बिजली कौंधाता ‘बांग्लादेश’ - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

बिजली कौंधाता ‘बांग्लादेश’

कभी-कभी बड़ी घटनाओं के मन्थन में मग्न काल में ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जो बिजली जैसी चमक पैदा कर जाती हैं और अपनी समस्याओं में डूबे लोगों को रोशनी दिखाती हैं।

कभी-कभी बड़ी घटनाओं के मन्थन में मग्न काल में ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जो बिजली जैसी चमक पैदा कर जाती हैं और अपनी समस्याओं में डूबे लोगों को रोशनी दिखाती हैं। ऐसी ही एक घटना भारत के पड़ोसी देश ‘बांग्लादेश’ में हुई है। इस देश का उदय 16 दिसम्बर 1971 को ‘नाजायज मुल्क पाकिस्तान’ को बीच से चीर कर हुआ था। जिसे भारत की जांबाज फौज ने बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी को अपना समर्थन देकर अंजाम दिया था। 
15 अगस्त 1947 को जो अन्याय फिरंगियों ने सिर्फ मजहब के नाम पर भारत को दो टुकड़ों हिन्दोस्तान और पाकिस्तान में बांट कर किया था उसे बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले ‘बंगबन्धु शेख मुजीबुर्रहमान’ ने सिरे से खारिज करते हुए बंगाल की महान संस्कृति के समक्ष धराशायी कर दिया था और ऐलान किया था कि पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में मजहब आम लोगों की सांस्कृतिक पहचान को नहीं ढक सकता। 
बांग्लादेशी अपनी भाषा और सांस्कृतिक परंपराओं के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकते और उन पर मजहब की चादर ओढ़ा कर बंगाली पहचान को समाप्त नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान के इस्लामाबाद में बैठे तास्सुबी हुक्मरानों ने बंगाली अवाम को 1971 तक अपने गुलामों से ज्यादा नहीं समझा और उन पर इस्लाम के नाम पर हर नागरिक क्षेत्र में जुल्म ढहाने का काम किया। 
जब सब्र का प्याला भर गया तो शेख मुजीबुर्रहमान की  सियासी पार्टी अवामी लीग (हिन्दी में जिसे जनता पार्टी कहा जायेगा) के जरिये आजादी की जंग छेड़ दी और ऐलान कर दिया कि पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की बांग्ला संस्कृति को कुचलने की किसी भी तदबीर को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। 
जिसके जवाब में पाकिस्तान ने वहां अपनी फौजें भेज कर जुल्मों-गारत का बाजार गर्म कर दिया और बंगालियों के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार करना शुरू किया जिसके जवाब में पूर्वी पाकिस्तान ने तब स्थानीय जनता की सशस्त्र ‘बांग्ला मुक्ति वाहिनी’ का गठन करके पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त होने का संघर्ष छेड़ दिया। यह लड़ाई तब मानवीयता की लड़ाई हो गई जो पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की आधारभूत नागरिक स्वतन्त्रता और मूलभूत मानवीय अधिकारों के लिए थी। 
तब भारत की प्रधानमन्त्री स्व. इन्दिरा गांधी ने मानवाधिकार दिलाने के लिए शेख मुजीबुर्रहमान का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन किया और भारत की फौजों ने न्याय के पक्ष में खड़े होकर आततायी पाकिस्तानी फौज से आत्मसमर्पण करा कर बांग्लादेश का निर्माण कराया। भारत के इस साहसपूर्ण कृत्य से पूरी दुनिया चौंक गई और पाकिस्तान की पीठ सहलाने वाली पश्चिमी ताकतों के हाथ के तोते उड़ गये। 
इन्दिरा गांधी ने दक्षिण पूर्व एशिया की राजनीति और नक्शे को बदल कर रख दिया। मजहबी तास्सुब के भरोसे पाकिस्तान को इस्लाम का किला बताने वाली ताकतें जमीन पर नाक रगड़ने लगीं और बांग्लादेश व शेख मुजीबुर्रहमान उनके सामने एक अजेय चुनौती  बन गये। 
अतः केवल चार साल बाद ही अंतर्राष्ट्रीय साजिश रच कर ठीक 15 अगस्त के दिन ही 1975 में बांग्लादेश में फौजी विद्रोह करा कर बंगबन्धु के पूरे परिवार की हत्या उनके ढाका स्थित घासमंडी निवास स्थान पर ही करा दी गई। इन साजिशकर्ताओं ने इस हत्या का कारण बांग्लादेश की आन्तरिक राजनीति के मत्थे भी मढ़ना चाहा और यह प्रचार भी किया कि नये धर्मनिरपेक्ष देश बांग्लादेश में प्रशासनिक अव्यवस्था और रिश्वतखोरी का बाजार गर्म हो रहा था मगर यह सब कुप्रचार था क्योंकि इसके बाद बांग्लादेश फौजी शासन के तले चला गया और अदना लोग इसके सरगना तक बनते गये लेकिन क्या हिम्मत है बांग्लादेश के लोगों की कि पिछले साल तक वे उन पाकिस्तान परस्त जमाते इस्लामी व अन्य कट्टरपंथी लोगों को फांसी के तख्ते पर लटकाते रहे जिन्होंने 1971 के मुक्ति संग्राम में पाक फौजों का साथ दिया था और इसी बीते रविवार को उस जालिम फौजी ‘कैप्टन अब्दुल मजीद’ को  फांसी के तख्ते पर झुला दिया जिसने बंगबन्धु की हत्या करने में दूसरे फौजी अफसरों का साथ दिया था। 
यह अब्दुल मजीद 25 वर्ष बाद पकड़ में आया था। 25 साल तक वह भारत में ही छिप कर रहता रहा और पिछले महीने ही बांग्लादेश पहुंचा था। विगत मंगलवार को फांसी से केवल पांच दिन पहले ही उसे पकड़ा गया और अगले रविवार को ढाका की नई जेल में उसे फांसी पर लटका दिया गया। राष्ट्रभक्त बांग्लादेशियों ने अपने राष्ट्र निर्माता को इस प्रकार श्रद्धांजलि देकर साफ कर दिया कि मुल्क पर फिदा होने वाले लोग कभी उन कायरों से नहीं डरते हैं जो अपने देश के साथ गद्दारी करने में अपनी फौजदारी दिखाते हैं। 
बंगबन्धु पूरी दुनिया के सामने ऐसी मिसाल थे जिन्होंने राजनीति में मानवीयता के सिद्धान्तों की मरते दम तक पुरजोर पैरवी की और पूरी दुनिया के सामने सिद्ध कर दिया कि 1947 में भारत का विभाजन पूरी तरह गलत था क्योंकि वह मजहब की बुनियाद पर किया गया था। उनकी हत्या में शामिल जालिम को पांच दिन के भीतर फांसी पर लटका कर बांग्लादेश ने अपने अनूठेपन का पुनः प्रदर्शन किया है। 
यह देश इसलिए भी अनूठा कहा जा सकता है क्योकि इसमें तीज त्यौहार बंगाली होते हैं जबकि इसकी 85 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। बेशक फिलहाल इस देश की प्रधानमन्त्री शेख की सुपुत्री शेख हसीना ही हैं जो हत्याकांड से बचने वाली अकेली थी क्योंकि तब वह विदेश में थी मगर बांग्लादेश के करोड़ों लोगों ने लोकतान्त्रिक तरीके से अपने वोट का प्रयोग करके उन्हें चुना है। बंगबन्धु का यह नारा ‘आमार शोनार बांग्ला’ पाकिस्तान की छाती में गड़ा हुआ वह शूल है जिसे कोई मजहबी तजवीज स्वाहा नहीं कर सकती।
–आदित्य नारायण चोपड़ा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 × five =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।