प्रधानमंत्री कहते थे कि उनका सपना है कि हवाई चप्पल पहनने वाले भी हवाई जहाज का सफर करें, लेकिन अब तो हवाई जहाज वाले भी चप्पल में आ गये हैं। जेट एयरवेज के बंद होने से 22 हजार लोग बेरोजगार हो गये हैं। एयरलाइन पर 8 हजार करोड़ का कर्ज है और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और अन्य बैंकों ने कंपनी को इमरजैंसी कर्ज देने से इन्कार कर दिया है। एक वक्त था कि जेट एयरवेज सौ से ज्यादा प्लेन उड़ाती थी और इसे भारत की नम्बर वन एयरलाइन माना जाता था।
जेट की आिर्थक चुनौतियों के लिये डालर के मुकाबले रुपये की कमजोरी, स्पाइस जेट, इंडिगो जैसी सस्ते किराये वाली एयरलाइन्स से प्रतिस्पर्धा, तेल के दामों में उछाल जैसे कारण को जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसके अलावा एयर सहारा को खरीदने के फैसले आैर मैनेजमेंट के काम करने के तरीके को भी जेट की आिर्थक हालत के लिये जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। सबसे बड़ा संकट तो बेरोजगार होने वाले 22 हजार कर्मचारियों पर पड़ा है। वेतन न मिलने से किसी के पास बच्चों की फीस देने के लिए पैसे नहीं हैं, किसी के पास अपने मां-बाप का इलाज कराने के लिये पैसे नहीं हैं। किसी के पास मकान का किराया देने के लिए पैसे नहीं हैं। 22-23 वर्ष से नौकरी कर परिवार का पेट पाल रहे लोग सड़क पर आ गये हैं। अब सवाल यह है कि 22 हजार लोगों को कौन नौकरी देगा। इसका अर्थ यही है कि 22 हजार परिवार पर संकट के बादल छा चुके हैं।
जेट कर्मियों ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कुछ करने की गुहार लगाई है। स्पाइस जेट ने बेरोजगार हुए 100 पायलटों समेत 500 लोगों को नौकरी देकर कुछ मदद की है। स्पाइस जेट ने 27 और उड़ानंे शुरू करने की घोषणा की है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में बेराजेगारों को कोई भी एयरवेज एक साथ नौकरी नहीं दे सकती। जेट एयरवेज का परिचालन बंद होने से न केवल कर्मचारियों की मुश्किल बढ़ गई है बल्कि निवेशकों का पैसा भी डूब गया है। जिन यात्रियों ने पहले से टिकटों की बुकिंग करवा ली थी उनका रिफंड फंस गया है। एयरलाइन के आपूर्तिकर्ताओं का करोड़ों रुपया फंस गया है।
बैंकों ने पहले जेट एयरवेज को बचाने के लिए मदद देने का संकेत दे दिया था लेकिन बैंकों ने हालात को भांप कर हाथ खींच लिये। बैंक पहले ही विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर के मामले में हाथ जलाये बैठे हैं। भारत में निजी क्षेत्र के बारे में अक्सर कहा जाता है कि यह क्षेत्र सरकारी कंपनियों से कहीं अच्छा है। निजी क्षेत्र की कंपनियां लाभ में होती हैं जबकि सरकारी कंपनियां कुप्रबन्धन का शिकार हो जाती हैं। युवा भी रोजी-रोटी के लिये निजी क्षेत्र की कंपनियों को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि इनमें प्रतिभाओं के लिए तरक्की के अवसर जयादा होते हैं, लेकिन अक्तूबर 2012 में किंगफिशर बंद हुई, फिर जुलाई में 2016 में पेगॉसस बंद हुई, फरवरी 2017 में एयर कोस्टा बंद हो गई और दो माह बाद ही एयर कार्निवल पर ताले लग गये। पिछले वर्ष जुलाई में जूम एयर बंद हो गई। हर साल एक कंपनी बंद हो रही है। स्थिितयां बता रही हैं कि भारत में विमानन उद्योग के लिये हालात अच्छे नहीं हैं।
डीजीसीए, नागरिक उड्डयन मंत्रालय, कंपनी को कर्ज देने वाले बैंक, उसके भागीदार और कंपनी का प्रबन्धन सब मिलकर इसके लिये जिम्मेदार हैं। अगर विमानन क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनाने और अच्छी सेवायें देने के लिये निजी क्षेत्र की कंपनियों को प्राेत्साहित करने की नीति है तो फिर एयर लाइन्स घाटे में क्यों चली जाती हैं। क्या इस पर निगरानी के लिये कोई तंत्र नहीं होना चाहिये? अब संकट में फंसी जेट एयरवेज को पुनर्जीवित करने का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय भी कुछ नहीं कर पा रहा। प्रधानमंत्री कार्यालय तक से इस मुद्दे पर बैठक हो चुकी है। कंपनी खुद लाचार है।
सरकार भी क्या करे, एयर इंडिया जैसी सरकारी कंपनी खुद 50 हजार करोड़ के कर्ज में डूबी है। विमान यात्रा करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है, भारत के कई शहरों को हवाई मार्ग से जोड़े जाने की कवायद चल रही है लेकिन विमानन कंपनियां बंद हो रही हैं। जेट एयरवेज को कोई खरीदेगा भी तो उसके सामने 12 हजार करोड़ की देनदारियां होंगी। अब सवाल यह है कि निजी क्षेत्र भी लाभ की गारंटी नहीं ले सकता। बैंकों के नियंत्रण में आ चुकी जेट एयरवेज की अब बोली लगेगी। 4 बोलीदाताओं की पहचान की गई है। चार बोलीदाताओं में एतिहाद एयरवेज, राष्ट्रीय निवेश कोष, निजी क्षेत्र के टीपीजे और इंडिगो है। अब देखना है कि दस मई तक क्या होता है।
अगर बैंकों की वित्तीय स्थिति मजबूत होती तो वह जेट एयरवेज की मदद करने में पलभर भी देरी नहीं लगाते। जेट एयरवेज का ठप्प होना इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि हमारी बीमार विमानन नीति को नये सिरे से तैयार करने की जरूरत है। बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच कंपनियों का सही ढंग से संचालन भी जरूरी है। कंपनी के संस्थापक नरेश गोयल तो पल्ला झाड़ कर विदेश में बैठे हैं, सवाल उन 22 हजार लोगों का है, जिन्हें अब जीवन के लिये पुनः संघर्ष करना पड़ेगा। देश में रोजगार का संकट पहले ही काफी बढ़ा हुआ है।