कहने वाले ने क्या ठीक कहा है कि कार्य ही सबसे बड़ी पूजा है। भगवान कृष्ण ने महाभारत के युद्ध से पहले अर्जुन जब मैदान में फंस गया कि उसे क्या करना है तब उपदेश दिया कि आप केवल कर्म करो यही तुम्हारी सबसे बड़ी पूजा है। फल की इच्छा मत करो। इसी उपदेश के साथ आज भी यह संसार चल रहा है। भगवान कृष्ण सबसे बड़े कर्मयोगी थे। उन्होंने इसीलिए फल की चिंता न करते हुए अपने काम पर इंसान को डटे रहने का उपदेश दिया था। अर्जुन ने भी इसी उपदेश को माना और इसका फल उन्हें यह मिला कि महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत हुई। जीवन के महाभारत में जिस तरह से एमडीएच के परम पूज्यनीय महाशय धर्मपाल जी ने काम किया है वह भारत में एक उदाहरण है। उन्होंने कभी फल की इच्छा नहीं की। भारत सरकार ने उन्हें इस 26 जनवरी पर देश के सर्वोच्च पुरस्कारों में शुमार पद्म भूषण से सम्मािनत किया है। इसके लिए उन्हें पंजाब केसरी दिल्ली और वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की ओर से बहुत-बहुत बधाई। उनको पद्म भूषण पुरस्कार का मतलब है वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान। इससे यह सिद्ध होता है कि आदमी जब 60 साल की उम्र पार कर लेता है तो वह अपने आप को रिटायर न समझे बिल्क काम में डटा रहे।
आज 96 वर्ष के हो चले महाशय जी अपने एमडीएच में अभी भी डटे हुए हैं। इतना ही नहीं सामाजिक कार्यों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए बिना किसी फल की इच्छा किये हुए मेलजोल बढ़ाते रहते हैं। उनकी इस सामजिक भावना को हमारा नमन है। अगर अपना एमडीएच प्रोफेशन वो चला रहे हैं तो पूरी ईमानदारी के साथ अपना प्रोडक्ट बेच रहे हैं। कोई हेराफेरी नहीं और किसी गड़बड़ी की शिकायत लोगों ने उनके प्रोडक्ट को लेकर नहीं की। जब भी अखबारी दुनिया में अपने ऐड को प्रमोट करना हो या फिर चैनल्स की दुनिया में अपने विज्ञापन दिखाने हों तो वह वर्षों से खुद मॉडल बनकर दिखाई देते हैं। उनकी मेहनत, कार्य कुशलता और निराले अंदाज को सलाम है। प्रमाणित हो गया है कि काम करने की कोई सीमा नहीं होती बस एक ललक होनी चाहिए। महाशय जी को देखकर वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के हजारों बुजुर्ग सदस्य सक्रिय रहते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि मंचों पर वे हमेशा अभिनय दिखाने को तैयार रहते हैं। मुझे याद है दुनिया की पहली सीनियर सिटीजन परेड जो वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब ने प्रस्तुत की थी उसमें हमारे महाशय धर्मपाल जी ने जी-जान से हिस्सा लिया था। जब-जब मैंने रिहर्सल की बात की तो वह रिहर्सल में भी नियमित रूप से आते थे। दुःख होता है जब लोग उम्र का रोना रोकर परेशान होते हैं परंतु महाशय जी ने अपने आप को संघर्षों में व्यस्त रखा तथा आज भी डटे हुए हैं।
देश का बंटवारा होने के समय उन्होंने जब दिल्ली में कदम रखा तो तांगा चलाकर भी गुजारा किया लेकिन जिंदगी में कभी हार नहीं मानी। आज भी हम उनको देखते हैं तो वे डटे रहते हैं। केवल एक ही बात कहते हैं कि कर्म करना हमारा फर्ज है, फल देना भगवान का काम। एक बात तो सच है कि हम अपने जीवन में अगर काम करने की ठान लें तो सबकुछ आसान होता चला जाता है। पाकिस्तान से भारत आकर उन्होंने बहुत काम किये और आज भी काम कर रहे हैं। उनका पद्म विभूषण सबके लिए एक प्रेरणास्रोत है कि आप फल की इच्छा न करें बल्कि अपने काम में डटे रहें। देश ने उन्हें एक सम्मान दिया है। उस सम्मान के प्रति हम सरकार का भी आभार व्यक्त करते हैं। काम करने वाले की हमेशा कद्र होती है। फल की तुरंत इच्छा रखना आैर शार्टकट से चलना कभी सफलता नहीं दिला सकता। हमारे यूथ और सीनियर सिटीजन के साथ-साथ देश के हर वर्ग को गीता के इसी उपदेश का पालना करना होगा जिसे महाशय जी ने एक उदाहरण बनकर आम इंसान की तरह निभाया है तभी तो उन्हें सरकार की ओर से इतना प्रतिष्ठित पद्म भूषण पुरस्कार मिला है।
सरकार ने व्यापार जगत में उनकी सेवाओं, उनकी कर्त्तव्य परायणता, उनकी ईमानदारी और इंसानियत के प्रति समर्पण के चलते ही यह पुरस्कार दिया है। महाशय जी आप हमारे आदर्श हैं आपको फिर से बहुत-बहुत बधाई। महाशय जी अपने आप में एक संस्थान हैं। वह प्रेरणा के स्रोत हैं, मेरे लिए और हमारे परिवार के पूजनीय हैं। उनके लालाजी और आदरणीय रमेश जी से बहुत गहरे संबंध थे और उनका आशीर्वाद हमेशा हमारे सिर पर रहता है। पिछले दिनों जब उनका नाम पद्म भूषण में आया तो मुझे बेहद खुशी हुई या यूं कह लो सबको बहुत खुशी हुई होगी। 96 वर्षीय महाशय जी हमारे वरिष्ठ नागरिक केसरी के पहले सदस्य हैं और वरिष्ठ नागरिक केसरी का पहला हैल्थ कैम्प भी उनके आशीर्वाद से शुरू हुआ था और अभी भी तकरीबन हर सप्ताह मुझे फोन करके पूछते हैं कि किरण बुड्ढों से थक तो नहीं गई -वाह महाशय जी आपने तो दुनिया को दिखा दिया कि उम्र की कोई सीमा नहीं किसी भी मुकाम को हासिल करने के लिए एक तांगे वाले से इतना बड़ा बिजनेसमैनाहोना और अपने ब्रांड के खुद एम्बैसडर होना एक बहुत ही अद्भुत अनूठी मिसाल है।