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दिल से ​दीये जलाओ

दिवाली अर्थात् दीयों का त्यौहार सबको बहुत-बहुत मुबारक हो। इसमें कोई संदेह नहीं कि दिवाली खुशियों और सुख समृद्धि का त्यौहार है। इसलिए बधाई तो बनती है। पूरी दुनिया में यह त्यौहार साम्प्रदायिक सद्भाव और प्रेम तथा भाईचारे के बीच महालक्ष्मी की पूजा के साथ मनाया जाता है। यह एक परम्परा है। परम्पराओं का निर्वाह होना भी चाहिए। लेकिन दिवाली की इस खुशी जिसे हम आजादी के 75वें साल की अमृत बेला में मनाने  जा रहे हैं  तो हमें याद रखना होगा कि इस पवित्र त्यौहार की पृष्ठभूमि में बहुत गहरा दर्द छिपा है। लेकिन इसका उल्लेख करने से पहले मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहूंगी कि दिवाली को केवल दीपों का त्यौहार न मानकर इसे दिल से जोड़ कर आगे बढ़ना चाहिए। तीली-माचिस से दीये जलते हैं और हम खुशियां मनाते हैं, परन्तु दीये तो दिल के प्यार से और स्नेह से जलने चाहिएं, जिसकी आज समाज को बहुत जरूरत है। जिस दर्द की मैं दिवाली की पृष्ठभूमि से जोड़कर बात कर रही थी वह ​जीवन के उतार-चढ़ावों को प्रदर्शित करता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का 14 वर्ष का बनवास कितने उतार-चढ़ावों से भरा हुआ था और जब उन्होंने लोगों की भलाई के खातिर दुनिया को शांति का संदेश देने,  दुनिया में शानदार व्यवस्था कायम रखने की खातिर इस लम्बे कष्टदायी बनवास के दौरान खुद को सहज बनाकर दुनिया के सामने संदेश दिया तो ऐसे व्यवस्थापक, ऐसे शासक, ऐसे भगवान, श्रीराम ही हो सकते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में कितने भी कष्ट हों,  कितने भी चैलेंज हों, उन्हें दूर करते हुए आगे बढ़ते रहना ही ​दिवाली का संदेश होना चाहिए। अंधेरे में जब एक दीया जलता है तो वह दूसरों को राह दिखाने के लिए काफी है। वह सूरज की तरह चमकता तो नहीं लेकिन अंधेरे में उम्मीद की एक किरण जरूर जगाता है। आज देश में ऐसी ही उम्मीदों की किरण जलाए जाने की आवश्यकता है।

कुछ मौकों पर हम देखते हैं कि जीवन में कष्ट अलग-अलग ढंग से आते हैं। लेकिन हमें जीना पड़ता है और  जीने के लिए साहस और धैर्य के साथ आगे बढ़ना चाहिए। कहा भी गया है कि 

‘‘दुनिया में अगर आए हैं तो जीना ही पड़ेगा,

जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा।’’

आज लोग चैलेंजिंग भुला कर सुखों की तलाश में भाग रहे हैं। लेकिन दिवाली का सही संदेश तो यह है कि हम हर सूरत में प्रेम से रहे और जश्न भी उस परम्परा के साथ मनाएं जो श्रीराम ने स्थापित की थी। श्रीराम के वन गमन के बाद वापिसी पर दीये जलाना बनता है क्योंकि अब दुनियादारी कम्प्यूटर के युग में पहुंच गई है। जश्न के साथ टशन भी है। जगह-जगह पटाखे चलाए जा रहे हैं, जो वातावरण में जहर घोलकर सांस लेना मुश्किल कर रहे हैं। दिवाली साल के बारह महीनों में कार्तिक का एक श्रृंगार है। त्यौहार के इस महापर्व पर अगर हम नियमों के मुताबिक चलें और हर परम्परा को निभाएं जैसे श्रीराम ने निभाई है, गुरुनानक देव जी ने निभाई, स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने निभाई। कहने का मतलब यह कि हमारे गुरुओं ने सदा ही मानव कल्याण का काम किया है। हालांकि आज की तारीख में उत्तरी भारत में पराली जलाने से वातावरण प्रदूषित हो रहा है। दिवाली के दीये जलाते समय आओ उन लोगाें को सही राह और सद्बुद्धि प्रदान करने की कामना करें जो पराली जलाते हैं।

आज के युग में सम्प्रदायिक सद्भाव जरूरी है। दीये जलाकर खुशियां मनाने का मतलब तभी सिद्ध होता है अगर हम प्रेम और नियमों के मुताबिक तथा परोपकार के लिए अपने आपको उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करें। समाज में कटुता की नहीं, मिठास की जरूरत है। एक-दूसरे से दूरियां बनाने से नहीं दूरियां मिटाकर आगे बढ़ने का समय है। ठीक जैसे  एक दीपक अंधेरे को मिटा देता है और लोगों को सही दिशा देता है। दिवाली का यही संदेश है, इसे ही समझना चाहिए,इसे ही निभाना चाहिए और दीये भी दिल और स्नेह से जलाने चाहिएं तभी दिवाली शुभ हो की सार्थकता सिद्ध हो सकती है। यह कहा भी ठीक है-

‘‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा,

यही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा।’’