मां दुर्गा के पवित्र नवरात्रे शुरू हो चुके हैं और पूरा देश नवरात्रेमय हो चुका है। मां जगदम्बा से प्रार्थना है कि वह हरेक के जीवन में खुशिया लाएं और हरेक की मनोकामनाएं पूरी करें। मेरा कहने का मतलब यह है कि केवल नवरात्राें में ही हम लोग शुद्धता का ध्यान रखते हैं पूरा साल हमें शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए। जीवन में सफाई और स्वच्छता का ध्यान मंदिरों में विशेष रूप से रखना चाहिए। एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो जीवन का नियम बन जाए।
कई मंदिरों में जूते-चप्पल रखने की व्यवस्था बहुत अच्छी होती है सेवादार बाकायदा आपको टोकन नं. देकर आपके जूते सुरक्षित रख लेते हैं और दर्शन के बाद आपको जूते लौटा देते हैं। यह परंपरा कभी गुरुद्वारों में थी जो अब मंदिरों में पहुंच रही है और इस सेवाभाव का सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन मैं उन लोगों से अपील करना चाहती हूं कि इतनी अच्छी व्यवस्था के बावजूद मंदिरों में दर्शन स्थलों के आसपास और मुख्य द्वारों के आसपास जूते-चप्पलों के ढेर लगे होते हैं।
श्रद्धालुओं को खुद ध्यान रखना होगा। नवरात्रे चल रहे हैं तो एक बात और स्पष्ट करना चाहूंगी कि मंदिरों से मिलने वाला प्रसाद अक्सर लोग नादानीवश जमीन पर गिरा देते हैं या फिर उन लिफाफों से प्रसाद जमीन पर गिर जाता है जो श्रद्धालुओं के हाथ में होते हैं। यह व्यवस्था, यह शुचिता तो श्रद्धालुओं को खुद ही बनानी है कि वो प्रसाद को सुरक्षित आैर पवित्र बनाए रखें।
प्रसाद के खाली डोने इधर-उधर फेंकने की बजाय सही डस्टबिनों में फेंकने चाहिए। इतना ही नहीं अनेक सेवादार लोगों को पानी पिला रहे हाेते हैं तो पानी पीने के बाद भक्तगण प्लास्टिक के गिलास और बोतलें वहीं फेंक देते हैं। यह न केवल एक खराब व्यवस्था बल्कि पवित्रता भंग करने वाली बात है। मंदिरों के अंदर दर्शन के दौरान मोबाइल पर बात करना भी अशोभनीय होता है लेकिन लोग भगवान के घर में इस पवित्रता का ध्यान नहीं रखते।
मंदिरों के मुख्य द्वार पर लोगों से दान की उम्मीद रखने वाले लोग श्रद्धालुओं पर टूट पड़ते हैं। उन्हें मंदिरों के मुख्यद्वारों से दूर रखना चाहिए। हम यहां किसी खास मंदिर का नाम लिखकर उदाहरण नहीं देना चाहते लेकिन अक्सर ये बातें कई मंदिरों में कॉमन दिखाई देती हैं,अच्छी व्यवस्था बहुत जरूरी है। हमारा मानना है कि मंदिर के बाहर फूलों और मां की चुनियां तथा प्रसाद बेचने वाले सड़कों पर अतिक्रमण न करें ताकि भक्तों को परेशानी न हो। सनातन धर्म अधिनियम को लेकर हम कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, हम तो सिर्फ शुचिता की बात कर रहे हैं जो श्रद्धालुओं को निभानी चाहिए।
श्रद्धालुओं को मंदिर परिसर में व्यक्तिगत बातचीत से भी बचना चाहिए और दर्शन करने के लिए लाइनों में खड़ा रहना चाहिए। भगवान के मंदिर में अनुशासन और अच्छा आचरण जब हम निभाते हैं तो इसे ही शुचिता का नाम दिया गया है। मां वैष्णों देवी की पवित्र गुफा में वेद पाठी पंडितों और आचार्यों की श्वेत रंग की ड्रेस कोड तय की गई है। इसी तरह सभी मंदिरों में व्यवस्था होनी चाहिए। श्रद्धालु इस व्यवस्था को सही से अंजाम दे सकते हैं तथा यह स्थायी तौर पर होनी चाहिए। केवल नवरात्रों में ही नहीं पूरा साल यही व्यवस्था चलनी चाहिए। क्योंकि मां दुर्गा हमें शुचिता से जोड़ती है और इसे हमें जीवन में उतारना चाहिए।