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भारत का मुकुट है कश्मीर!

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आज जब देश में चारों तरफ पुलवामा विस्फोट को लेकर प्रतिशोध से भरे गुस्से का इजहार सत्ता की जिम्मेदारियां और जनता की भावुकता के भेद को तोड़ते हुए इस प्रकार हो रहा है कि हम अपने ही देश के अभिन्न अंग कहे जाने वाले राज्य जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के विरुद्ध आक्रोश प्रकट कर रहे हैं तो सबसे बड़ा और बुनियादी सवाल खड़ा हो रहा है कि हम अपने देश भारत की एकता और अखंडता का झंडा किस तरह ऊंचा रख रहे हैं ? देश केवल भौगोलिक आधार पर जमीन की सीमाओं से नहीं बनता है बल्कि इसमें रहने वाले लोगों की आपसी मिलनसारी और भाईचारे व एक-दूसरे को समझते हुए सांझा विचारों के सम्मान से बनता है।

देश तभी मजबूत बनता है जब इसके सभी भागों में रहने वाले लोग मजबूत बनते हैं। यह मजबूती एक-दूसरे राज्य की सम्पन्नता को आपस में बांट कर ही समूचे देश को मजबूत बनाती है यथा एक-दूसरे के दुःख में शामिल होकर उसे बांटकर कम करने से भी पूरे देश के लोग एक सांझा विचार से बन्धते हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का जो घिनौना खेल पाकिस्तान खेल रहा है उससे सबसे ज्यादा कश्मीरी जनता ही परेशान रही है अतः उनके दुःख में देश के दूसरे राज्यों के लोगों का शामिल होना इसलिए जरूरी है कि समूचा भारत एक इकाई के रूप में आतंकवाद का डटकर मुकाबला कर सके मगर हम एक भटके हुए कश्मीरी युवक की करतूत के लिए हिन्दोस्तान के माथे के मुकुट कहे जाने वाले कश्मीर के आम लोगों को किसी भी दृष्टि से जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। फिर 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ उपजे गुस्से से पैदा हुई विनाशलीला पर अन्याय और यातना का दौर चलने की मुखालफत का क्या औचित्य रह जायेगा?

इसी प्रकार इसके बाद देश के कई भागों में हुए साम्प्रदायिक अत्याचार के विरुद्ध न्याय का दरवाजा खटखटाने का क्या औचित्य रह जाएगा। कश्मीरियों को आज सबसे ज्यादा हमदर्दी की जरूरत इसलिए है क्योंकि पिछले लगभग तीस साल से आतंकवाद का सबसे ज्यादा शिकार वे लोग ही हुए हैं और उन्हीं की युवा पीढ़ी को भटकाने में पाकिस्तान ने अपनी सारी ताकत लगा दी है। हमें पाकिस्तान की इसी ताकत और तरकीब का डटकर मुकाबला करना है और इस काम में कश्मीरी जनता का सहयोग पहली शर्त है क्योंकि उनकी ही वफादारी और हिकमत अमली से पाकिस्तान की बिछाई गई हर शतरंज के मोहरे को पीटा जा सकता है।

यह वक्त कश्मीरी जनता को भारत माता का वह विराट स्वरूप दिखाने का है जिसमें हिमालय के उत्तंग शिखर से लेकर समुद्र की अविरल तरंगें उसका मनोरम संसार बनाती हैं। जिस प्रकार उत्तराखंड के देहरादून शहर के एक शिक्षण संस्थान से लेकर राजस्थान के जयपुर के एक शिक्षण संस्थान से कश्मीरी छात्र-छात्राओं के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की खबरें आ रही हैं वे हमें सचेत कर रही हैं कि हमें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा। कश्मीर की युवा पीढ़ी को अपनी भावुकतापूर्ण राष्ट्रवादी गतिविधियों से उत्तेजित करने के बजाय उन्हें अपने साथ लेकर इस प्रकार चलना होगा कि उन्हें यह महसूस हो कि हर भारतवासी उनके साथ उसी प्रकार खड़ा हुआ है जिस प्रकार वे आज अमरनाथ यात्रा से लेकर कभी शारदापीठ की यात्रा करने वाले अन्य राज्यों के लोगों के साथ रहते थे।

सच्चा राष्ट्रवाद वही होता है जिसमें लोग राष्ट्र की उस परिकल्पना में अपना भविष्य सुरक्षित देखते हैं जो सभी का सांझा हो। आज लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि पिछली सदी की शुरूआत तक कश्मीर घाटी में अंतरधार्मिक विवाह आम बात थी। शादी के लिए किसी लड़के या लड़की का केवल कश्मीरी होना ही काफी होता था, उसका हिन्दू या मुसलमान होना जरूरी नहीं। इस महान सांझा विरासत का पैरोकार कश्मीर भला किस तरह धर्म के आधार पर पाकिस्तान के निर्माण का समर्थन कर सकता था ? और 1947 में ठीक एेसा ही हुआ था जब कश्मीरी जनता ने पाकिस्तान का पुरजोर विरोध किया था। अतः 70 साल बाद आज अगर परिस्थितियां बदली हैं तो हमें एेसे हालात पैदा करने वालों को करारा सबक सिखाना होगा। जाहिर तौर पर इसके लिए पाकिस्तान ही जिम्मेदार है। लोकतन्त्र की खूबी भी यही होती है कि यह लोगों को साथ लेकर ही शैतान को सबक सिखाने का जज्बा और माद्दा दोनों ही रखता है।

जम्हूरियत की तासीर ही यह होती है कि वह लोगों के चोलों को नहीं बल्कि दिमाग को बदलती है जिससे वे अपने मुल्क की हिफाजत में अपनी जान तक न्यौछावर करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। संयोग से आज सन्त रविदास जी महाराज की जयन्ती भी है। सन्त रविदास भक्तिकाल के एेसे सन्त हुए जिन्होंने सबसे पहले सत्ता या हुकूमत के जनता मूलक होने की पुरजोर वकालत की। समाजवाद शब्द कई सदियों के बाद यूरोप से भारत आया मगर सन्त रविदास ने अपने भक्ति पदों के माध्यम से राजा और रंक के भेद को इस प्रकार परिभाषित किया कि न्याय देने वाला साधारण आदमी ही राजा की पदवी पाए। समतामूलक समाज का यह क्रान्तिकारी स्वप्न गुरुग्रन्थ साहिब में उनकी वाणी के रूप में सर्वदा के लिए सुसज्जित हो गया।

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