कांवड़ यात्रा नहीं जिन्दगी जरूरी - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

कांवड़ यात्रा नहीं जिन्दगी जरूरी

भारत में शासन व्यवस्था पर कर्मकांडी धार्मिक रीतियों का कभी भी प्रादुर्भाव नहीं रहा है। पूरी भारतीय संस्कृति प्रागैतिहासिक काल से लेकर पुख्ता ऐतिहासिक काल के शिलालेखों तक इस बात की गवाह है

भारत में शासन व्यवस्था पर कर्मकांडी धार्मिक रीतियों का कभी भी प्रादुर्भाव नहीं रहा है। पूरी भारतीय संस्कृति प्रागैतिहासिक काल से लेकर पुख्ता ऐतिहासिक काल के शिलालेखों तक इस बात की गवाह है कि हर काल में शासन व्यवस्था केवल मानवीय सिद्धान्तों को सर्वोपरि मान कर चलती रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कर्मकांडी रीतियां समयानुसार बदलती रहती हैं। इनका गहरा सम्बन्ध भारत की भौगोलिक व क्षेत्रीय विविधता से भी रहा है। इसके साथ ही यह भी विचारणीय है कि राजनीति और धर्म का समन्वय भारत में इस तरह रहा है कि हर काल व दौर में सत्ता केवल सर्वजन हिताय के सिद्धान्त से इस प्रकार अभिप्रेरित रही कि मानवता इसकी केन्द्रीय शक्ति बनी रहे। आधुनिक भारत का पूरा संविधान इसी मानवता के सिद्धान्त के चारों तरफ घूमता है और एेलान करता है कि राष्ट्र का निर्माण और गठन इसमें रहने वाले लोगों से ही बनता है अतः उन्हें अाधिकाधिक सशक्त, सबल, स्वस्थ व शिक्षित बनाना प्रत्येक सरकार का पहला दायित्व होता है। इसी में जीवन जीने का अधिकार आता है जिसमें प्रत्येक नागरिक के जीवन की रक्षा करना सत्ता का दायित्व बनता है।
 अतः देश के सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को जो हिदायत दी है कि प्रस्तावित कांवड़ यात्रा का आयोजन लोगों की जान से ज्यादा अहम नहीं हो सकता, पूरी तरह भारत की मिट्टी में रची-बसी मानवीयता के दर्शन को ही नमूदार करता है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों ने कोरोना संक्रमण से उपजी स्वास्थ्य चुनौतियों का संज्ञान लेते हुए साफ कर दिया है कि किसी भी धार्मिक रीति का महत्व मनुष्य की जान से ऊपर नहीं हो सकता। भारत के हर गांव व कस्बे में बोली जाने वाली यह कहावत ‘जान है तो जहान है’  अध्यात्म और भौतिकवाद के स्थूल अन्तर की विवेचना इस प्रकार करती है कि ‘जीवन’ ही सभी प्रकार के रूहानी व जिस्मानी रवायतों का वजूद होता है अतः इसके बिना दुनिया का कोई भी कारोबार नामुमकिन होता है। वैसे बहुत ही सामान्य तर्क से यह कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की सरकार अपने राज्य के गांवों में वैज्ञानिक सोच को न पनपने देने के लिए कांवड़ यात्रा की परंपरा या रीति के आवरण में छिपने का प्रयास केवल इस वजह से कर रही है कि राज्य में छह महीने बाद चुनाव होने वाले हैं। वरना राज्य में कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप के दौरान जिस तरह हजारों लोगों की लाशें गंगा जी में तैरती हुई मिली थीं उसे देखते हुए राज्य सरकार को स्वयं ही कांवड़ यात्रा को स्थगित कर देने का एेलान कर देना चाहिए था। परन्तु इसके विपीत हम देख रहे हैं कि पड़ोसी राज्य उत्तराखंड की सरकार ने कांवड़ यात्रा को स्थगित कर दिया है। इसकी वजह पुरानी गल​ितयों से सबक सीखना भी माना जा रहा है क्योंकि विगत मार्च महीने में जिस तरह हरिद्वार में कुम्भ मेला आयोजन को उत्तराखंड के तत्कालीन नवनियुक्त मुख्यमन्त्री तीरथ सिंह रावत ने हरी झंडी यह कह कर दी थी कि गंगा मैया ‘कोरोना को खुद धो देंगी’ उससे केवल उत्तराखंड को ही नहीं बल्कि आसपास के कई राज्यों के नागरिकों को नुकसान उठाना पड़ा था।
 हालांकि उत्तराखंड में भी उत्तर प्रदेश के समानान्तर ही अगले साल के शुरू में चुनाव होने वाले हैं परन्तु इस राज्य के नवनियुक्त मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी ने वैज्ञानिक सोच का परिचय दिया है। हमें कांवड़ यात्रा के बारे में भी इस तथ्य पर गौर करना चाहिए कि 1990 से पहले तक सावन के महीने में कांवड़ भरने का रिवाज बहुत कम नजर आता था। 
दूरदराज के राज्यों से इक्का-दुक्का कांवड़ यात्री ही हरिद्वार आया करते थे जबकि महाशिवरात्रि के अवसर पर जो बसन्त पंचमी के बाद गुलाबी जाड़ा शुरू होने पर आती है उस दौरान पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के आसपास के इलाकों से श्रद्धालु कांवड़ भरने हरिद्वार आया करते थे। यह परंपरा आज भी जारी है। सावन की कांवड़ यात्रा का प्रचलन देश में राममन्दिर निर्माण आन्दोलन की तीव्रता के समानान्तर बढ़ना शुरू हुआ और धीरे-धीरे इसे राजनीतिक दलों का प्रश्रय भी मिलने लगा। यहां तक कि उत्तर प्रदेश व दिल्ली की राज्य सरकारों ने कांवड़ यात्रियों की सुविधा के लिए शिविर तक लगाने की सुविधा प्रदान करनी शुरू कर दी। इसमें भाजपा  के साथ दिल्ली में कांग्रेस का भी योगदान रहा। मगर इसका पूर्ण राजनीतिकरण तब हुआ जब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कांवड़ियों पर उच्च पुलिस अधिकारियों द्वारा फूल बरसाने का आदेश दिया। यह कृत्य संविधान के अनुकूल नहीं था। मगर कांवड़ियों को वोट बैंक में तब्दील करने का ओछा प्रयास जरूर था। मगर लोकतन्त्र में कोई भी सरकार इतनी अन्धी नहीं हो सकती कि वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लि​ए लोगों की जान को ही दांव पर लगा दे। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को अंतिम अवसर दिया है कि वह आगामी सोमवार तक अपने फैसले पर पुनर्विचार करे और उसके पास आये। सांकेतिक कांवड़ यात्रा के भी कोई मायने नहीं हैं और न ही टैंकरों  गंगा जल कांवडि़यों तक पहुंचाने का कोई औचित्य है क्योंकि कोरोना से बचने का एकमात्र उपाय वैक्सीन और कम से कम भीड़ इकट्ठा करना है। 
 इसके साथ ही आगामी 21 जुलाई को कुर्बानी की ईद का भी त्यौहार है।  इस दिन भी देश के मुस्लिम नागरिकों को पूरे हाेश में रह कर ईद का त्यौहार मनाना होगा जिससे कम से कम लोग भीड़ में तब्दील हो सके। ईद पर भी कोरोना नियमों का पालन करके हम कोरोना संक्रमण से दूर रहने के उपाय कर सकते हैं। परन्तु ध्यान रहे कि दोनों धर्मों के रीति-रिवाजों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने के प्रयास भी हरगिज नहीं होने चाहिएं। प्रत्येक शासन का कर्त्तव्य है कि वह निरपेक्ष भाव से कोरोना नियमावली को प्रत्येक नागरिक पर एक समान रूप से लागू करे। क्योंकि धर्म ने मनुष्य नहीं बनाया है बल्कि मनुष्य ने ही धर्म बनाया है। इसलिए मनुष्य की हिफाजत अव्वल दर्जे पर आती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

18 − 3 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।