कमलनाथ के 'कमल’ का कमाल - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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कमलनाथ के ‘कमल’ का कमाल

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कांग्रेस द्वारा विजयी तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में नये मुख्यमन्त्रियों के चयन को लेकर जो खुली लोकतान्त्रिक प्रक्रिया अपनाई गई है वह इस पार्टी के अध्यक्ष श्री राहुल गांधी की राजनैतिक परिपक्वता का प्रमाण मानी जानी चाहिए और इस बात का सबूत भी मानी जानी चाहिए कि वह इस पुरानी पार्टी की आन्तरिक राजनीति को पं. जवाहर लाल नेहरू के दौर में ले जाना चाहते हैं जिसमें जमीन पर काम करने वाले हर कांग्रेसी की आवाज का संज्ञान लिया जाता था और किसी भी राज्य में मुख्यमन्त्री का चुनाव नये चुनकर आये विधायकों पर ही छोड़ दिया जाता था परन्तु यह पारदर्शी प्रक्रिया इतनी लम्बी भी नहीं होनी चाहिए कि आम जनता का सब्र जवाब देने लगे।

श्री गांधी पर यह जिम्मेदारी भी है कि वह चार महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए अपनी पार्टी के हर कार्यकर्ता को ऊर्जावान बनाये रखें और इस नजरिये से विजयी राज्यों में नेतृत्व का चुनाव करें लेकिन जिस प्रकार मध्यप्रदेश के नेतृत्व के मुद्दे पर ग्वालियर रियासत के पूर्व महाराजा के वंशज ज्योतिरादित्य सिन्धिया ने व्यवहार किया है वह पूरी तरह बचकाना हरकत कही जायेगी और सत्ता पाने की बेताबी की झुंझलाहट कही जायेगी मगर नेता के चयन की प्रक्रिया के बीच जिस प्रकार मध्य प्रदेश में मुख्यमन्त्री पद हथियाने के लिए श्री कमलनाथ की उजली कमीज पर कीचड़ फेंकने की राजनीति को हवा दी गई है उससे उस जनता का घनघोर अपमान हुआ है जिसने श्री कमलनाथ के आह्वान पर 15 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा की सरकार को उखाड़ फेंका।

इस वास्तविकता को कभी नहीं भूला जाना चाहिए कि श्री कमलनाथ इस राज्य के किसी खास अंचल या इलाके के नेता नहीं हैं बल्कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पूरे राज्य की जनता ने उन्हें सिर-आंखों पर बैठाया है। श्री कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में सोई हुई कांग्रेस पार्टी को जिस तरह जगाया और इसकी आन्तरिक गुटबाजी को समाप्त किया उसने राज्य की शिवराज सरकार को पूरी तरह झिंझोड़ डाला मगर उनकी चुने हुए नये विधायकों के बीच भारी लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस पार्टी के ही हताश गुट के आंचलिक नेता की शह पर दिल्ली के अकाली दल के स्थानीय नेताओं ने 1984 के सिख दंगों का मसला उठाने की कोशिश की। नानावती आयोग ने जगदीश टाइटलर व कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की थी। यह आयोग भाजपा नीत गठबन्धन की वाजपेयी सरकार के गृहमन्त्री श्री लालकृष्ण अडवानी ने ही गठित किया था।

इस सरकार में अकाली दल के मन्त्री भी शामिल थे। नानावती आयोग की रिपोर्ट 2005 में ससंद में ‘कार्रवाई रिपोर्ट’ के साथ तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन के गृहमन्त्री श्री शिवराज पा​िटल ने पेश की थी जिसमंे टाइटलर व अन्य के खिलाफ सीबीआई द्वारा मुकदमा चलाने की इजाजत देने का एेलान भी था। तब जगदीश टाइटलर मनमोहन सरकार मंे मन्त्री थे और उन्हें तुरन्त इस्तीफा देना पड़ा था। यह बताने की जरूरत नहीं है कि 1927 से पहले जब अंग्रेजी शासनकाल के दौरान सिख गुरुद्वारा प्रबन्धन आन्दोलन की शुरूआत हुई थी तो पं. जवाहर लाल नेहरू ने ही इसकी पुरजोर वकालत की थी और वह सब कुछ छोड़-छाड़ कर लाहौर आ गये थे। यह पुख्ता इतिहास है जिसे कोई नहीं बदल सकता।

लोकतन्त्र हमें सिखाता है कि हम संवैधानिक मर्यादाओं का हमेशा पालन करें और अफवाहों को राजनीति में प्रवेश न करने दें। श्री कमलनाथ मनमोहन सरकार के दौरान पूरे दस वर्ष तक केबिनेट मन्त्री रहे और इस दौरान वाणिज्य मन्त्री रहते हुए उन्होंने विश्व व्यापार संगठन मंे जिस प्रकार भारत के कृषि क्षेत्र का संरक्षण किया उसका सर्वाधिक प्रभाव पंजाब जैसे राज्य पर ही पड़ा जिसे भारत का अन्न भंडार माना जाता है। इन दस सालों में भी अकाली दल के सदस्य संसद के दोनों सदनों में विपक्षी भूमिका में मौजूद थे मगर किसी ने भी मनघड़त आरोप लगाने का प्रयास नहीं किया। इन्तेहा यह हुई कि मध्य प्रदेश के महीनों चले पूरे चुनाव प्रचार के दौरान भी विपक्षी नेता की तरफ से इस प्रकार का बे-सबूत अफवाही आरोप नहीं लगाया गया।

लोकतन्त्र हमें यही सन्देश देता है कि हम अपने कटु आलोचक और विरोधी का भी सम्मान करें क्योंकि वह भी अपनी विचारधारा के अनुसार देश के लोगों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है मगर क्या कयामत है कि कांग्रेस के भीतर एेसे लोग भी हैं जो अपने स्वार्थों को पार्टी के हितों से ऊपर रखते हैं। जहां तक राजस्थान का प्रश्न है तो अशोक गहलोत और सचिन का फिलहाल कोई विकल्प नहीं हो सकता क्योंकि उनकी राजनीति पूरी तरह समावेशी और गरीबों के कल्याण की रही है। अशोक गहलोत के रूप में हकीकत यह है कि स्व. मोहन लाल सुखाडि़या के बाद कांग्रेस को एेसा नेता मिला है जिसकी हर समुदाय और वर्ग के लोगों के बीच स्वीकार्यता है। बेशक श्री सचिन पायलट ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राज्य में आम जनता के बीच भाजपा सरकार की खामियों को उजागर करने में सफलता प्राप्त की किन्तु राजनीति में जोश के साथ होश का होना भी लाजिमी होता है वरना जीती हुई बाजियां हाथ से निकलने में देर नहीं लगती।

किसी भी राष्ट्रीय राजनैतिक दल का लक्ष्य सूबों तक सीमित नहीं रहता बल्कि उसका ध्येय राष्ट्रीय राजनीति के विमर्श को बदलना होता है जिससे वह समूचे देश की दिशा को नई गति दे सके और इसके लिए उसे मजबूत व दूरदृष्टि रखने वाले क्षेत्रीय नेतृत्व की आवश्यकता होती है जिससे वह उनका उपयोग राजनीति के आयाम बदलने में कर सके। कांग्रेस के पुराने इतिहास में एेसे कद्दावर क्षेत्रीय नेता हुए हैं जो पं. जवाहर लाल नेहरू को लिखे खत की शुरूआत ‘प्रिय जवाहर लाल’ से करते थे। बंगाल के नेता श्री विधानचन्द्र राय इसका उदाहरण थे। अतः राहुल गांधी अपनी ‘लुटी-पिटी’ कांग्रेस को जिस नये मुकाम पर ले जाना चाहते हैं उसमें हर कांग्रेसी को उनका साथ देना चाहिए। छत्तीसगढ़ राज्य में कांग्रेस की जो धमाकेदार जीत हुई है उसका सेहरा उसी नेता के सिर बांधा जाना चाहिए जिसने इस नक्सलवादी हमले में पूरे पार्टी नेतृत्व की हत्या किये जाने के बाद इस राज्य के लोगों में जमीन से उठ कर नया उत्साह भरा, लोकतन्त्र में मतदाता को किसी भी सरकार का मालिक बनने की ऊर्जा भरी।

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