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2019 में भी नमो अगेन

यह सच है कि इस समय पूरा देश राजनीतिक चर्चा में व्यस्त है, तभी तो हर चैनल पर राजनीतिक डिबेट चल रहे हैं। हर राजनीतिक विश्लेषक और चुनावी पंडित 2019

यह सच है कि इस समय पूरा देश राजनीतिक चर्चा में व्यस्त है, तभी तो हर चैनल पर राजनीतिक डिबेट चल रहे हैं। हर राजनीतिक विश्लेषक और चुनावी पंडित 2019 को लेकर अपनी बात पुख्ता तरीके से रखकर पीएम मोदी की वापिसी का दावा कर रहा है। वैसे अगर 2014 से 2019 तक भाजपा सरकार का रिपोर्ट कार्ड बनाया जाए तो कमल के फूल वाली पार्टी का ट्रैक रिकार्ड बेहतरीन है लेकिन हमारा मानना है कि राजनीतिक अंक गणित की भी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। जब राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए वोटों काे लाभ-हानि के तराजू पर तोलते हैं तो परस्पर विरोध करने वाली पार्टियों का हिसाब-किताब बदलने लगता है।

महागठबंधनों की सियासत ने चुनावी समीकरण बदल डाले हैं और इसीलिए देश में भाजपा वापिसी के चर्चे चल निकले हैं। मैं पेशेवर तरीके से एक सम्पादक हूं, विभिन्न पार्टियों के लोग चाहे वे भाजपा, कांग्रेस, आप या सपा-बसपा या इनैलो के भी क्यों न हों, मुझसे मिलकर चर्चा करते रहते हैं। अलग-अलग पार्टी के प्रतिनिधि होने की वजह से उनकी राय अलग-अलग हो सकती है परन्तु जब मैं उनसे यह बात पूछता हूं कि त्रिकोणीय मुकाबलों की सूरत में लाभ भाजपा को होगा या नहीं, ताे वे इसे स्वीकार कर लेते हैं।

अब 2019 को लेकर हम अपनी बात ज्यादा प्रभावी तरीके से रख सकते हैं क्योंकि कांग्रेस अलग पार्टी, गठबंधन वाली अलग पार्टियां और तीसरी पार्टी भाजपा जब चुनावों में त्रिकोणीय रूप लेकर उतरेंगी तो भाजपा को सीधा-सीधा लाभ मिलेगा जो इस बार भाजपा की वापिसी की मुहर लगा रहा है। ज्यादा दूर मत जाइए हरियाणा का जींद उपचुनाव देख लीजिए कि किस प्रकार बहुकोणीय मुकाबले के चलते कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इनेलो, कांग्रेस के बीच भाजपा अलग थी तो चौथे दल की शक्ल में भाजपा बागी की पार्टी ने सारा समीकरण बदल कर लाभ भाजपा को दिया।

वहीं राजस्थान के रामगढ़ उपचुनाव की बात करें जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला था तो वहां जीत कांग्रेस को मिली। यद्यपि राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस सत्ता पाने में सफल रही परंतु उसे बैशाखियां तो बसपा से ही लेनी पड़ी। अब मध्यप्रदेश चलते हैं जहां कांग्रेस भले ही सरकार बनाने में सफल हो गई परन्तु त्रिकोणीय मुकाबलों के चलते कांग्रेस की महज दो-तीन सीटों के अंतर से ही सरकार बन पाई। एक बार फिर दूसरों की बैसाखियों की मदद उसे लेनी पड़ी।

इन उदाहरणों को एक सैकेंड के लिए छोड़ भी ​दीजिए तो चलो लोकसभा को लेकर बात करते हैं। यूपी में इस वक्त सपा-बसपा का गठबंधन है, सामने भाजपा है और प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस वहां लाभ की ​स्थिति में भी है परन्तु मुकाबला त्रिकोणीय होने की सूरत में असली लाभ भाजपा को ही मिलेगा। पिछली बार विधानसभा चुनावों में यूपी में सब दल अपना हाल देख चुके हैं। वैसे भी यूपी हो या देश का कोई भी अन्य राज्य, सबका अलग-अलग अंकगणित तथा अलग वोट तंत्र है परन्तु 2014 का चुनाव गवाह है कि सारा लाभ भाजपा को मिला है, तभी तो अकेले 282 तक और उनका एनडीए 322 तक पहुंचा। यूपी में हिन्दू ध्रुवीकरण भी तो अपना वही कमाल दिखाएगा जो उसने विधानसभा चुनावों में दिखाया था। हरियाणा में कमोबेश बहुकोणीय हालात बन रहे हैं।

कांग्रेस, भाजपा, अभय चौटाला की इनेलो तो अजय चौटाला की अलग पार्टियों के बीच राजकुमार सैनी की पार्टी है तो वहीं आप और बसपा भी मैदान में डटे हुए हैं हालांकि एक बड़ा चुनावी गठबंधन राजकुमार सैनी की पार्टी लोसुपा और बसपा के बीच हो चुका है जिसके तहत लोकसभा की 8 सीटों पर बसपा और 2 पर लोसुपा चुनाव लड़ेगी। ऐसे में खट्टर साहब के लिए त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय मुकाबले के चलते जबर्दस्त लाभ की ​स्थिति बन चुकी है।

यह बात अलग है कि आप चुनावी गठबंधन किसके साथ करती हैं, यह देखना बाकी है। एक बात पक्की है कि जाट व गैर-जाट तथा अन्य जातपात वाले हरियाणा में मुकाबला अब बहुकोणीय बन गया है तो भाजपा यकीनन लाभ उठाने की स्थिति में है। इसीलिए लोग कह रहे हैं कि खट्टर साहिब के नेतृत्व में लोकसभा के अच्छे स्कोर के बाद विधानसभा चुनावों में भी भाजपा की जोरदार वापिसी होगी जो कि फूल वाली पार्टी के लिए एक इतिहास होगा। खट्टर साहब की वर्किंग स्टाइल लोगों को पसंद आ रही है और सब कह रहे हैं कि वे पूरे हरियाणा में भाजपा की जोरदार वापसी कराएंगे।

दिल्ली का गणित सीधा है तथा सबसे अलग भी। लोकसभा में सातों सीटें जीतने वाली भाजपा जब विधानसभा चुनावों में यहां तीन सीटों पर सिमटी तो भी उसका 33 प्रतिशत वोट शेय​रिंग बरकरार है। ऐसे में कांग्रेस तथा आप अलग-अलग पार्टी के रूप में उसके सामने होंगी। कांग्रेस अपना वजूद तलाश रही है परन्तु यह भी तो सच है कि लोकसभा और विधानसभा में शून्य के जनाधार और 7 प्रतिशत के वोट शेय​रिंग के साथ त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस कैसे टिकेगी और कैसे लड़ेगी? कांग्रेस की वोट शेय​रिंग आप हड़प चुकी है तथा महज चार-पांच प्रतिशत के वोट शेयरिंग पर लड़खड़ा रही बसपा दिल्ली में क्या गुल खिलाएगी, यह भी भाजपा को रास आ रहा है। अगर कल आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन होता है तो कांग्रेस को लाभ मिल सकता है परंतु जमीनी हकीकत पर इन दोनों में कोई गठबंधन नहीं हो रहा लिहाजा लाभ तो भाजपा को ही मिलना तय है। कुल मिलाकर पूरे देश का चुनावी हिसाब-किताब भी त्रिको​णीय, चतुष्कोणीय शक्ल में है जो सौ फीसदी भाजपा को मुफीद आ रहा है जिसके आधार पर 2019 में भाजपा की वापिसी तय बताई जा रही है।

आज के समय में सोशल मीडिया बहुत काम कर रहा है। यहां पर लोगों की राय अलग-अलग है। प्रियंका गांधी के महासचिव बनने के बाद लोग अपनी भावनाएं यह कह कर शेयर कर रहे हैं कि कांग्रेस कम से कम 125 से 150 के बीच रहेगी और भाजपा को अकेले 100-150 सीट का नुक्सान तय है। बड़ा नुक्सान यूपी में होगा। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि नम्बर वन पार्टी बनने के लिए दोनों के बीच संघर्ष रहेगा और यह भी तय है कि स्पष्ट बहुमत भाजपा को इस बार नहीं मिलेगा। वहीं दूसरा वर्ग सोशल साइट्स पर यह कह रहा है कि जीएसटी और नोटबंदी से व्यापारी नाराज हैं तो किसान भी भाजपा से नाराज हैं जिसका फायदा अकेले कांग्रेस को नहीं अन्य गठबंधन वाले दलों को भी बराबर-बराबर मिलेगा। कुछ लोग गठबंधनों को कांग्रेस के फायदे में कह रहे हैं तो कुछ गठबंधनों को ठगबंधन कह कर भाजपा की पावर में वापसी की बात कर रहे हैं।

​कुल मिलाकर जितने ज्यादा दल मैदान में होंगे भाजपा को स्पष्ट लाभ मिलना तय है। वहीं कांग्रेस को गठबंधनों का लाभ मिल सकता है परन्तु गठबंधन वाले उसके ​बगैर चल रहे हैं। कांग्रेस की स्थिति सुधर रही है। प्रियंका फैक्टर से उसको कितना लाभ मिलेगा और भाजपा को ​त्रिकोणीय और बहुकोणीय मुकाबलों में लाभ कितना मिलेगा इसका सही जवाब तो मतगणना पर ही मिलेगा लेकिन संभावना यह बरकरार है कि भाजपा बाकियों की तुलना में बढ़त पर तो है ही। फिर भी जवाब तो लोकतंत्र में वोटर ही देता है आैर देता रहेगा। जिसका सबको इंतजार है।

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