रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में मन्त्रिमंडलीय समूह की बैठक में कल हुई समीक्षा में यह तथ्य उभर कर आया है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में फसल की कटाई के पर्याप्त साधन मुहैया कराने की जरूरत है जिससे कृषि पर निर्भर देश की साठ प्रतिशत आबादी को राहत मिल सके। इसके साथ यह भी हकीकत है कि 21 दिन का देश व्यापी लाॅकडाऊन आगामी 14 अप्रैल को पूरा हो जाने के बाद कोरोना से लड़ने की अगली रणनीति क्या हो इस पर राज्य सरकारों के साथ गहन विचार-विमर्श की जरूरत है। दूसरी तरफ आज ही प्रधानमन्त्री के साथ विपक्षी दलों की बैठक हुई जिसमें देश व्यापी लाॅकडाऊन को आगे बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई है और विपक्षी दलों के नेताओं ने एक स्वर से प्रधानमन्त्री के साथ खड़े होने का वचन दिया है परन्तु राज्य सरकारें अपने स्तर पर जिस तरह कोरोना के प्रकोप को थामने के कदम उठा रही हैं उनकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती क्योंकि अन्ततः जमीन पर उन्हें ही काम करना होता है।
अभी तक कम से कम सात राज्यों ने मंशा जाहिर की है कि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उन्हें लाॅकडाऊन अवधि को बढ़ाने का अधिकार दिया जाये। राज्यों के संघ के रूप में भारत राष्ट्र की संरचना को देखते हुए केन्द्र के महत्वपूर्ण फैसलों में राज्यों की शिरकत आवश्यक अंग होती है। ये सरकारें ही अपने प्रशासनिक अमले की मार्फत केन्द्र की नीतियों को लागू करने का काम करती हैं और भारत के संघीय ढांचे को सलाम करती हैं। कोरोना के मामले में एक बात साफ तौर पर समझी जानी चाहिए कि कानून व्यवस्था राज्यों का विशिष्ट अधिकार होता है अतः अपने-अपने राज्य की स्थितियों के अनुसार हालात को देखते हुए वे जरूरी कदम उठाने को स्वतन्त्र रहती हैं। इसी अधिकार का प्रयोग करके राजस्थान के मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलौत ने भीलवाड़ा में कोरोना के ‘सामुदायिक परावर्तन’ पर नियन्त्रण किया था जब उन्होंने इस शहर में कर्फ्यू को ‘महाकर्फ्यू’ में बदल दिया।
इसी प्रकार पंजाब में भी कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने कुछ स्थानों पर कर्फ्यू जैसे हालात बना कर कोरोना के प्रसार को रोकने की कोशिश की और उन्होंने सार्वजनिक आवागमन पर 30 अप्रैल तक प्रतिबन्धों को बढ़ा दिया है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने अपने प्रशासन के विवेक के अनुसार लाॅकडाऊन की शर्तों को सख्त व गरम बनाया और राज्य के 15 जिलों को ‘सील’ करने के आदेश दिये राजनाथ सिंह रक्षामन्त्री होने के नाते जानते हैं कि सीमावर्ती राज्यों में कोरोना के कहर को रोकने के लिए अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत पड़ सकती है इसीलिए वे इस सिलसिले में सैनिक कमांडरों से भी बीच-बीच में विचार-विनिमय करते रहते हैं और प्रधानमन्त्री को सभी पक्षों से अवगत कराते रहते हैं। मगर इस सन्दर्भ में दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल का जिक्र किया जाना भी जरूरी है जिन्होंने पूरी हिम्मत और चतुरता के साथ देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना को समुदायों में फैलने नहीं दिया और स्थानीय स्तर तक ही सीमित रखा। राजधानी की जिम्मेदारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और उन्होंने यह कहने में भी कोई हिचक नहीं दिखाई कि दिल्ली में कोरोना से संक्रमित लोगों में ‘तबलीगी जमात’ के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा 67 प्रतिशत के करीब है। अतः राज्य सरकारों की भूमिका कोरोना वायरस को परास्त करने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण कही जा सकती है परन्तु यह भूमिका प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की दृढ़ इच्छा शक्ति से ही उन्हें प्राप्त हुई है।
श्री मोदी ने लाॅकडाऊन लागू करते ही साफ कर दिया था कि यह लड़ाई सिर्फ आत्मसंकल्प से ही जीती जा सकती है और यह संकल्प सामाजिक दूरी बनाने का होगा और डाक्टरों की सलाह मानने से होगा। अतः श्री मोदी आगामी 11 अप्रैल को सभी राज्यों के मुख्यमन्त्रियों के साथ ‘वीडियो बैठक’ करने के बाद लाॅकडाऊन को बढ़ाने या नई शर्तें लागू करने पर अंतिम फैसला लेंगे अभी लाॅकडाऊन के छह दिन और हैं और इस दौरान हमें अच्छी व बुरी दोनों ही प्रकार की खबरें मिली हैं। अच्छी खबर यह है कि कोरोना का संक्रमण देश के 62 जिलों में ही भयंकर रहा है जहां 80 प्रतिशत संक्रमित लोग हैं और बुरी खबर यह है कि अभी भी रोगियों की संख्या बढ़ रही है। हालांकि इसकी बढ़ौत्तरी में अब कमी आनी शुरू हो चुकी है। मगर कोरोना संक्रामक कुछ इलाके तेजी से उभरे हैं इससे यह उम्मीद तो बंधती नजर आ रही है कि हम इस पर काबू पाने में जल्दी ही कामयाब हो जायेंगे परन्तु जरा सी लापरवाही स्थिति को बिगाड़ भी सकती है। इसी वजह से राज्य सरकारें किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहतीं और वे लाॅकडाऊन को कुछ और समय के लिए बढ़ाना चाहती हैं। फिलहाल देश भर में जिस तरह आवागमन के साधनों ट्रेनों व बसों का चक्का जाम है क्या उसे 14 अप्रैल के बाद चालू करना जोखिम भरा हो सकता है? यह सवाल बहुत टेढ़ा है जिसका उत्तर विशेषज्ञ ही ढूंढ सकते हैं कि किस प्रकार आम जनता को राहत की सांस देने के लिए बिना कोई जोखिम उठाये जरूरी उपाय किये जायें.इसके लिए जरूरी है कि देश भर में संदिग्ध लोगों की कोरोना जांच मे वृद्धि की जाये और उहें अलगाव में डालने की पक्की व्यवस्था करके शेष आबादी को आशवस्त किया जाये। यह नमूना दक्षिण कोरिया ने पेश किया है और कोरोना को नियन्त्रित करने में सफलता प्राप्त की है। इसी प्रकार चीन ने भी यही तरीका अपनाया है और अब वह कोरोना के केन्द्र के नाम से जाने जाने वाले अपने ‘वुहान’ शहर को फिर से खोलने की तैयारी कर रहा है। चीन ने तो कोरोना को शंघाई शहर तक में प्रवेश नहीं करने दिया। बेशक यह कम्युनिस्ट तानाशाही वाला देश है और अपने लोगों के साथ किसी खिलौने की तरह व्यवहार करने से भी नहीं हिचकता है परन्तु भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने की वजह से सर्वप्रथम अपने नागरिकों के आत्मसम्मान को सर्वोपरि रख कर ही कोई कदम उठाता है और इसके चलते ही हमने जन सहयोग से कोरोना का प्रकोप को समाप्त करने की बीड़ा उठाया है और आंशिक सफलता भी प्राप्त कर ली है। मगर चुनौती का समय 14 अप्रैल के बाद ही शुरू होगा और संक्रमण की किसी भी संभावना को दूर करना होगा जिसके लिए लाॅकडाऊन बढ़ाना लाजिमी तक हो सकता है। खुदा अक्ल दे तबलीगियों को जो भारत की इस दरियादिली का बेजा फायदा उठाना चाहते हैं और भारतीयों के संकल्प को ढीला करना चाहते हैं।