंडिया की छवि काफी धूमिल होने लगी। यही नहीं, उसे खराब सेवा और बार-बार कैंसल होने वाली उड़ान सेवा की संज्ञा दी जाने लगी। हम यह भूल जाते हैं कि एयर इंडिया ने अब तक सबसे ज्यादा लोगों को सुरक्षित एयरलिफ्ट कराया है। 1990 में इराक ने जब कुवैत पर हमला किया तब 59 दिनों के भीतर 10 लाख से ज्यादा भारतीयों को एयर इंडिया ने 488 विमानों से सुरक्षित भारत पहुंचाया था। आज कम्पनी की खस्ता हालत को देखते हुए यह सवाल तो बनता है कि आखिर इतनी बड़ी सार्वजनिक कम्पनी की हालत क्या कुप्रबन्धन के चलते खराब हुई या इसके लिए बाजार की स्पर्धा जिम्मेदार रही।
निजी क्षेत्र की विजय माल्या की कम्पनी किंगफिशर भी नाकाम हो गई और अब भारतीय विमानन जगत की सबसे बड़े नामों में से एक नरेश गोयल की जेट एयरवेज की हालत बहुत खराब है। 8 हजार करोड़ से अधिक के कर्ज में दबी कम्पनी को नए निवेशक की तलाश है। महीनों की खींचतान के बाद नरेश गोयल और उनकी पत्नी अनिता और एतिहाद एयरवेज (यूएई की आधिकारिक विमानन कम्पनी) के एक प्रतिनिधि ने निदेशक मंडल से इस्तीफा दे दिया। यद्यपि बैंकों ने जेट एयरवेज की मदद करने का फैसला किया है लेकिन यह प्रक्रिया काफी लम्बी हो रही है। जेट एयरवेज की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। इस वक्त एयरवेज की 15 से भी कम फ्लाइट उड़ान भर रही हैं। पायलट अपना बकाया वेतन मांग रहे हैं। उसकी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें भी बन्द होने के कगार पर हैं। फिलहाल जेट एयरवेज पर कुल 26 बैंकों का कर्ज है। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार 2024 में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हवाई यात्रा बाजार होगा। घरेलू यात्रियों की संख्या 10 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है लेकिन विमानन कम्पनियों की हालत खस्ता हो रही है।
यात्रियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हवाई अड्डों का बुनियादी ढांचा विकसित नहीं हुआ। नए हवाई अड्डे बनाने का फायदा तब है अगर वहां से विमान उड़ान भरें। जिस तरह से एक के बाद एक विमानन कम्पनियां घाटे का शिकार हो रही हैं, उससे तो आने वाले दिनों में संकट काफी बढ़ सकता है। बाजार की प्रतिस्पर्धा गलाकाटू बन चुकी है। जेट के ऋणदाता नए निवेशक का अन्तिम फैसला जून के अन्त तक कर लेना चाहते हैं। टाटा सन्स ने भी जेट एयरवेज में दिलचस्पी दिखाई थी लेकिन उसने बाद में अपने कदम वापस खींच लिए। कतर एयरवेज सहित कुछ अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइन्स जेट की हिस्सेदारी लेने की इच्छुक हैं। इसी बीच ठप्प पड़ी एयरलाइन्स किंगफिशर के भगौड़े व्यवसायी माल्या ने कई ट्वीट करके केन्द्र सरकार के ‘दोहरे मानकों’ पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सवाल किया है कि 2012 में उनकी एयरलाइन्स के दिवालिया होने की स्थिति में उनके 4 हजार करोड़ के निवेश की अनदेखी क्यों की गई थी। अब जेट एयरवेज की मदद करने सरकारी बैंक क्यों सामने आ रहे हैं। कुल मिलाकर भारत में विमानन क्षेत्र की हालत खस्ता है। सरकार को सोचना होगा कि सार्वजनिक और निजी कम्पनियों को बचाया कैसे जाए जो कि उड़ान के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। कोई ठोस नीति अपनाने की जरूरत है।