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जेपी नड्डा की चुनौतियां

जगत प्रकाश नड्डा की भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो गई है। जेपी नड्डा का जन्म बिहार में हुआ, उन्होंने स्नातक तक की शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से प्राप्त की।

जगत प्रकाश नड्डा की भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो गई है। जेपी नड्डा का जन्म बिहार में हुआ, उन्होंने स्नातक तक की शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से प्राप्त की। उनके पिता डा. नारायण लाल नड्डा मूल रूप से हिमाचल के ​निवासी हैं। वह पटना विश्वविद्यालय में कामर्स विभाग में प्रोफैसर रहे और 1980 में से​वानिवृत्त होने पर परिवार हिमाचल प्रदेश लौट आया। जेपी नड्डा के राजनीतिक सफर की शुरूआत 1975 में जेपी आंदोलन से हुई। 
जयप्रकाश नारायण के इस आंदोलन ने तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार की चूलें हिला दी थीं। जेपी आंदोलन ने देश की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया था। लोकनायक के आंदोलन ने अंततः इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया था। वैसे तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, स्वर्गीय अरुण जेतली, शरद यादव, राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा, रविशंकर प्रसाद, मुलायम सिंह यादव, सुशील मोदी, रामविलास पासवान और अन्य जेपी आंदोलन की उपज हैं, इसी तरह जेपी ​नड्डा भी जेपी आंदोलन की उपज हैं। 
जेपी की समग्र क्रांति से उपजे नेताओं ने एंटी कांग्रेस सरकार का प्रतिनिधित्व भी ​किया। बिहार जेपी नड्डा की जन्म स्थली है और हिमाचल उनकी कर्मभूमि है। तभी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जेपी नड्डा के अभिनंदन समारोह में कहा कि बिहार का हक तो हिमाचल से ज्यादा बनता है। इस बात की उम्मीद भी जताई कि जेपी नड्डा के नेतृत्व में भाजपा का और विस्तार होगा और कुछ नया देखने को ​मिलेगा। सामान्य कार्यकर्ता से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर पहुंचना भाजपा में ही सम्भव है। जिस पद पर कभी अटल जी, अडवानी जी, मुरली मनोहर जोशी विराजमान रहे, उस पद पर जेपी का पहुंचना गौरव की बात है। 
अन्य राजनीतिक दलों में ऐसा सम्भव ही नहीं है क्यों​कि उनमें परिवारवाद ही हावी है। पिछले वर्ष जुलाई में जेपी नड्डा को भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था, तभी यह तय हो गया था कि वे ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे। भाजपा ने सर्वसम्मति से उन्हें अध्यक्ष पद का ताज दे ​दिया। जेपी नड्डा के लिए बतौर पार्टी अध्यक्ष चुनौतियां काफी बड़ी हैं। अभी तक भाजपा की कमान राजनीति के चाणक्य माने गए अमित शाह के हाथों में थी। भाजपा संगठन के सभी फैसले अमित शाह ही लेते थे। वर्ष 2014 में केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद जुलाई 2014 में अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। 
उसके बाद लगातार दो कार्यकाल तक वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे जिनका कार्यकाल पिछले वर्ष जनवरी में पूरा हो गया लेकिन लोकसभा चुनावों के चलते अमित शाह अध्यक्ष बने रहे। अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने स्वर्णिम सफलता हासिल की। अमित शाह के नेतृत्व में देशभर में भाजपा का अभूतपूर्व विस्तार हुआ। कई राज्यों में भाजपा सत्ता में आई। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भाजपा की शानदार जीत और 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की सरकार बनना अमित शाह की चुनावी रणनीति का ही परिणाम रहा। 
एक राज्य का चुनाव होते ही अमित शाह दूसरे राज्य के चुनावों के लिए तैयार होते। उनके राजनीतिक कौशल का कोई सानी नहीं। असम सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा की सरकारों का बनना अमित शाह की बहुत बड़ी उपलब्धि रही। ऐसा लग रहा था कि देश कांग्रेस मुक्त होने जा रहा है। अमित शाह के नेतृत्व में भारत के नक्शे पर केसरिया फैल गया। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की हार-जीत, सरकारों का बनना, गिरना लगातार चलने वाली कवायद है।  राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें बनीं। महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी रही शिवसेना ने राकांपा और कांग्रेस का दामन थाम सरकार बना ली। 
हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन आशानुरूप नहीं रहा। अब सवाल यह है कि क्या जेपी नड्डा भाजपा का विस्तार कर पाएंगे? क्या भाजपा की जीत के सिलसिले को आगे बढ़ा पाएंगे। दिल्ली विधानसभा के चुनाव तो सिर पर हैं, बिहार विधानसभा के चुनाव भी इसी वर्ष होने वाले हैं। देशभर में एनआरसी, सीएए और एनपीआर को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। अफरा-तफरी जैसा माहौल बन रहा है। देश के 22 छात्र कैम्पसों में असंतोष व्याप्त है। ऐसी स्थिति में जेपी नड्डा को बहुत सम्भल कर चलना होगा। उनके हर फैसले का विश्लेषण होगा और उनकी तुलना अमित शाह से की जाएगी। जेपी नड्डा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी और अमित शाह की ताकत को दिखाता है। देखना होगा ​कि जेपी नड्डा कितना स्वतंत्र होकर काम करते हैं। 
अमित शाह ने राज्यों में भाजपा का साम्राज्य खड़ा किया है उसको बनाए रखना नड्डा के लिए बड़ी चुनौती है। 2018 की शुरूआत में भाजपा अकेले और सहयोगी दलों के साथ 21 राज्यों में विस्तार पा चुकी​ थी, जो अब 15 राज्यों में सिमट गई है। कश्मीर का राजनीतिक घटनाक्रम भी भाजपा के लिए मामूली नहीं है। जेपी नड्डा को एनडीए के कुनबे को सम्भाल कर रखना और नए सहयोगियों को तलाश करने का काम भी करना होगा। जेपी नड्डा कई मौकों पर अपनी कुशल रणनीतिक क्षमता का परिचय दे चुके हैं। पार्टी का कार्यकर्ता उन्हें उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है। 
– आदित्य नारायण चोपड़ा

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