मूडीज की रेटिंग और भारत - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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मूडीज की रेटिंग और भारत

ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने भारत के क्रेडिट रेटिंग आउटलुक को स्टेबल से बदल कर नेगेटिव कर दिया है।

ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने भारत के क्रेडिट रेटिंग आउटलुक को स्टेबल से बदल कर नेगेटिव कर दिया है। मूडीज का कहना है कि आने वाले समय में आर्थिक विकास दर में गिरावट के जोखिम को देखते हुए ऐसा किया गया है। हालांकि मूडी ने भारत की विदेश और स्थानीय रेटिंग को बरकरार रखा है। मूडीज द्वारा रेटिंग घटाने के बाद से ही शेयर बाजार में गिरावट देखी गई। मूडीज का आउटलुक घटाने का मतलब है कि वह आने वाले समय में निवेश के नजरिये से भारत की रेटिंग घटा सकता है। 
ऐसा होने से देश में विदेशी निवेश घट सकता है। इससे पहले मूडीज ने 2019-20 में जीडीपी ग्रोथ में अनुमान घटाकर 5.8 फीसदी कर दिया था। पहले उसने जीडीपी में 6.2 फीसदी की ग्रोथ होने का अनुमान जारी ​किया था। इससे पहले भी कई रेटिंग एजैंसियां भारत की अर्थव्यवस्था में बढ़त और यहां के नजरिये के बारे में अपने अनुमान को घटा चुकी है। अप्रैल से जून की ​तिमाही में भारत की जीडीपी में बढ़त महज पांच फीसदी रही, जो 2013 के बाद सबसे कम है। इसमें कोई संदेह नहीं कि वैश्विक स्तर पर छाई मंदी से भारत अछूता नहीं है। 
प्राइवेट सैक्टर के एक सर्वे से पता चलता है कि भारत के सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में लगातार दूसरे महीने में ​गिरावट दर्ज की गई है। सर्वे के मुताबिक फाइनैंस, बीमा, रियल एस्टेट और बिजनेस स​र्विसेज ने भारतीय की सर्विस अर्थव्यवस्था की कमजोरी में अहम भूमिका निभाई है। घरेलू बाजार में मांग की कमजोरी बनी हुई है। केवल उपभोक्ता सेवाओं का प्रदर्शन अच्छा रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं। वह लगातार मंथन कर रही हैं। उन्होंने वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद की बैठक में अर्थव्यवस्था की स्थिति की समीक्षा की। बैठक में वित्तीय क्षेत्र के संकट पर भी विचार किया गया। 
कोर सैक्टर के आर्थिक आंकड़े भी अर्थव्यवस्था की उत्साहजनक तस्वीर नहीं दिखा रहे। अगस्त में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि दर घटकर 1.1 प्रतिशत के 26 माह के निचले स्तर पर आ गई है। वहीं सितम्बर में आठ बुनियादी उद्योगों का उत्पादन 5.2 प्रतिशत घटा है। रिजर्व बैंक का कहना है कि गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों पर भी विचार-विमर्श हुआ। एनबीएफसी ही ऐसी कम्पनी है जो अच्छी तरह से काम कर रही है। इनमें से कुछ एनबीएफसी को बाजार से, कुछ को बैंकों से और कुछ तो विदेशी बाजार से भी कोष उपलब्ध हो रहा है। 
एनबीएफसी क्षेत्र की सम्पत्तियों का 75 फीसदी इन 50 एनबीएफसी के पास है। तमाम नकारात्मक विचारों के बावजूद अनेक अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मंदी का यह दौर अस्थाई है और भारत इससे उभर जाएगा। भारत सरकार ने मूडीज की रेटिंग पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था का आधार मजबूत है और चिंता की कोई बात नहीं है। भारत आज भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में से एक है, इसलिए भारत की आर्थिक स्थिति अभी भी अप्रभावित है। भारत दुनिया का एक विशाल बाजार है और बाजार में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं लेकिन यह स्थिति उत्पन्न क्यों हुई उसके पीछे कई कारण हैं। 
एक बड़ा कारण तो देश की बैंकिंग व्यवस्था है। 3.4 लाख करोड़ का खराब ऋण राइट ऑफ किए जाने के बावजूद बैंकों का एनपीए 10.3 फीसदी हो गया। नॉन फूड क्रेडिट 2015 की तुलना में कम था। सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने में उदासीनता दिखाई, किश्तों में मदद दी, जिससे उनकी परेशानियां कम नहीं हुईं। कृषि क्षेत्र की विकास दर 2.7 फीसदी रह गई। बेरोजगारी की दर बढ़कर 6.1 फीसदी पर पहुंच गई, जो 45 वर्षों में सबसे ज्यादा है। मोदी सरकार ने पाकिस्तान के मोर्चे पर, कश्मीर के मोर्चे पर काफी मजबूती दिखाई है। 
अब समय आ गया है कि अर्थव्यवस्था की विसंगतियों को दूर करने के लिए वित्त मंत्रालय ठोस नीतियां पेश करे और आर्थिक सुधारों की दिशा पकड़ी जाए। वैश्विक मंदी के दौर में देशों की अर्थव्यवस्था अप्रभावित न हो ऐसा हो नहीं सकता। फिर भी भारत में इतनी शक्ति है कि वह हर चुनौती से उभर जाता है। सरकार को कुछ बुनियादी समस्याओं को ठीक करना होगा। सरकार अर्थव्यवस्था में जान डालने के लिए पैकेज दे रही है। उसे बैंकिंग व्यवस्था को उदार बनाने के लिए काम करना होगा। बाजार में धन का प्रवाह बढ़ते ही रौनक आ जाएगी।

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