देश में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ रही है और शिक्षित बेरोजगाराें की दर में तो अच्छी-खासी वृद्धि हो चुकी है। सैंटर फार मॉनिटरिंग इकोनामी ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में देश में बढ़ती बेरोजगारी के आंकड़े जारी करते हुए बताया कि वर्ष 2018 में 1.10 करोड़ भारतीयों ने नौकरियां गंवाई हैं। तीन दशक पहले नव-उदारवादी आर्थिक नीतियां लागू होने से पहले तक देश में सकल रोजगार में सरकारी नौकरियों का हिस्सा दो फीसदी होता था लेकिन उदारवादी आर्थिक नीतियों के बाद विभिन्न क्षेत्रों के निजीकरण के चलते नौकरियों में लगातार कमी आ रही है। रोजगार युवाओं का अधिकार है। अब सवाल उठता है कि क्या सभी बेरोजगार युवाओं, खासताैर पर शिक्षितों, को रोजगार मुहैया कराना सरकार की ही जिम्मेदारी है?
बेरोजगारी हर दौर में समस्या रही है, जिसे दूर करने का वादा हर सरकार ने किया है लेकिन यह समस्या अब विकराल रूप ले चुकी है। युवाओं का गुस्सा फूट रहा है। देश में कितनी नौकरियां पैदा होंगी, यह सरकार की नीतियों से तय होता है। आज ऐसी धारणा बन चुकी है कि नौकरियां देने की जिम्मेदारी केवल सरकार की है, जबकि नौकरियां तो योग्यता से मिलती हैं। सरकारें घोषणाएं करती हैं कि निजी क्षेत्र में हजारों करोड़ का निवेश होगा। वह निवेश के लिए सारे दरवाजे खोल देती हैं। निवेश होगा तो हजारों लोगों को नौकरियां मिलेंगी लेकिन परिणाम सबके सामने हैं। राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी का परिदृश्य किसी से छिपा हुआ नहीं है।
निजी क्षेत्र वहीं निवेश करता है जहां उसे लाभ की उम्मीद होती है। निजी क्षेत्र कम श्रम में काम चलाना चाहता है। सभी वर्गों के युवा ज्यादा से ज्यादा पढ़ रहे हैं लेकिन नौकरियों का अकाल है। गांवों में परम्परागत और पैतृक व्यवसायों का खत्म होना भी चिन्ता की बात है। आज छोटे काम-धंधे कोई नहीं करना चाहता क्योंकि समाज इन व्यवसायों को प्रतिष्ठित स्थान नहीं देता। दूसरी तरफ अंधाधुंध मशीनीकरण की मार भी छोटे काम-धंधों पर पड़ चुकी है। आज जूते-चप्पल, वस्त्र, बर्तन सब-कुछ ब्रांडेड हो चुका है। लोग सामान खरीदते हैं और पुराना हो जाने पर उसे फैंक देते हैं। स्किल डिवैलपमैंट जैसी योजनाएं इसी वजह से नहीं चल पा रहीं क्योंकि पढ़े-लिखे युवाओं को परम्परागत व्यवसायों में अब कोई संभावना नहीं दिखती।
कुछ राज्य सरकारों ने रोजगार केन्द्र ठेके पर दे दिए। रोजगार केन्द्र कई वर्षों से प्रभावी तरीके से काम नहीं कर रहे, लेकिन उन्हें दुरुस्त करने की बजाय सरकारों ने उन्हें निजी हाथों में देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। राज्य सरकारों ने भी अपने हर विभाग में ठेके पर काम कराना शुरू कर दिया है। जब राज्य सरकारें ही अनुबंध के आधार पर काम कराने लग गई हैं तो रोजगार के अवसर कहां मिलेंगे। एक या दो साल अनुबंध पर काम करने के बाद युवा फिर खाली हाथ हो जाते हैं। सरकार कहती है कि युवा रोजगार देने वाले बनें, उन्हें बैंक लोन के लिए गारंटी की जरूरत नहीं लेकिन बैंक बिना गारंटी के लोन देने को तैयार नहीं। आंकड़े कुछ और गवाही दे रहे हैं, कुल नौकरियों में 2004-2005 में जो शेयर 23.2 था, अब घटकर आधा होने को है। चुटकी भर नौकरियों के लिए मारामारी तो मचेगी ही।
जब तक देश के सभी युवाओं को उनकी योग्यता और आवश्यकता के अनुसार काम नहीं मिलता तब तक एक स्वच्छ, सुखी और उन्नत देश का निर्माण असंभव है। आज दुनियाभर में जितने भी विकसित देश हैं उनकी जनसंख्या बहुत कम है, हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए जनसंख्या वृद्धि को रोकना ही होगा। कम जनसंख्या वाले देशों में नौकरियों के अवसर बहुत ज्यादा हैं। आज भारत में बढ़ती जनसंख्या के मुकाबले रोजगार कम पड़ रहे हैं। यही कारण है कि चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए हजारों उच्च शिक्षित युवाओं की भीड़ लग जाती है। इस समय लगभग एक करोड़ 54 लाख नौकरियां हैं। इसमें केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की हर लेबल की नौकरियां शामिल हैं। राज्य सरकारें नौकरियों में स्थानीय स्तर को प्राथमिकता देती हैं।
सरकारी नौकरियों में 40 फीसदी नौकरियां अनुबंध के आधार पर हैं। कुछ वर्षों में हुई एसएससी की परीक्षाओं और राज्य सरकारों द्वारा की गई भर्ती में कितना भ्रष्टाचार हुआ वह भी सामने आ चुका है। हर पेपर लीक हो जाता है, परीक्षाएं रद्द की जाती हैं और मेधावी छात्र फार्म भरकर एडमिट कार्ड का बार-बार इंतजार करते हैं। उन्हें तो कई परीक्षाओं से होकर गुजरना पड़ता है। आपने ये इश्क नहीं आसां वाला शेेे’र तो सुना ही होगा। आप शे’र में इश्क की जगह नौकरी पढ़िये, यानी-
ये नौकरी नहीं आसां,
आग का दरिया है
डूब कर जाना है।
इन सब चुनौतियों के बीच सिक्किम की पवन कुमार चामलिंग सरकार ने ‘एक परिवार, एक नौकरी’ योजना की शुरूआत की है। सरकार ने गंगटोक में रोजगार मेला आयोजित करके 12 हजार बेरोजगार युवक-युवतियों को अस्थाई नौकरी के अनुबंध किए हैं। इस योजना के पहले चरण में 20 हजार युवाओं को नौकरी देने का लक्ष्य रखा गया है। यह योजना पूरे देश के लिए एक नजीर है।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कोई पद बड़ा-छोटा नहीं होता। नौकरी नौकरी होती है, काम काम होता, इसका सम्मान किया ही जाना चाहिए। अन्य राज्य सरकारें भी सिक्किम माडल अपना सकती हैं। बेरोजगारी का संकट दूर करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना चाहिए ताकि युवाओं को काम मिल सके।