सब जानते हैं कि कश्मीर सुलग रहा है। इसकी वजह भी हर कोई जानता है। दरअसल, जम्मू-कश्मीर हमारे बॉर्डर के पास बसा एक संवेदनशील राज्य है और पड़ोसी दुश्मन की नीयत और इरादे सही न हों तो हालात मुश्किल बन जाते हैं। ऐसे में साहस और धैर्यशीलता रखना ये दोनों चुनौती भरे काम हैं। शासन के दृष्टिकोण से कश्मीर में महबूबा सरकार भाजपा की बैशाखियों से चल रही है लेकिन मैडम के तेवर बहुत आक्रामक हैं। इनमें राष्ट्रीयता कम और पाकिस्तानी आतंकवादियों की मदद का इरादा ज्यादा दिखाई देता है। बीच-बीच में मैडम राजनीतिक रूप से बयान दागती भी नजर आती हैं, लेकिन सच बात यह है कि जम्मू-कश्मीर के बॉर्डर पर जो हो रहा है, उससे भारतीय सेना को निपटना आता है। दिक्कत राज्य के अंदर विशेष रूप से श्रीनगर में महबूबा की शह पर पत्थरबाजों का घिनौना खेल सेना के मनोबल की परीक्षा ले रहा है।
पुलिस या अर्द्ध सैन्य बल कश्मीर के पत्थरबाजों के दुश्मन हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने पवित्र रमजान के महीने को देखते हुए मुख्यमंत्री महबूबा की इस बात को स्वीकार कर लिया कि एकतरफा संघर्ष विराम आतंकियों के खिलाफ लागू किया जाए। केंद्र ने इसकी मंजूरी तो दे दी लेकिन साथ ही शर्त भी लगा दी कि अगर आतंकवादी सुरक्षाबलों पर गोली चलाएंगे तो भारतीय सुरक्षा जवानों के हाथ बंधे नहीं रहेंगे। वे भी गोली का जवाब गोली से देंगे। पिछले दिनों घाटी में जो कुछ पत्थरबाज कर रहे हैं और बॉर्डर पर आतंकवादी कर रहे हैं, वह यकीनन ठीक नहीं है लेकिन राजनीतिक रूप से महबूबा सरकार जो कुछ कर रही है उसका हिसाब-किताब तो अब तराजू पर तोला ही जाना चाहिए। पत्थरबाज अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं।
केंद्र सरकार की ओर से गृहमंत्री के रूप में राजनाथ ने सद्भावना निभाई है और घाटी में अमन के लिए महबूबा की बात भी मानी, लेकिन अगर परिणाम एक जिप्सी में सीआरपीएफ जवानों की 200 से ज्यादा पत्थरबाजाें द्वारा घेराबंदी के रूप में निकलें तो बताइए यह कहां की सद्भावना हुई। हर शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद पत्थरबाज निकलते हैं। यह भीड़ सुरक्षा जवानों के खून की प्यासी नजर आती है और पुलिस, बीएसएफ, सेना या सीआरपीएफ जवानों की टुकड़ियों पर पत्थर फैंकना शुरू कर देती है। हमें हैरानी इस बात की है कि इन पत्थरबाजों के खिलाफ केस वापिस लेने की गुहार लगाने वाली महबूबा सीआरपीएफ जवानों की जिप्सी की घेरेबंदी को लेकर कुछ नहीं बोलतीं। अब तो आतंकी निरपराध लोगों को भी निशाना बनाने लगे हैं। वक्त आ गया है कि केंद्र सरकार को कुछ करना होगा। माहौल न सिर्फ बिगड़ चुका है, बल्कि बेकाबू हो रहा है।
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ ने अभी दो दिन पहले कहा कि अमन-चैन के लिए हमें अगर सीजफायर को लेकर कुछ और निर्णय करने पड़े तो हम तैयार हैं। उनका यह बयान सचमुच इसलिए है कि घाटी में अमन स्थापित हो। उन्होंने यह भी कहा कि अगर हुर्रियत के नेता बातचीत करना चाहें तो हमारे दरवाजे खुले हैं। खैर, राजनाथ सिंह खुद एक देशभक्त हैं और राष्ट्र हितों को सर्वोपरि मानते हैं। एनएसए अजीत डोभाल उन्हें जम्मू-कश्मीर के मामले में उचित फीडबैक दे चुके हैं और राजनाथ यही चाहते हैं कि महबूबा की बातों को राजनीतिक दृष्टिकोण से मानकर घाटी में अमन-चैन स्थापित किया जाए परंतु सोशल मीडिया पर लोग जिस तरह से अपनी भावनाएं शेयर कर रहे हैं हमारी यह राय है कि उसका भी सम्मान किया जाना चाहिए। हिंसा पर उतारू भीड़ की चपेट में आई जिप्सी को धैर्यपूर्वक ढंग से वहां से निकाल ले जाने वाले सीआरपीएफ ड्राइवर के खिलाफ अगर दो-दो एफआईआर दर्ज हो जाती हैं तो भी महबूबा को कोई नहीं पूछता। सोशल साइट्स पर लोग कह रहे हैं कि महबूबा जंगल राज चला रही हैं।
कार्रवाई पत्थरबाजों के खिलाफ होनी चाहिए, उल्टा महबूबा नौ हजार से ज्यादा पत्थरबाजों के खिलाफ केस वापस करा चुकी हैं। राजनाथ सिंह जी की पहल सही है, लेकिन अगर पहल का जवाब खून-खराबे के रूप में निकल रहा है तो फिर जवाब तो देना ही पड़ेगा, ऐसी बातें हम नहीं लोग सोशल मीडिया पर एक-दूसरे से शेयर कर रहे हैं। यद्यपि पाकिस्तान बॉर्डर पर सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है परंतु भारतीय फौज और बीएसएफ उसका करारा जवाब देकर उसकी तीस से ज्यादा चौकियां और बीस से ज्यादा बंकर तबाह कर चुकी हैं। अपनी ऐसी हालत देखकर पाकिस्तान फ्लैग मीटिंग में गिड़गिड़ाकर दया की भीख मांगता है कि भारतीय फौजें फायरिंग न करें। नाक रगड़कर माफी मांगना और अगले दिन फिर सीजफायर का उल्लंघन करना यह पाकिस्तान की ढीठता है, जो सेना को पता चल चुकी है, इसीलिए अब पाकिस्तान जब सीजफायर का उल्लंघन करेगा तो सौ बार सोचेगा। हमारा कहने का मतलब यह है पूरे राज्य में महबूबा के शासन में सब कुछ उसकी मर्जी पर और उसकी शर्तों पर चल रहा है।
भारतीय जनता पार्टी को इस मामले में तेवर आक्रामक रखने होंगे। बल्कि हम तो यही कहेंगे कि भाजपा की पहचान राष्ट्र भक्ति के रूप में है, इसलिए राष्ट्र भक्ति को सामने रखकर अलगाववादियों का समर्थन करने वाली महबूबा को अब राजनीतिक दृष्टकोण से करारा जवाब देना होगा। पानी सिर से गुजर चुका है, पाकिस्तानी आका जो घिनौना खेल खेल रहे हैं उस मामले में यद्यपि वह पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो चुका है, परंतु फिर भी हमारे जवानों की जान इतनी सस्ती नहीं है। अब इन जवानों को पत्थरबाजों को निपटाने की इजाजत अगर मिल जाए तो सब कुछ सैट हो जाएगा। इस पलटवार का इंतजार घाटी के आम लोगों को और पूरे देश को है।