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पंजाब में नगरपालिका चुनाव

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र इसलिए भी कहलाता है कि इसने स्थानीय निकायों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक प्रशासन प्रणाली में आम जनता की सहभागिता की व्यवस्था की जिसे त्रिस्तरीय शासन तन्त्र कहा जाता है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र इसलिए भी कहलाता है कि इसने स्थानीय निकायों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक प्रशासन प्रणाली में आम जनता की सहभागिता की व्यवस्था की जिसे त्रिस्तरीय शासन तन्त्र कहा जाता है। नगर पालिका से लेकर राज्य स्तर व देश के स्तर पर बनी सरकारें सामान्य नागरिकों की सहभागिता से ही उनके एक वोट की संवैधानिक ताकत से बनती हैं। वास्तव में इसे हम लोकतन्त्र का जश्न भी कह सकते हैं क्योंकि दैनिक जीवन की जरूरतों से जुड़े मसलों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की समस्याएं सुलझाने में प्रत्यक्ष रूप से सामान्य नागरिक की संलिप्तता उसके वोट के माध्यम से बनी रहती है। लोकतन्त्र की खूबसूरती यह होती है कि एक तरफ जहां यह दूसरे स्तर पर जन समस्याओं को उठाता रहता है वहीं किसी दूसरे स्तर पर जन समस्याओं के समाधान का मार्ग भी खोजता रहता है। पंजाब इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां विगत रविवार को नगरपालिका चुनाव सम्पन्न हुए। हालांकि दिल्ली के द्वार पर बैठे अधिकतम किसान इसी राज्य से ही अध्यनरत हैं मगर इसी राज्य के नागरिक अपने मूलभूत लोकतान्त्रिक अधिकारों का उपयोग करने के प्रति भी सजग हैं। इसी का परिणाम है कि इन चुनावों में 71 प्रतिशत मतदान हुआ और उन शहरों व कस्बों में यह मतदान और भी अधिक रहा जहां किसान या खेती से जुड़ेे परिवार अधिक संख्या में रहते हैं। रविवार को पंजाब की कुल 117 नगर निकायों में चुनाव हुए जिनमें आठ बड़े शहरों की नगर निगम भी शामिल हैं। इन आठों शहरों में महापौर चुने जायेंगे।
पंजाब में कुल 22 जिले हैं जिनमें से 15 जिलों में 70 प्रतिशत से अधिक मतदान रिकार्ड किया गया। सबसे ज्यादा मतदान ‘मनसा’ में 83 प्रतिशत दर्ज हुआ, इसके बाद भटिंडा रहा जहां 79 प्रतिशत मतदान हुआ। पंजाब के जो जिले अपेक्षाकृत शहरी माने जाते हैं उनमें मतदान कम रहा। सबसे कम मतदान मोहाली में 60 प्रतिशत रहा। इसके साथ तरनतारन, होशियारपुर, मुक्तसर, मोगा व शहीद भगत सिंह नगर में मतदान 70 प्रतिशत से नीचे रहा। इससे यह तो पता चलता ही है कि पंजाब जैसे विकसित राज्य में भी ग्रामीण परिवेश के मतदाता अपने वोट के अधिकार के प्रति ज्यादा संजीदा हैं। इसी से यह सिद्ध होता है कि लोकतन्त्र भारत की मिट्टी में बसता है। यह लोकतन्त्र की परिपक्वता को भी दर्शाता है। इसे इस प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता है कि भारत में लोकतन्त्र की बुनियाद बहुत मजबूती के साथ लोगों को अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करती है परन्तु इन स्थानीय निकायों का पंजाब के इतिहास में एक अलग स्थान होगा क्योंकि राज्य की जनता नये कृषि कानूनों को लेकर बहुत आन्दोलित समझी जाती है। जाहिर तौर पर इन चुनावों के परिणाम राज्य की राजनीति पर भी असर डाले बिना नहीं रह सकते।
चुनाव राजनैतिक आधार पर लड़े गये हैं अतः परिणाम भी राजनीति की दिशा की ओर इंगित करेंगे। राज्य में चार राजनैतिक दल प्रमुखता में हैं। कांग्रेस, अकाली दल, आम आदमी पार्टी व भाजपा। राज्य में 1967 से अकाली-जनसंघ (भाजपा) गठजोड़ काम कर रहा था जो कांग्रेस का मुकाबला प्रायः हर राजनैतिक आधार पर लड़े जाने वाले चुनावों में करता था। मगर इस बार यह गठबन्धन टूट चुका है और अकाली दल व भाजपा अपने- अपने बूते पर चुनाव लड़ रहे हैं। एक जिले में अकालियों ने चुनाव का बहिष्कार भी किया है। इसके साथ ही पिछले विधानसभा चुनावों से नवजात आम आदमी पार्टी ने भी राज्य में अपनी अच्छी पकड़ बनाई है।
देखना केवल यह होगा कि चुनाव परिणामों में आम पंजाबी अपनी वरीयता किस ढंग से प्रकट करता है। नगरपालिका चुनावों का महत्व लोकतन्त्र में कम करके आंकना बुद्धिमत्ता नहीं कहलाती क्योंकि इन चुनावों में भी राजनैतिक दलों की बौद्धिक व सैद्धान्तिक ताकत का अन्दाजा होता है। भारत के लोकतान्त्रिक इतिहास में स्थानीय निकाय चुनाव राजनैतिक दलों की लोकप्रियता का पैमाना इस तरह रहे हैं कि उत्तर भारत में कांग्रेस का विकल्प बनने से पहले 60 के दशक के बाद आज की भाजपा जनसंघ के रूप में अपनी पहचान इन्हीं चुनावों के जरिये बनाने में सफल रही थी। मगर यह भी सच है कि इन चुनावों में स्थानीय समस्याओं के मुद्दे पर ही चुनाव लड़े जाते हैं। इन समस्याओं का वृहद राजनैतिक विचारधारा से ज्यादा लेना-देना प्रत्यक्ष रूप से नहीं रहता मगर पार्टी की छवि का परोक्ष रूप से लेना-देना रहता है क्योंकि दलगत आधार पर लड़े गये चुनावों में अन्ततः मतदाता पार्टी के प्रत्याशियों को ही मत देते हैं। स्थानीय निकाय चुनाव लोकतन्त्र के ‘इंटरमीडियेट कालेज’ कहलाये जाते हैं जिनमें सफल होने के बाद विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशी ऊपर राज्य स्तर या राष्ट्रीय स्तर के चुनाव लड़ने की पात्रता को अपना अधिकार समझने लगते हैं। बेशक ऊपर चुनाव लड़ने की केवल यही पात्रता लोकतन्त्र में अन्तिम नहीं होती है मगर एक महत्वपूर्ण पड़ाव जरूर होती है। अतः चुनाव परिणामों वाले दिन देखना यह है कि कौन सी पार्टी सबसे ज्यादा नगर पालिकाओं में सत्तारूढ़ होकर भविष्य के राजनैतिक संकेत देगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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