एमबीबीएस और बीडीएस में दाखिलों के लिये आयोजित की जाती रही परीक्षा नैशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टैस्ट को लेकर काफी विवाद हुआ था। अब तक क्षेत्रीय भाषाओं के पेपर के अलग सैट होते थे। नीट-2017 को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था। छात्रों ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि क्षेत्रीय भाषाओं के लिये प्रश्न पत्र अंग्रेजी और हिन्दी के मुकाबले ज्यादा मुश्किल थे। परीक्षा को रद्द करने के लिये छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकायें दाखिल की थीं। छात्रों ने यह भी आरोप लगाया था कि क्षेत्रीय भाषाओं के कुछ सवाल गलत थे जिसमें प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने का उनका चांस कम हो गया है। गलत प्रश्नों को लेकर भी अंक दिये जाने को लेकर विवाद रहा।
नीट परीक्षा से पहले देश में मेडिकल कोर्स में दाखिले के लिये अलग-अलग 90 परीक्षायें होती थीं। सीबीएसई बोर्ड एआईपीएमटी के नाम से परीक्षा करवाता था जबकि राज्य की अलग-अलग मेडिकल परीक्षा होती थी। निजी मेडिकल कालेज तो रुपया लेकर मेडिकल सीटें बेचने के लिए कुख्यात रहे हैं। मेडिकल और बीडीएस की सीटें तो लाखों में बिकती रही हैं लेकिन नीट के प्रभावी होने से सभी किस्म के भेदभाव और सीटों की खरीद-फरोख्त से छुटकारा मिल चुका है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश पिछले वर्ष ही प्रभावी हो गया था जिसमें देश के सभी सरकारी, डीम्ड यूनिवर्सिटीज और निजी मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिये एक समान प्रवेश परीक्षा नीट को अनिवार्य बना दिया गया है।
शिक्षा के समान पाठ्यक्रम की वकालत हमेशा से ही शिक्षाविद् करते रहे हैं लेकिन सीबीएसई और राज्य सरकारों के पाठ्यक्रम में काफी अंतर होता है। महानगरों के स्कूलों में शिक्षा का स्तर काफी ऊंचा होता है जबकि ग्रामीण स्तर पर शिक्षा का स्तर उनका मुकाबला नहीं कर सकता। शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर अंतर स्पष्ट दिखाई भी देता है।सुप्रीम कोर्ट ने नीट परीक्षार्थियों की याचिकाओं पर सीबीएसई द्वारा प्रश्न पत्रों को अलग-अलग तैयार करने को अतार्किक बताया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि जब छात्रों के प्रश्न पत्र अलग-अलग होंगे तो आप उनकी क्षमताओं का मूल्यांकन कैसे करेंगे? यह तो एक अतार्किक प्रक्रिया है। इसलिये अलग-अलग प्रश्न पत्रों की कोई जरूरत नहीं। हिन्दी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में एक ही प्रश्न पत्र होने चाहिएं। छात्रों को दस भाषाओं में परीक्षा देने की अनुमति है।
सर्वोच्च न्यायालय का कहना बिल्कुल सही है। एक समान प्रश्न पत्र होगा तो छात्रों का आकलन सही होगा। अगर आप अलग-अलग पाठ्यक्रम और अलग-अलग गुणवत्ता वाली शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों की एक साथ परीक्षा लेंगे और उनकी प्रतिभा का मूल्यांकन करेंगे तो यह उनके साथ अन्याय ही होगा। अदालत ने सीबीएसई बोर्ड की इस दलील को नहीं माना था कि यदि सभी प्रश्न पत्रों की कठिनता का स्तर समान हो तो परीक्षा की एकरूपता का उद्देश्य पूरा होगा। अब सीबीएसई ने शीर्ष अदालत के रुख का समर्थन करते हुए फैसला किया है कि नीट परीक्षा में इस वर्ष से प्रश्नपत्र का सिर्फ एक सैट ही तैयार किया जायेगा और इसका अन्य भाषाओं में अनुवाद कराया जायेगा। सीबीएसई बोर्ड के फैसले से नीट परीक्षा की तैयारी में जुटे छात्रों को राहत मिली है। इससे पूर्व सीबीएसई बोर्ड ने फैसला किया था कि नीट में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं होगा।
जो सिलेबस पूर्व में था वह इस साल की परीक्षा में रहेगा। इससे पहले ऐसी अटकलों का जोर था कि विभिन्न राज्य बोर्ड के सिलेबस का कुछ अंश इस बार सिलेबस में जोड़ा जा सकता है। इस फैसले से छात्रों को राहत मिली है और पिछले दिनों से चल रहा संशय दूर हो गया है। देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं लेकिन उनकी दक्षता का मूल्यांकन केवल पैसों से किया जाता रहा है। परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद भी काउंसिलिंग के समय धांधली होती रही है। दाखिलों में कालेजों ने मनमानी भी की थी। हाल ही में नीट क्लीयर करने के बाद भी मेडिकल पीजी कोर्स में दाखिला पाने से वंचित रह गये छात्र इस साल भी प्रवेश नहीं पा सके तो इसी एवज में उन्हें दस-दस लाख रुपया मिलेगा। यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया है। मामला लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय का था। देश की प्रतिभाओं को उचित अवसर मिले इसके लिये परीक्षा ईमानदार और निष्पक्ष भी होनी चाहिएं। साथ ही पास होने वाले छात्रों को सही समय पर दाखिला भी मिले, यह सुनिश्चित करना केन्द्र, सीबीएसई और राज्य सरकारों का काम है।