अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन में हुई बहस गर्मागर्म होगी, इसकी तो उम्मीद सबको थी लेकिन बहस में जिस तरह से शालीनता और भाषा की मर्यादाएं टूटीं, उसे देखकर हर कोई हैरान है। भारत में चुनावों में भाषा का स्तर तो पहले ही काफी गिर चुका है, इसका अनुमान पिछले लोकसभा चुनावों में लग चुका है। भारत के टीवी चैनलों पर होने वाली डिबेट का स्तर भी सामने आ चुका है, जिनमें हर कोई एक-दूसरे को टोकते हैं, बोलने नहीं देते और डिबेट बिना किसी निष्कर्ष के खत्म हो जाती है। ऐसा ही ट्रंप आैर बाइडेन की बहस में भी हुआ। बाइडेन की टोकाटाकी से ट्रंप इतने झल्ला गए कि उन्होंने बाइडेन के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर डाला जो राष्ट्रपति के व्यवहार के बिल्कुल उलट था। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने हमेशा शालीन और मर्यादित व्यवहार किया लेकिन ट्रंप से ऐसी उम्मीद करना बेमानी था। वह पहले ही अपने विरोधाभासी बयानों के लिए चर्चित हैं। इस बहस में ट्रंप ने काफी आक्रामक रुख अपनाया। दोनों ने स्वास्थ्य, न्याय, नस्लीय भेदभाव और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर एक-दूसरे पर तीखे हमले किये। दोनों ने ही एक-दूसरे काे घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दोनों में से कोई भी जुबां सम्भाल कर नहीं बोला। यह सबको पता है कि ट्रंप बोलने से पहले कुछ नहीं सोचते और सनकी व्यक्ति की तरह व्यवहार करते हैं।
डेढ़ घंटे की बहस में दोनों में कड़वाहट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बाइडेन ने चिढ़ कर ट्रंप को कह दिया कि ‘‘जोकर से क्या बात की जाए।’’ इतना ही नहीं रूस का उल्लेख आने पर बाइडेन ने ट्रंप को पुतिन का पिल्ला कह दिया। दूसरी ओर ट्रंप और आक्रामक हो गए। ट्रंप पहले ही बाइडेन को स्लीपी यानी ऊंघते हुए आदमी की संज्ञा दे चुके हैं, लेकिन इस बहस में उन्होंने बाइडेन को स्लीपी नहीं कहा लेकिन उन पर व्यक्तिगत हमले किए। उन्होंने बाइडेन के बेटे का मामला उठा दिया और कहा कि वह नशेड़ी है और बाइडेन के उपराष्ट्रपति पद पर रहते बेटे ने जमकर पैसे बनाए।
हालांकि ट्रंप ने बहस के दौरान एक नहीं कई झूठ बोले लेकिन ट्रंप को पहले भी परवाह नहीं रही न इस बार उन्होंने परवाह की। बहस के दौरान ही कई मीडिया चैनलों पर डिबेट के दौरान ही ट्रंप के बयानों की फैक्ट चैकिंग भी चल रही थी, लेकिन ट्रंप को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ट्रंप ने बार-बार सोशलिस्ट, रैडिकल लेफ्ट जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। इन शब्दों के बारे में कहा जाता है कि इन्हें सुनकर अमेरिकी मतदाता भड़क उठते हैं। ट्रंप की कोशिश थी कि बाइडेन उनके शब्दों में उलझ जाएं लेकिन बाइडेन ने इन शब्दों का जवाब दिए बिना खुद को आंकड़ों तक सीमित रखा। बहस के दौरान कई बार मॉडरेटर पत्रकार क्रिस वानेस ने ट्रंप को टोका और उनसे चुप रहने की अपील की और अंततः उन्हें कहना पड़ा कि ट्रंप डिबेट के उन नियमों को मानें, जिन पर वह डिबेट करने के लिए तैयार हुए हैं। बाइडेन ने भी कई मौकों पर अपनी सीमाएं लांघीं और ट्रंप का मजाक बनाया। कोरोना से निबटने के लिए कीटनाशक छिड़कने संबंधी ट्रंप के बयान को बाइडेन ने उछाला, जिसके जवाब में ट्रंप ने कहा कि यह बात तो उसने कटाक्ष में कही थी।
पूरी बहस स्तरहीन दिखाई दी। फिलहाल सभी चुनावी सर्वेक्षणों में ट्रंप बाइडेन से करीब सात अंकों से पीछे चल रहे हैं। यह बाइडेन की बहुत मामूली लीड है और अगले हफ्तोें में यह लीड खत्म भी हो सकती है। ट्रंप आक्रामक शैली अपनाकर पिछली बार करिश्मा कर चुके हैं। फिलहाल अभी दो बहस बाकी हैं और ट्रंप अपने समर्थकों को आक्रामकता का संदेश दे चुके हैं। अगली दो बहसों में भी वे और अधिक आक्रामक होंगे। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर मास्क से लेकर वेक्सीन और फिजिकल डिस्टेंसिंग जैसे मुद्दों को लेकर निशाना साधा। कई ऐसी बातें कहीं गईं जिनका कोई अर्थ नहीं था। सारी बहस ऊल-जुलूल बातों से भरी हुई थी। दोनों ने एक-दूसरे को शट-अप कह डाला। अब जैसे-जैसे मतदान का दिन करीब आता जा रहा है वैसे-वैसे चुनावी सर्वे करने वाली कम्पनियां इस कोशिश में जुटी हैं कि वे लोगों से उनकी पसंद के उम्मीदवार के बारे में पूछकर, असली नतीजे आने से पहले जनता का मूड भांप सकें। अब यह आकलन किया जा रहा है कि इस बहस में कौन आगे रहा कौन पीछे। अमेरिकन के बारे में एक कहावत मशहूर है कि अमेरिकी ऐसे लोग हैं जो प्रजातंत्र के हक में भाषण देने तो हजारों किलोमीटर दूर की यात्रा कर सकते हैं परन्तु जब वोट पड़ रही तो उठकर दूसरी गली में वोट देने नहीं जा सकते। अमेरिका का प्रजातंत्र सबसे बड़ा मुखौटा प्रजातंत्र है, जिसकी कथनी और करनी में कोई सुरताल नहीं है। अमेरिकन विरोधी तो हर किसी के शासनकाल की बखियां उधेड़ देते हैं लेकिन अमेरिका बहुत शक्तिशाली देश है। अमेरिका के नागरिक खुद को विश्व का श्रेष्ठतम नागरिक मानते हैं लेकिन ट्रंप और बाइडेन की भाषा देखकर तो नहीं लगता कि उनमें श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ के गुण हैं। चुनावों में ट्रंप जीतें या बाइडेन, यह बाद की बात है लेकिन डिबेट से यह तय है कि अमेरिका हार रहा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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