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मोदी ने संभाली जिम्मेदारी

भारत की संघीय व्यवस्था में राज्यों के संघ (यूनियन आफ इंडिया) यानि भारत की केन्द्र सरकार को समूचे देश में संविधान का शासन देखने का अख्तियार इस प्रकार दिया गया है

भारत की संघीय व्यवस्था में राज्यों के संघ (यूनियन आफ इंडिया) यानि भारत की केन्द्र सरकार को समूचे देश में संविधान का शासन देखने का अख्तियार इस प्रकार दिया गया है कि यह किसी भी राज्य में परिस्थितियां संविधान के कायदे से बाहर होने पर वहां की चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करते हुए सत्ता अपने हाथ में ले सकती है। संविधान निर्माताओं ने देश की एकता व अखंडता और सार्वभौमिकता के नजरिये से यह ‘कशीदाकारी’ इसीलिए की जिससे भारत का कोई भी राज्य किसी भी विकट स्थिति में स्वयं को अलग-थलग पड़ा हुआ न देख सके। कोरोना संक्रमण के चलते आम जनता को वैक्सीन लगाने के सवाल पर दूसरी दिशा (राज्यों की तरफ से) ऐसे मुद्दे प्रखरता के साथ उभरे जिसमें स्वयं केन्द्र ही राज्यों की असमर्थता पर मूकदर्शक बना हुआ था। अतः प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस अभूतपूर्व संकटकाल में स्वयं आगे बढ़ कर पूरे राष्ट्र को नेतृत्व प्रदान करते हुए प्रत्येक वयस्क नागरिक को वैक्सीन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी लेते हुए घोषणा की कि राज्यों को अब चिन्तामुक्त हो जाना चाहिए। 
दरअसल राज्यों की सरकारें मांग कर रही थीं कि पूरे देश की वैक्सीन नीति इस प्रकार हो कि केन्द्र उनकी खरीदारी करे और राज्यों के स्थापित चिकित्सा तन्त्र की मार्फत प्रत्येक नागरिक को उसे लगाने का इंतजाम बांधे। प्रधानमंत्री ने उनकी यह मांग मान ली है। इससे पूर्व विगत 16 जनवरी से 45 वर्ष से ऊपर आयु के लोगों को केन्द्र सरकार ही मुफ्त वैक्सीन राज्यों के माध्यम से लगा रही थी। अब यही व्यवस्था 21 जून से 18 वर्ष से ऊपर की आयु के लोगों के लिए होगी। दरअसल इस नीति में परिवर्तन कई कारणों से हुआ। एक तो राज्यों की तरफ से यह मांग की जा रही थी कि स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार कोरोना संक्रमण से निपटने के अधिकार उन्हें दिये जायें और वैक्सीन लगाने में वरीयता तय करने के अधिकारों का विकेन्द्रीकरण किया जाये। केन्द्र ने तब 18 से लेकर 44 वर्ष तक की आयु के लोगों को वैक्सीन लगाने व खरीदने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ दी। इसके लिए केन्द्र ने जो नीति बनाई उसके अन्तर्गत वैक्सीन उत्पादकों से केवल 50 प्रतिशत वैक्सीन ही वह खरीदेगा और 45 से ऊपर आयु के लोगों के मुफ्त लगाता रहेगा जबकि 50 प्रतिशत वैक्सीनें राज्य सरकारों व निजी चिकित्सा क्षेत्र के लिए आरक्षित रहेंगी। इस 50 प्रतिशत में से भी 50 प्रतिशत वैक्सीनें निजी क्षेत्र को मिलेंगी जो नागरिकों से तय फीस वसूल कर उसे लगायेगा। इस नीति के चलते राज्यों ने स्वयं वैक्सीन खरीदने के आदेश उत्पादकों को जब दिये तो वे हाथ खड़े करने लगे और कहने लगे कि उनकी उत्पादन क्षमता को देखते हुए आदेशों का पालन जल्दी नहीं हो सकता। 
केन्द्र ने राज्यों को विदेशों से भी वैक्सीन खरीदने की इजाजत दी। वहां से भी उन्हें टका सा जवाब मिला कि जब तक उनकी देश की सरकार उनकी बनाई गई वैक्सीनों को भारत में प्रयोग करने की इजाजत नहीं देती तब तक वे किसी भी राज्य के आदेश पर कैसे गौर कर सकती है?  यह बहुत वाजिब सवाल था कि जब वैक्सीनें ही नहीं होंगी तो राज्य सरकारें लगायेगी कैसे। इसके साथ एक और समस्या थी कि वैक्सीन उत्पादक कम्पनियों के लिए निजी क्षेत्र व राज्य सरकारों को दी जाने वाली वैक्सीन की दरों में काफी अन्तर रखा गया था। उत्पादक कम्पनियों को निजी क्षेत्र को बढ़ी दरों पर वैक्सीन सप्लाई करने की छूट मिलने की वजह से वे पहले उनके सप्लाई आदेश ही पकड़ने लगीं और देखते-देखते ही देश की चार बड़ी चिकित्सा कम्पनियों फोर्टिस, अपोलो व मनीपाल आदि ने भारी आर्डर सुरक्षित करा लिये। इस नीति की वजह से वैक्सीन मिलने व उसे लगाने के मुद्दे पर भारी भ्रम व असमंजस या अराजकता तक की स्थिति पैदा होने का डर पैदा होने लगा जिसका संज्ञान देश की सर्वोच्च अदालत ने भी लिया और केन्द्र को स्पष्टता बरतने का निर्देश दिया।  अब प्रधानमन्त्री ने घोषणा कर दी है कि स्वयं राष्ट्र की सरकार 75 प्रतिशत वैक्सीन खरीद कर उसे राज्यों में इस प्रकार तकसीम करेगी कि प्रत्येक वयस्क नागरिक के जल्दी से जल्दी वैक्सीन लग सके।  यह वैक्सीन पूरी तरह मुफ्त लगाई जायेगी। गौर से देखा जाये तो यह प्रत्येक नागरिक का अधिकार भी है क्योंकि महामारी के समय नागरिकों की सुरक्षा का अधिकार चुनी हुई सरकारों की जिम्मेदारी बन जाता है। क्योंकि जीवन जीने का मूलभूत अधिकार प्रत्येक नागरिक के पास होता है और उसकी सुरक्षा करने की गारंटी सरकार देती है। इस अधिकार के बीच अमीर-गरीब या जाति-धर्म का कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। मगर इसके साथ ही संविधान यह भी अधिकार देता है कि प्रत्येक नागरिक को अपनी तरह से संवैधानिक दायरे में जीवन जीने का अधिकार है। अतः 25 प्रतिशत वैक्सीन निजी चिकित्सा क्षेत्र के लिए आरक्षित करने की कुछ विद्वजन जो आलोचना कर रहे हैं वे इस नुक्ते पर भी नजर डालें। किसी भी आर्थिक रूप से समर्थ व्यक्ति पर दबाव नहीं है कि वह अपने खर्चे पर ही वैक्सीन लगवाये उसके लिए मुफ्त वैक्सीन का दरवाजा भी खुला हुआ है। बेशक इसमें बराबरी के सिद्धान्त की अवहेलना होती दिखाई पड़ सकती है मगर यह देश द्वारा अपनाई गई बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के सिद्धांत के अनुरूप होने के साथ समाजवाद के सिद्धान्त पर भी सटीक बैठता है कि जिसके पास धन सामर्थ्य है, सत्ता उसका उपयोग वंचितों की मदद करने के लिए करे। देखना केवल यह होगा कि यह सुविधा देश के हर राज्य में सुदूर क्षेत्रों में भी उपलब्ध हो और निजी क्षेत्र पर कुछ बड़ी कम्पनियों का एकाधिकार न होने पाये। इसके लिए भी केन्द्र ने एक योजना तैयार की है जिसके तहत राज्य सरकारें निजी असपतालों की कुल जरूरत का ब्यौरा केन्द्र को देंगी और केन्द्र राज्यों की मार्फत अधिकृत छोटे अस्पतालों को वैक्सीन सुलभ करायेगा। इसके साथ ही केन्द्र ने गरीब परिवारों को पांच किलो की दर से मुफ्त राशन उपलब्ध कराने की स्कीम को नवम्बर तक बढ़ा दिया है। इसका और पुरजोर स्वागत होता यदि इन परिवारों के खातों में नवम्बर महीने तक घर का खर्च चलाने और कर्ज निपटाने के लिए कुछ धनराशि भी भेजी जाती क्योंकि एक सर्वेक्षण के अनुसार कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने इन्हें या तो घर के बर्तन बेचने को मजबूर किया अथवा कर्जदार बनने को लाचार किया। 

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