ऐ जंगबाज इन्सानो, नफरतों की आतिश में,
जलने वाले दीवानो, तोपें बहरी-गूंगी हैं,
गोलियों के सीने में मां का दिल नहीं होता,
बम-मिसाइल अंधे हैं, किसका सीना जद में है,
खंजरों की नोक पर कुछ लिखा नहीं होता,
इस हवस की आग में जिन्दगी तो रोती है,
मौत की बस फतेह है, हार सबकी होती है।
बहुत साल पहले पाकिस्तान के एक शायर ने नज्म लिखी थी और उसने पाकिस्तान की आतंकवाद प्रायोजक छवि पर गहरी करारी चोट भी की थी। पाक अवाम के प्रबुद्ध लोग पाक के हुक्मरानों को पाक की छवि को लेकर आगाह करते आए हैं लेकिन पाकिस्तान ने आतंकवाद की खेती करना बन्द नहीं किया। अब तो पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी कबूल कर लिया है कि मुम्बई हमले में पाकिस्तानी आतंकवादियों का हाथ था। चलिये नवाज शरीफ ने कबूला तो सही लेकिन उनका कबूलनामा भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते पद से हटाए जाने के 9 महीने बाद आया। क्या उनकी अंतरात्मा जाग उठी है? हो सकता है कि प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उनकी अंतरात्मा का भ्रूण पूरी तरह विकसित नहीं हुआ हाे जो 9 महीने बाद पूरी तरह विकसित हुआ। आश्चर्य होता है कि सियासतदानों की अंतरात्मा पद पर रहते नहीं जागती है। नौकरशाहों की अंतरात्मा भी पद पर रहते उनके हृदय को नहीं झिंझोड़ती। जैसे ही वे पद से हटते हैं या सेवानिवृत्त होते हैं, तब वे नए-नए खुलासे करने लगते हैं।
अब नवाज बोल रहे हैं कि पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं लेकिन क्या हम उन्हें सीमापार कर मुम्बई में 150 लोगों को मारने दे सकते हैं? क्यों हम उनके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं कर सकते? नवाज शरीफ के इन शब्दों में उनकी बेबसी भी झलकती है। उनकी बेबसी में भी सच्चाई है आैर यह सच्चाई उन्होंने स्वीकार कर ली है कि पाकिस्तान में संविधान के अनुसार एक सरकार चलाई जा सकती है लेकिन आप दो या तीन समानांतर सरकारें नहीं चला सकते, इसे बन्द करना होगा। उनके कहने का अर्थ यही है कि सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई की समानांतर सरकारें चल रही हैं। पाकिस्तान का लोकतंत्र हमेशा आधा-अधूरा रहा। जब भी सरकारें लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित हुईं भी तो सेना ने तख्ता पलट कर दिया। बार-बार सेना ने लोकतंत्र को अपने बूटों से रौंदा है। जिया का इतिहास देखिए, मुशर्रफ का इतिहास देखिए। सेना ने बार-बार सत्ता पर अपना वर्चस्व कायम किया है।
नवाज शरीफ ने बेशक अब सच कबूला तो यह पहला मौका नहीं है जब मुम्बई हमले में आतंकियों का हाथ कबूला गया है। 2009 में तत्कालीन पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार के गृहमंत्री रहमान मलिक ने डेढ़ घण्टे की प्रैस कांफ्रेंस में पूरा ब्यौरा दिया था कि मुम्बई हमले को किस तरह पाकिस्तान की जमीन से अन्जाम दिया गया। हालांकि न तो पीपीपी और न ही नवाज सरकार ने दोषियों को सजा दिलाई। मुम्बई हमले का मास्टरमाईंड हाफिज सईद खुलेआम भारत के विरुद्ध जहर उगल रहा है। पाकिस्तान में अभी भी शरीफ की पार्टी की ही सरकार है। ऐसे में सवाल है कि क्या शरीफ के कबूलनामे के बाद पाक सरकार कुछ करेगी? ऐसी कोई उम्मीद भी नजर नहीं आती क्योंकि जैसे ही उनकी पार्टी की सरकार आतंकवाद के विरुद्ध कुछ करेगी, उसका भी तख्ता पलट दिया जाएगा।
कौन नहीं जानता कि जब अटल बिहारी वाजपेयी दोस्ती की बस लेकर लाहौर गए थे तब मैं भी उनके साथ लाहौर गया था। उधर लाहौर में शांति और मैत्री की घोषणाएं हो रही थीं, लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर हो रहे थे, उधर भारत में घुसपैठ हो रही थी। पाकिस्तान से लौटने के बाद ही भारत को अपनी ही धरती पर कारगिल युद्ध का सामना करना पड़ा था। लाहौर में तो तत्कालीन सेनाध्यक्ष अमेरिका के पालतू रहे परवेज मुशर्रफ ने अटल जी को सलाम करने से इन्कार कर दिया था। पाकिस्तान आज खुद आतंकवाद का शिकार बन चुका है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की आतंकवादी छवि को लेकर पाक के बुद्धिजीवी, कलाकार, अभिनेता और अभिनेत्रियां आैर आम अवाम सभी परेशान हैं।
कारगिल युद्ध के बाद ही मुशर्रफ ने नवाज शरीफ सरकार का तख्ता पलट दिया था आैर खुद को शासक घोषित किया था। नवाज शरीफ चाहते तो दोबारा सत्ता में आने पर आतंकवाद के खिलाफ जनमत तैयार कर सकते थे। अवाम उनके साथ था। सत्ता में रहते वह मौन ही रहे। यह भी सच है कि 1993 के बम धमाके नवाज शरीफ की इजाजत से किए गए थे। पूर्व राजनयिक राजीव डोगरा ने अपनी पुस्तक में दावा किया है कि धमाके करने की इजाजत खुद शरीफ ने दी थी। कहा तो यह भी जाता है कि कारगिल में घुसपैठ की भी उन्हें जानकारी थी। भारत शुरू से कहता रहा है कि मुम्बई हमले में पाक का हाथ है। नवाज शरीफ की स्वीकारोक्ति के बाद पाक की पोल खुल चुकी है और पाक मीडिया शोर मचा रहा है कि भारत संयुक्त राष्ट्र में पाक को नंगा कर देगा। नंगा तो वह पहले से ही था। बस नवाज शरीफ के बयान से भारत की साख बढ़ी है। अब देखना है कि भारत और पाकिस्तान सम्बन्धों में क्या परिवर्तन आता है। फिलहाल नवाज शरीफ का शुक्रिया।
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