वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की ओर से हमने जब से बुजुर्गों की सेवा, सहायता, सहयोग का मिशन आरम्भ किया। इससे हमें बहुत से लोग ऐसे मिले जिनसे मुझे मां-बाप से बढ़कर प्यार मिला। वो मेरे माता-पिता तो नहीं थे, परन्तु मेरे माता-पिता जैसे थे। या यूं कह लो इस दुनिया में मुझे यह अहसास करा दिया कि खूनी रिश्तों से बढ़कर भी कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो आपके जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, जिनमें आपको मां-बाप, भाई-बहन जैसा प्यार मिलता है, आदर और सम्मान मिलता है। जैसे महाशय जी उन्होंने न केवल मुझे सहयोग दिया, प्यार दिया बल्कि कदम-कदम पर मुझे उत्साहित करते रहे, कभी लिखकर, कभी बोल कर। नरेन्द्र चंचल जी जिन्होंने न केवल क्लब के लिए भेंटें गाईं और मुझे हमेशा मां कहकर सम्बोधन करते थे। आज भी उनकी आवाज कानों में गूंजती है मां…। भोलानाथ विज जी जिनकी कमी पूरी नहीं हो सकती। वो मेरे आदर्श थे, पिता समान, बड़े भाई समान हमेशा मेरा मार्गदर्शन किया और जो उन्होंने और उनकी पत्नी ने मुझे प्यार दिया। आज भी मुझे वह महसूस होता है क्योंकि उनके प्यार और सम्मान को लेकर उनका बेटा अंकुश विज, बहू विदू विज और बेटी पूजा उसी तरह चलने की कोशिश करते हैं और वो मेरे परिवार की तरह हैं। ऐसे ही श्रीमती मालती सिंघल जिन्होंने जीते जी हमारे 50 बुजुर्ग एडोप्ट किए और आखिरी दम तक यही कहती रहीं कि बेटी पैदा कर ले। अभी लेट नहीं हैं और मैं उनकी बात सुनकर खूब हंसती थी। यहां तक कि बेटे की रिसेप्शन पर जब मैंने अपनी बहू को मिलाया कि यह मेरी बेटी है तो भी मुझे कहने लगीं यह तो ठीक है पर अभी भी तुम बड़ी नहीं हो, बेटी पैदा कर लो।
ऐसे ही भारती नैय्यर थीं जिन्होंने मुझे बहुत स्नेह दिया, प्यार दिया। ऐसे ही एक व्यक्ति दीपक जालंधरी जो मेरे पिता ससुर के घनिष्ठ मित्र थे, वो कल चल बसे, वो मेरे पिता नहीं परन्तु पिता से बढ़कर। वो मेरे ससुर नहीं थे, परन्तु ससुर से बढ़कर थे। जैसे ही पिता ससुर का साया हमारे सिर से उठा उन्होंने हमेशा उनके स्थान पर हमें प्यार, स्नेह दिया, वो हमारे दु:ख-सुख के साथी थे।
जब अश्विनी जी बीमार थे तो रोज उनके फोन आते थे। उनका हालचाल पूछते रहते, प्राय: मिलने भी चले आते। आदरणीय ससुर रमेश चन्द्र जी के उनके गहरे मधुर संबंध थे तथा घनिष्ठ मित्रता रही। पंजाब केसरी परिवार में उनके लेखों, व्यंग्यात्मक रचनाओं, शेरो-शायरी का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा। कलम के धनी तथा पारिवारिक रिश्तों में उनकी गहरी आस्था के लिए वे सदैव स्मरणीय रहेंगे। अभी-अभी खबर मिली कि सिटी पार्क होटल के मालिक राजेन्द्र अग्रवाल नहीं रहे। उन्होंने भी एक भाई की तरह बहुत साथ दिया। हर साल सीनियर सिटीजन के लिए उनके होटल में महामृत्युंज्य का पाठ हुआ। उन्होंने बड़े सच्चे दिल से सेवा की। सबको अपना स्थान और स्वयं प्रसाद खिलाते थे। पिछले दिनों से काफी अस्वस्थ चल रहे थे। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
कुछ दिन पहले उनसे और उनकी पत्नी से बात हुई तो उनको सरवाइकल था, उन्हें चक्र आ रहे थे। मैंने उन्हें बड़ा हौंसला भी दिया, परन्तु वो ही जो जीवन, मरण, सब प्रभु हाथ। वह हजारों वरिष्ठ नागरिकों की दुआएं लेकर इस दुनिया से चले गए।
वाकई लोग चले जाते हैं, परन्तु उनके अच्छे कर्म याद रहते हैं। उनका व्यवहार याद रहता है। द्य