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हिन्दू संस्कृति में काशी विश्वनाथ

काशी का भारत की हिन्दू संस्कृति में वही स्थान है जो इस्लामी संस्कृति में काबा मुकद्दस का है। मूल प्रश्न यह है कि जब काशी का महत्व इस्लामी विद्वानों को भी ज्ञात है और वे भी मानते हैं कि बनारस की हर सुबह-शाम बाबा विश्वनाथ के नाम होती है तो भारत के इस सत्य को उसी प्रकार स्वीकार किया जाना चाहिए जिस तरह मक्का शरीफ में काबे के सच को स्वीकार किया जाता है परन्तु ज्ञानवापी का मामला भी कानूनी लड़ाई में तब्दील हो चुका है। ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित शिवलिंग के वैज्ञानिक सर्वे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने शि​वलिंग के वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था ताकि पता लगाया जा सके कि शिवलिंग कितना पुराना है। सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद मैनेजमैैंट कमेटी की ओर से हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। इससे पहले सर्वे कमीशन ने कोर्ट को बताया था कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग नुमा आकृति मिली है और   सर्वे रिपोर्ट के आधार पर हिन्दू पक्षकारों ने दावा किया था कि परिसर में शिवलिंग मिला है जबकि मुस्लिम पक्षकारों का कहना था कि  वह फव्वारा है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अब सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सबसे चर्चित मुद्दा है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानि पूजा स्थल कानून। सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि वाराणसी कोर्ट का आदेश प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन है। प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 में लागू किया गया था। उस वक्त राम मंदिर आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था। इस आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य मंदिरों और मस्जिदों पर भी पड़ा। उस वक्त अयोध्या के अलावा भी एक के बाद एक कई विवाद सामने आ गए थे। इन सभी विवादों पर विराम लगाने के लिए ही तत्कालीन नरसिम्हा सरकार यह कानून लेकर आई थी। इस एक्ट के अनुसार 15 अगस्त, 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजास्थल को किसी भी अन्य धर्म के पूजास्थल में नहीं बदला जा सकता। यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और 3 साल की जेल भी हो सकती है। एक्ट में यह भी प्रावधान है कि 15 अगस्त, 1947 में मौजूदा किसी धार्मिक स्थल के बदलाव के ​िसलसिले में यदि कोई याचिका कोर्ट में पैंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट इस कानूनी मुद्दे पर भी विचार करके ही कोई फैसला देगा। 

दूसरी ओर हिन्दू पक्ष का यह कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में यह व​र्शिप एक्ट इसलिए लागू नहीं होता क्योंकि यह ऐतिहासिक है। इसकी सरंचना 100 साल से पुरानी है। ज्ञानवापी का धार्मिक प्रारूप कहता है कि 1947 से पहले यहां माता शृंगार गौरी की पूजा हर रोज होती रही है। 1991 तक उनकी पूजा होती रही है। अभी भी साल मेें एक बार इसकी पूजा हो रही है। अब वहां शिवलिंग मिला है और किसी स्थान पर नमाज पढ़ने मात्र से उस स्थान का धामिक प्रारूप नहीं बदलता। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पूजा स्थल कानून 1991 में बना, उससे पहले 1983 में काशी विश्वनाथ एक्ट बन चुका है। ये पूरा परिसर काशी विश्वनाथ एक्ट के तहत संचालित होता है। 1991 का एक्ट ये भी कहता है कि  ये एक्ट उन परिसरों पर लागू नहीं होगा जो किसी और एक्ट से संचालित होते हैं। इस आधार पर ज्ञानवापी प्रकरण में यह एक्ट लागू नहीं होता। 

काशी के भगवान विश्वनाथ परिसर में स्थित कथित ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ के बारे में प्रारम्भ से ही यह दृढ़ विश्वास और मत रहा है कि इसे स्वयं मुस्लिम भाइयों द्वारा हिन्दू समाज को सौंप कर देश के भाईचारे को मजबूत बनाना चाहिए और हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिलीजुली गंगा-जमुनी संस्कृति का नमूना पेश करना चाहिए परन्तु मुस्लिम समाज की मुल्ला ब्रिगेड और कट्टरपंथी तत्व यह कभी नहीं चाहेंगे और मस्जिद काे लेकर पैदा हुए विवाद को चरम बिन्दू तक पहुंचाना चाहेंगे। जबकि ऐतिहासिक तथ्य यह है कि पूरे हिन्दोस्तान में यदि कहीं भी मुस्लिम आक्रमण का ​हिन्दू संस्कृतिक पहचान पर प्रत्यक्ष और बोलता हुआ प्रमाण है तो वह काशी में ही है और जिसे ज्ञानवापी मस्जिद खुद जबानी बयान कर रही है। इस मस्जिद की चारदीवारी पर भीतर व बाहर से हिन्दू देवी-देवताओं की आकृतियों से लेकर पूज्य प्रतीकों के  चिन्ह अंकित हैं जबकि ऊपर मस्जिदनुमा गुम्बद कायम कर दिए गए हैं। कोई भी पुरातत्व वेत्ता पहली नजर में बता सकता है कि यह मस्जिद मंदिर काे विध्वंस करके ही तामीर की गई है। आजाद भारत में मध्य युग में हुए मुस्लिम आक्रमण के इस दाग को मिटाकर हम ऐसे नए युग की शुरूआत कर सकते हैं जिसमें हर हिन्दू को अपने मुस्लिम भाई को गले लगाने में फक्र महसूस हो और  1947 में पाकिस्तान बनने की जो पीड़ा हर ​हिन्दोस्तानी को भीतर से सालती रहती है उसका दर्द खत्म हो।

भारत के मुसलमानों का तो यही मुल्क है और इनके पूर्वज हिन्दू ही रहे तो यह अपने पुरखों पर जुल्म ढाने वाले मुस्लिम आक्रांताओं को अपना नायक कैसे मान सकते हैं। जो गुनाह औरंगजेब ने किया उसकी सजा आज की पीढ़ी क्यों भुगते। कितना अच्छा हो अगर मुस्लिम बंधु आपस में बैठकर यह मामला सुलझा लें।