हाथरस के चर्चित गैंगरेप मामले में अदालत ने चार आरोपियों में से तीन को बरी कर दिया है। जबकि एक आरोपी को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने मुख्य आरोपी संदीप को गैर इरादतन हत्या एससी/एसटी एक्ट के तहत दोषी माना। फिलहाल इस मामले में गैंगरेप का आरोप भी साबित नहीं हो सका है। सितम्बर 2020 का यह मामला देश-विदेश में गूंजा था। पीड़िता दलित युवती के बयान के आधार पर गैंगरेप का मामला दर्ज किया गया था। पीड़िता की मौत के बाद हत्या का मामला भी दर्ज किया गया और अंततः इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी। इस केस में तूफान उस समय उठ खड़ा हुआ था जब पीड़िता की माैत दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में हुई और पुलिस ने मृतक लड़की का चेहरा परिजनों को दिखाये बिना ही आधी रात को उसका अंतिम संस्कार कर दिया था। इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। कोर्ट के इस फैसले से क्या हाथरस की बेटी को इंसाफ मिल पाया? न्याय के द्वार पर मृतका के परिजनों का दिल टूट चुका है और उन्होंने कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाने की बात कही है।
पीड़िता का परिवार ढाई साल से सिर झुकाकर कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा था। उन्होंने न्याय मांगा था कि चारों आरोपियों को सजा मिले। परिवार का कहना है कि जब तक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से उन्हें न्याय नहीं मिलेगा तब तक वह मृतका का अस्थि विसर्जन नहीं करेंगे। न्यायपालिका का दायित्व है कि वह इंसाफ करे लेकिन यह इंसाफ होता दिखना भी चाहिए। इस मामले में 18 दिसम्बर, 2020 को चार्जशीट दायर की गई थी और सीबीआई ने चारों अभियुक्तों पर हत्या और गैंगरेप के आरोप तय किए थे। चार्जशीट में उत्तर प्रदेश पुलिस पर भी लापरवाही के आरोप लगाए थे। अदालतें पुख्ता सबूतों के आधार पर न्याय करती हैं। कोर्ट के फैसले का अर्थ यही है कि जांच एजैंसी आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस केस तैयार नहीं कर सकी। केस इतना कमजोर था कि आरोप ठहर ही नहीं सके।
अब सवाल यह है कि हाथरस की बेटी को इंसाफ मिले तो कैसे? कौन नहीं जानता कि हाथरस गैंगरेप के 9 दिन बाद केस दर्ज हुआ था। थाने पहुंच कर पीड़िता बेहोश हो जाती है तो पुलिस वाले कहते हैं, बहाने बना रही है। आखिर कोई इतना बेरहम कैसे हो सकता है। बलात्कार पीड़िता के पिता को घर में नजरबंद कर दिया जाता है। फिर परिवार पर दबाव डाला जाता है और रात के अंधेरे में पीड़िता की चिता को आग दे दी जाती है। कोई कुछ बताने के लिए तैयार नहीं होता। हाथरस के फैसले की चर्चा के बीच उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यानि बाबा का बुलडोजर लगातार चल रहा है। माफिया अतीक अहमद के गुर्गों के घरों पर बुलडोजर चल रहा है।
प्रयागराज हत्याकांड भी बचे-खुचे माफियाओं के गुर्गों की सक्रियता का प्रमाण है, लेकिन ये राहत देने वाली बात है कि प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड के कुछ घंटों के बाद ही यूपी विधानसभा में प्रदेश के मुखिया ने पच्चीस करोड़ जनता को आश्वस्त कर दिया है कि बचे-खुचे माफिया भी मिट्टी में मिला दिए जाएंगे। पिछली सपा-बसपा सरकारों ने जिन्हें माननीय बनाने का दुस्साहस किया और सत्ता के संरक्षण में करोड़ों-अरबों की कीमत की सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे हुए। माफियाओं और भूमाफियाओं का पुराना जलवा-जलाल अब योगी सरकार लगातार ढहा रही है। सरकारी जमीनों पर बने अपराध के महलों पर बुलडोजर चलवाकर अरबों की कीमतों की सरकारी जमीनें कब्जा मुक्त की जा चुकी हैं। संगठित अपराध हाशिए पर आ चुका है। यूपी में तीस साल से अधिक समय से क्राइम रिपोर्टिंग कर रहे मनोज वाजपेई का मानना है कि योगी सरकार का पहला कार्यकाल करीब अस्सी प्रतिशत अपराध और बड़े अपराधियों पर काबू पा चुका है। कानून व्यवस्था 2017 से पहले की अपेक्षा बहुत बेहतर हुई। साम्प्रदायिक दंगों से सूबा लगभग मुक्त हो चुका है। प्रयागराज के हत्याकांड को लेकर और भी सख्त हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने माफियाओं को मिट्टी में मिलाने का जो संकल्प लिया है उसका असर दूसरे दिन से ही नजर आने लगा। हत्याकांड में सम्मिलित अपराधियों को दबोचने में पुलिस कामयाब हो रही है। मुठभेड़ का सिलसिला समाज विरोधी तत्वों के हौसलों को मिट्टी में मिला रहा है। बुलडोजर की गरज से बचे-खुचे अपराधियों के हौसले पस्त हो रहे हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि योगी सरकार ने कानून व्यवस्था कायम करने के लिए अच्छा काम किया है, लेकिन महिलाओं को इंसाफ दिलाने के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस कोई ज्यादा सफल नहीं हुई। कई ऐसे मामले आए हैं जो झकझोर देने वाले रहे हैं। लेकिन पुलिस का रवैया ऐसे मामलों में ठीक नहीं दिखा। काश! उत्तर प्रदेश पुलिस ने एनकाउंटर वाली सख्ती महिलाओं से होने वाले अपराधों के प्रति दिखाई होती तो पीड़िताओं को इंसाफ मिल जाता।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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