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मनरेगा, दिल्ली और अस्पताल

भारत के राजनैतिक लोकतन्त्र की यह विशिष्टता और विशेषता रही है कि दुनिया के समक्ष इसके परस्पर विरोधी राजनीतिज्ञों ने भी भारत की सफलता के बारे मे एक राय व्यक्त की है

भारत के राजनैतिक लोकतन्त्र की यह विशिष्टता और विशेषता रही है कि दुनिया के समक्ष इसके परस्पर विरोधी राजनीतिज्ञों ने भी भारत की सफलता के बारे मे एक राय व्यक्त की है, आज पूरे देश में जिस रोजगार गांरटी कानून ‘मनरेगा’ की चर्चा हो रही है उसे कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में बनाया था और तब संसद में बैठे विपक्षी दलों ने इसकी सफलता पर शंकाएं भी खड़ी की थीं,
परन्तु कालान्तर में यह योजना गांवों से गरीबी को कम करने का धारदार औजार बनी और इसका प्रभाव यहां तक हुआ कि 2010 से 2015 के बीच लगभग 27 करोड़ लोग गरीबी की सीमा रेखा से ऊपर आये मगर यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि 2012 में जब लोकसभा में विपक्षी दल भाजपा के सांसद की हैसियत से बैठे श्री लालकृष्ण अडवानी अन्य सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के साथ राष्ट्रसंघ के 67वें आम सम्मेलन में भाग लेने गये और वहां जब ‘सामाजिक विकास’ के मुद्दे पर उन्होंने  सभा को सम्बोधित किया तो भारत में विरोधी कांग्रेस की मनमोहन सरकार द्वारा चलाई गई मनरेगा स्कीम या योजना को उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था का शक्तिदायक ‘टानिक’ बताते हुए कहा कि पूरी दुनिया की यह ऐसी सबसे बड़ी स्कीम है जो काम के बदले नकद राशि देकर पांच करोड़ 30 लाख ग्रामीण भारतीयों को साल में एक सौ दिन का रोजगार देकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है और इसमें भी 50 प्रतिशत काम महिलाओं को दिया जाता है।
इस योजना से भारत में सामाजिक असमानता कम हो रही है, ग्रामीण सशक्त हो रहे हैं, ग्रामीण आधारभूत ढांचा सुधर रहा है और अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। श्री अडवानी का आंकलन गलत नहीं था। श्री अडवानी ने भारत द्वारा गांवों में महिलाओं को सशक्त करने के लिए उठाये जा रहे कदमों के बारे में भी तफसील से बताया था। अतः कोरोना संक्रमण से शहरों से गांवों की तरफ हो रहे पलायन को देखते हुए मनरेगा का सीमित बजट बांधना उचित नहीं रहेगा।
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि राजनैतिक दलों की वजह से न देश होता है और न लोकतन्त्र बल्कि देश और लोकतन्त्र की वजह से राजनैतिक दल होते हैं। इस नजरिये से दिल्ली के मुख्यमन्त्री द्वारा आज दिल्ली की दूसरे राज्यों से लगी सीमाएं खोलने के बाद यह कहना कि दिल्ली की चिकित्सा प्रणाली पर पहला हक दिल्लीवासियों का होगा, किसी भी तरह बेजा नहीं है क्योंकि दिल्ली सरकार ने दिल्ली वासियों से राजस्व वसूल कर ही राजधानी में इस तन्त्र को खड़ा किया है। पूरे देश में दिल्ली एकमात्र ऐसा राज्य है जो अपने बजट का शिक्षा व स्वास्थ्य पर सर्वाधिक खर्च करता है।
अतः दिल्ली सरकार के अस्पतालों पर दिल्ली वालों का ही पहला हक बनता है, यह हक जाहिर तौर पर केवल कोरोना से निपटने तक के लिए है वरना दिल्ली के दरवाजे सभी के लिए खुले रहते हैं लेकिन मुख्यमंत्री केजरीवाल को यह भी विचार करना चाहिए था कि दिल्ली देश की राजधानी है। अत: संक्रमण काल में भी इसके दरवाजे दूसरे राज्यों के लिए बंद नहीं हो सकते।
सवाल यह है कि संकट के समय दूसरे राज्यों से तो लोग दिल्ली आते हैं मगर जब दिल्लीवासियों पर संकट हो तो वे कहां जायेंगे। अतः इस मामले को राजनैतिक चश्मे से नहीं बल्कि मानवीय दृष्टि से देखा जाना चाहिए और दिल्ली वालों के नजरिये का ध्यान रखा जाना चाहिए। दिल्ली में जो निजी अस्पताल खड़े किये गये हैं उनके लिए जमीन का आवंटन बहुत सस्ते दामों पर किया जाता है। अतः इस पर गौर किया जाना चाहिए कि कोरोना से गंभीर रूप से पीड़ित दिल्ली से बाहर के नागरिक का इलाज भी इनमें किया जा सके।
बेशक केन्द्र सरकार के अस्पतालों में कोई रोक-टोक नहीं होगी और स्पेशलिटी अस्पताल पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं होगा किन्तु निजी अस्पतालों का दायित्व भी बनता है कि वे मरीज की हालत देख कर उसे भर्ती करें। ऐसा नहीं हो सकता कि दिल्ली से बाहर का कोई नागरिक दम तोड़ने की हालत में हो और उसे अस्पताल भर्ती करने से सिर्फ इसलिए मना कर दे कि वह दिल्ली का रहने वाला नहीं है। इसे हम वाजिब नहीं मान सकते। हालांकि उपराज्यपाल ने उनके फैसले को पलट दिया है मगर कुछ जायज सवाल तो खड़े ही रहेंगे। इस मुद्दे को हम राजनीति का खिलौना भी नहीं बना सकते क्योंकि आम आदमी पार्टी के एक क्षेत्रीय दल होने की वजह से उसकी सोच में सबसे ऊपर दिल्ली ही रहेगी।
मुद्दे की बात यह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में केजरीवाल सरकार ने जिस तरह ध्यान दिया है और मोहल्ला क्लीनिकों के माध्यम से आम लोगों में विश्वास जगाया है उसकी प्रशंसा दलगत भावना से ऊपर उठ कर उसी प्रकार की जानी चाहिए जिस तरह श्री अडवानी ने मनरेगा की तारीफ की थी। दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामलों में लगातार तेजी के साथ वृद्धि हो रही है तो उनके इलाज के लिए भी तो अस्पताल चाहिए। हकीकत तो यह रहेगी कि दिल्ली वालों से ही ये अस्पताल बहुत जल्दी भर जायेंगे, इसके साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चिकित्सा सुविधाओं का जायजा लेकर नोएडा व गुड़गांव जैसी जगहों पर रहने वाले लोगों को भी वरीयता मिलनी चाहिए।
-आदित्य नारायण चोपड़ा

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