कश्मीर की आजादी का दम भरने वाले पाकिस्तान ने फिर अपने सुर बदल दिए हैं। पाक के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने एक बयान में कहा है कि पाकिस्तान कश्मीर की आजादी का पक्षधर नहीं है, इस मुद्दे का समाधान केवल बातचीत से ही हो सकता है। बड़ी हैरानी हुई अब्बासी साहब का बयान सुनकर। देश की आजादी के बाद 70 साल बीत गए, उधर लियाकत अली आए, अय्यूब आए, जुल्फिकार अली भुट्टो आए, जिया-उल-हक आए, बेनजीर आईं, नवाज शरीफ आए, गुरुघंटाल मुशर्रफ आए। इधर पंडित नेहरू से लेकर अटल जी तक आैर अब नरेन्द्र मोदी तक सारे नाम आप जानते ही हैं। समझौतों की लम्बी फेहरिस्त, कश्मीर समस्या सुलझ नहीं पाई। इतने वर्षों तक पाकिस्तान के हुक्मरानों ने कुछ नहीं किया सिवाय भारत की कश्मीर घाटी में हिंसा फैलाने, कश्मीर की आजादी के नारे लगवाने, पैसे के बल पर युवाओं के हाथों में किताबों की जगह बन्दूकें थमाने, स्कूली बच्चों तक को पत्थरबाज बनाने और निर्दोषों का खून बहाने के।
आतंकवादियों ने हमारे रघुनाथ मंदिर अैर अक्षरधाम मंदिरों तक को नहीं बख्शा, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर संसद तक को निशाना बनाया, मुम्बई पर हमला कर जगह-जगह लाशें बिछाईं, हमारे जवानों के सिर काटे, हमारे जवानों के शवों को क्षत-विक्षत कर हमें बार-बार ललकारा। अगर कश्मीर की आजादी का पाक समर्थन नहीं करता तो फिर इतना खून क्यों बहाया। कश्मीर समस्या के नाम पर आईएसआई, पाक सेना आैर अन्य सत्ता से जुड़े प्रतिष्ठानों की हर साजिश जायज क्यों है?
लश्कर भी जायज, जैश भी जायज,
अलकायदा भी जायज, लादेन भी जायज
आईएसआई भी जायज, दाऊद भी जायज
मसूद अजहर भी जायज, हाफिज भी जायज
सेना चीफ भी जायज, सदरे जम्हूरियत भी जायज?
पाकिस्तान हमेशा कश्मीर-कश्मीर खेलता रहता है। अगर अब्बासी साहब यह कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के फार्मूले के तहत कश्मीर घाटी में रायशुमारी कराई जाए तो यह फार्मूला कब का दफन हो चुका। दरअसल पाक अधिकृत कश्मीर में विद्रोह की चिंगारी सुलग रही है, ब्लूचिस्तान रह-रह कर सुलग उठता है। पीओके के लोग पाक से आजादी चाहते हैं। ब्लूचिस्तान के लोग भी आजादी चाहते हैं। पाक के हुक्मरानों ने पीओके और ब्लूचिस्तान में कहर ढहाया है और उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित रखा गया है, बार-बार जुल्म ढहा कर उनकी आवाज को कुचला गया है। अब्बासी साहब जरा पीओके और ब्लूचिस्तान में रायशुमारी कराके देखिये, दोनों के लोग ही भारत से मिलने के इच्छुक होंगे। दस दिनों में अर्थात् 7 नवम्बर, 1947 तक सारी कश्मीर घाटी को भारत की सेना ने पाकिस्तानी आतंकवादियों से, जो कबायलियों के भेष में आक्रमण कर रहे थे, मुक्त करा लिया था। इसके बाद शेष क्षेत्रों की मुक्ति का अभियान छेड़ा जाना था। शेष क्षेत्रों पर आक्रमण नहीं किया जा सका। इसमें पंडित नेहरू की क्या भूमिका थी, फारूक अब्दुल्ला के पिता स्कूल मास्टर शेख अब्दुल्ला की क्या भूमिका थी। उनकी कुटिलता किस कदर विद्रूप हो गई थी। ब्रिगेडियर परांजपे वहां क्यों मजबूर हो गए थे, एजेंट जनरल न्यायमूर्ति कुंवर दिलीप सिंह ने वहां जाकर क्या देखा? इन सब विषयों पर मैं पहले भी लिख चुका हूं। मैं विस्तार में नहीं जाना चाहता। काश ! हमने हमला कर पीओके को मुक्त करा लिया होता तो समस्या खड़ी ही नहीं होती।
इस बात का ईल्म तो अब्बासी साहब को भी होगा कि आजादी के 70 वर्षों बाद Borders Cannot be Changed यानी सीमाएं नहीं बदली जा सकतीं। पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर में जिस तरह के तौर-तरीके अपनाए तथा वहां के लोगों को अपने कश्मीर राग आैर रायशुमारी के झुनझुने से बहकाने का क्रम चला आ रहा है तथा इसके साथ ही दमनचक्र भी चला आ रहा है, ऐसी स्थिति में अब्बासी का ताजा बयान एक झुनझुने से ज्यादा कुछ नहीं है। पाक जानता है कि भारत से युद्ध उसे महंगा पड़ेगा। आज पाकिस्तान पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका है, कश्मीर की आजादी का समर्थन उसके लिए ही भारी पड़ता नज़र आता है। चीन की मुश्किल यह है कि उसने पाकिस्तान में खरबों रुपए का निवेश कर रखा है। वह पाक अधिकृत कश्मीर में पाक-चीन अार्थिक गलियारे का निर्माण कर रहा है, जिसका पीओके के लोग विरोध कर रहे हैं। अगर पाकिस्तान अस्थिर होता है तो चीन को बहुत बड़ा आर्थिक नुक्सान होगा। यह बात चीन भी जानता है कि पाक का लोकतंत्र आधा-अधूरा है। अगर पाक कश्मीर की आजादी का समर्थन नहीं करता तो फिर बातचीत ही क्यों? पाक अधिकृत कश्मीर न तो कानूनी रूप से पाकिस्तान का हिस्सा कभी था और न अब भी है। उस पर तो नाजायज मुल्क का कब्जा है। सिंध, फ्रंटियर और ब्लूचिस्तान के भीतर आग सुलगती रहती है। पाकिस्तान का मतलब सिर्फ पंजाब है। छोटे से पंजाबी घरानों में देश का सारा सरमाया सिमट गया है। चार राज्यों वाला छोटा सा देश जहां 70 प्रतिशत खर्च एक ही राज्य में हो बाकि तीन अन्य राज्यों पर हो, वह कब तक शांत रह सकता है। पाक कश्मीर का खेल खेलता रहता है, भारत भी इस खेल में कई बार उलझ जाता है। पाक में अगले साल चुनाव होने वाले हैं, पाक की सियासी जमातें फिर चाहेंगी कि ‘कश्मीर-कश्मीर खेलें’ लेकिन भारत को उलझने की बजाय पाक की साजिशों काे विफल बनाना ही होगा।