दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए लगातार उपाय किए जाने के बावजूद इस समस्या पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने के कारण दिल्ली हमेशा देशवासियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही है। स्वतंत्रता के बाद भारत में औद्योगिकीकरण का दौर प्रारम्भ हुआ तो राजधानी में उद्योग लगे। वर्ष 1951 के बाद दिल्ली की जनसंख्या में लगातार वृद्धि होती गई। 1951 में दिल्ली की जनसंख्या केवल 17 लाख थी जो इस समय ढाई करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। दिल्ली की जनसंख्या में हर वर्ष चार लाख की बढ़ौतरी होती है, इनमें से तीन लाख लोग देश के अन्य राज्यों से आते हैं। दिल्ली में विकास के साथ-साथ इससे जुड़ी कुछ मूलभूत समस्याओं मसलन आवास, ट्रैफिक, पानी, बिजली इत्यादि ने भी जन्म ले लिया। दिल्ली में अवैध बस्तियां खड़ी कर दी गईं। राजधानी के बेतरतीब विकास ने महानगर की हालत बिगाड़ कर रख दी। दिल्ली में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को शहर के बाहरी इलाकों में स्थानांतरित करने का अभियान भी चलाया गया। मैट्रो परियोजना का नैटवर्क बिछाया गया। नए राजमार्ग बनाए गए ताकि प्रदूषण फैैलाने वाले भारी वाहन महानगर में आएं ही नहीं आैर बाहर-बाहर से दूसरे शहरों में जाएं लेकिन हर वर्ष दिल्ली प्रदूषण से हांफती रही। ज्यों-ज्यों दिल्ली में वाहनों की संख्या बढ़ती गई क्योंकि कारें जरूरत भी बन गईं और स्टेटस सिम्बल भी। आज हालत यह है कि लोगों को कारों की पार्किंग के लिए जगह नहीं मिल रही। सब जानते हैं कि दिल्ली में 30 फीसदी वायु प्रदूषण औद्योगिक इकाइयों के कारण जबकि 40 फीसदी तक पीएम 2.5 का प्रदूषण वाहनों के कारण है।
‘‘खेत प्लाट हो गए, प्लाट फ्लैट हो गए
फ्लैट दुकानें और आफिस हो गए
फिर भी हम पर्यावरण की कल्पना करते रहे।’’
दिल्ली की हरियाली को कंक्रीट का जंगल निगल गया। हर साल फैस्टीवल सीजन में पटाखों और फसल कटाई के मौसम में पंजाब-हरियाणा से पराली जलाने से उड़कर आए धुएं पर दोष मढ़ते रहे हैं। हर वर्ष स्कूल बंद करने पड़ते हैं, वाहनों के लिए सम-विषम योजना लागू करनी पड़ती है। प्रदूषण को कम करने के लिए पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाते हुए केवल ग्रीन पटाखों की बिक्री को ही स्वीकृति दी थी। दीपावली पर पटाखे चलाने की समय सारिणी भी जारी की थी। प्रदूषण के प्रति जागरूकता बढ़ी है लेकिन इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए बड़ा कदम उठाने की जरूरत थी ताकि इसका स्थाई समाधान हो। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से बच्चों के फेफड़े कमजोर हो रहे हैं, लोग प्रदूषण जनित रोगों का शिकार हो रहे हैं। इसके लिए यह जरूरी है कि दिल्ली को विषाक्त गैसों का चैम्बर बनने से रोका जाए।
दिल्ली की आप सरकार ने दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने का वायदा किया था। अरविन्द केजरीवाल अपनी पहली पारी में इसी दिशा में तैयारी कर रहे थे। काफी चिंतन-मंथन के बाद उन्होंने राजधानी में इलैक्ट्रिकल वाहन नीति लागू करने का ऐलान कर दिया है। उनका यह कदम भविष्य की सोच के चलते ही उठाया गया ठोस कदम है। आप सरकार देश की पहली ऐसी सरकार है जिसने यह मेगा प्लान बनाया है। यह लागू करने की घोषणा सराहनीय है। अब यह दिल्ली वालों का दायित्व है कि वह इस नीति को लागू करने के लिए खुद भी पहल करें।
अरविन्द केजरीवाल द्वारा घोषित नीति में 2024 तक दिल्ली की एक-चौथाई गाड़ियों को इलैक्ट्रिक गाड़ी करने का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में 0.2 फीसदी दो पहिया इलैक्ट्रिक वाहन हैं, वहीं चार पहिया वाहन इससे भी कम हैं। अब दिल्ली सरकार को हर साल 35 हजार गाड़ियां रजिस्टर्ड होने की उम्मीद है, जबकि 5 साल में दिल्ली में 5 लाख इलैक्ट्रिक वाहन रजिस्टर्ड होंगे। योजना आकर्षक भी है क्योंकि दिल्ली सरकार इलैक्ट्रिक वाहन खरीदने वाले को 5 हजार से लेकर 1.50 लाख तक की सबसिडी देगी। अगर आप पैट्रोल और डीजल की गाड़ी इलैक्ट्रिक व्हीकल खरीदने के लिए डिस्पोज करते हैं तो आपको सरकार अतिरिक्त 5 हजार रुपए देगी। इलैक्ट्रिक आटो रिक्शा, ई-रिक्शा की खरीद पर 30 हजार रुपए सबसिडी दी जाएगी। सरकार द्वारा राजधानी में 250 जगह चार्जिंग स्टेशन बनाए जाएंगे। इस योजना से दिल्ली में प्रदूषण कम होगा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। करोड़ों के तेल और गैस की बचत होगी और वहीं 48 लाख टन कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन कम होगा।
लॉकडाउन के दौरान दिल्लीवासियों ने स्वच्छ हवा महसूस की और नीला स्वच्छ आकाश देखा क्योंकि वाहनों का आवागमन और उद्योग धंधे बंद रहे। वर्षों बाद दिल्लीवासियों ने स्वच्छ हवा में सांस ली। यमुना भी साफ नजर आई। लॉकडाउन अनलॉक होने के साथ ही हवाओं में फिर जहर घुलने लगा है।
प्रकृति बहुत उदार और निष्ठुर भी है। अगर आप पर्यावरण की रक्षा करेंगे तो प्रकृति मानवता की भलाई के लिए सर्वस्व समर्पण कर देगी। दिल्ली की भावी पीढ़ी को स्वच्छ हवा और हराभरा वातावरण देना हम सबका दायित्व है। इससे लोगों को बीमारियों से मुक्ति मिलेगी, दिल्ली के बच्चे स्वस्थ होंगे और अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा। इसके साथ ही दिल्लीवासियों को कूड़े-कचरे के निपटान के लिए लागू नियमों का पालन शतप्रतिशत करना होगा। प्रदूषण नियंत्रण के लिए केजरीवाल सरकार की नीति एक मास्टर स्ट्रोक है। दिल्ली वालों को दिलवाला बनकर इस नीति को सफलता प्रदान करने के लिए सहयोग देना होगा।