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अब नजरें चन्द्रयान-3 और गगनयान पर

अभी भी सभी ग्रहों की सटीक जानकारी नहीं मिल पाई है। अंतरिक्ष अनुसंधान के मामले में भारतीय संस्थान इसरो ने कई उप​लब्धियां हासिल की हैं।

मानव बड़ा जिज्ञासु रहा है। सफलताओं और असफलताओं के बावजूद वह अंतरिक्ष के अनुसंधान में लगा रहा है। अभी तक दुनिया भर के वैज्ञानिक सौर मंडल के ग्रहों और उनकी स्थितियों के बारे में पता लगाने में सफल रहे हैं परन्तु अभी तक चांद के रहस्य जानने के लिए जिज्ञासा बरकरार है। अभी भी सभी ग्रहों की सटीक जानकारी नहीं मिल पाई है। अंतरिक्ष अनुसंधान के मामले में भारतीय संस्थान इसरो ने कई उप​लब्धियां हासिल की हैं। 
इसराे ने दुनिया भर में अपनी धाक जमाई है लेकिन वर्ष 2019 में उसे असफलता का सामना करना पड़ा जब उसका चन्द्रयान-2 लैंडिंग से कुछ क्षण पहले नष्ट हो गया। चन्द्रयान-2 के विक्रम लैंडर का सम्पर्क टूट गया। चन्द्रयान-2 की लैंडिंग देखने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी स्कूली छात्रों के साथ मौजूद थे। विक्रम लैंडर का सम्पर्क टूट जाने से वैज्ञानिक हताश जरूर हुए। कुछ क्षण के लिए इसरो चीफ के. ​सिवन की आंखों में भी आंसू आ गए थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकाे ढांढस बंधाया था। हताशा के बावजूद इसरो ने चन्द्रयान-3 भेजने की घोषणा कर दी। 
कहते हैं हर असफलता सफलता की सीढ़ी होती है। हर असफलता हमें कोई न कोई सीख दे जाती है। चन्द्रयान-3 के अलावा इसरो ने गगनयान भेजने की भी घोषणा कर दी है। चन्द्रयान-2 मिशन का अंतिम अध्याय काफी सुखद रहा। एक साधारण से भारतीय इंजीनियर षणमुग सब्रमण्यन ने अपने लैपटॉप और इंटरनेट की मदद से चन्द्रयान-2 के मलबे को ढूंढ निकाला। जो काम इसरो और नासा जैसी संस्था तमाम संसाधनों के साथ नहीं कर सकी उसे भारतीय मेधावी ने अकेले दम पर कर दिखाया। नासा ने इस बात की पुष्टि कर दी कि षणमुग ने जो खोजा वह विक्रम लैंडर की ही तस्वीर है। 
एक आंशिक असफलता इसरो की उड़ान को बाधित नहीं कर सकती थी। 2019 के अंतिम माह यानी दिसम्बर में इसरो ने अंतरिक्ष में नौ विदेशी उपग्रहों के साथ रिसेट-2 बीआर-वन को प्रक्षेपित किया और उसके छत्तरी जैसे एंटीना को खोजने के मिशन को महज 9 ​मिनट 12 सैकेंड में पूरा करके कीर्तिमान बना दिया। ​रिसेट-2 बीआर-वन रडार मानचित्र पर आधारित भू निगरानी उपग्रह है। कृषि, वन और आपदा प्रबंधन के साथ-साथ सैन्य जरूरतों में यह बड़ा काम आएगा। चन्द्रयान-3 की परियाेजना पर इसरो अब बहुत तेजी से काम कर रहा है। 
मानव युक्त गगनयान पर भी इसरो बहुत तेजी के साथ काम कर रहा है। खराब फिटनेस और दांतों की समस्या के चलते छट जाने के बाद अंततः 4 अंतरिक्ष यात्रियों को चुन लिया गया है और उन्हें प्रशिक्षण के लिए रूस भेज दिया गया है। प्रशिक्षण की शुरूआत जनवरी के तीसरे हफ्ते में की जाएगी। गगनयान अभियान के तहत 2022 तक तीन भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजा जाना है। गगनयान अभियान के ​लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल दस हजार करोड़ के बजट की मंजूरी दे चुका है। देश ने 2019 के अक्तूबर में चन्द्रयान प्रथम की 11वीं वर्षगांठ भी मनाई थी। 
चन्द्रयान प्रथम को 8 नवम्बर, 2008 को सफलतापूर्वक चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया था। इसी ने बताया था कि चन्द्रमा की सतह पर भाप है और वहां पानी हो सकता है। इसने 29 अगस्त, 2009 तक यानी कुल 312 दिन तक अंतरिक्ष में रह कर काम किया। भारत ने चन्द्रमा और मंगल ग्रह के बारे में कई सटीक जानकारियां हासिल कर ली हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इन दोनों ग्रहों पर मनुष्य के रहने लायक स्थितियां बनाई जा सकती हैं। वहां पर न केवल मानवीय गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सकता है बल्कि सौरमंडल से पार अंतरिक्ष के अन्य रहस्य भी सुलझाने का प्रयास किया जा सकता है। 
भारतीय वैज्ञानिकों ने कठिन परिस्थितियों के बावजूद कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। उपग्रह प्रक्षेपण यान बनाने के लिए पहले भारत को रूस आदि देशों से इंजन खरीदना पड़ता था परन्तु अब इसरो ने स्वयं सब कुछ कर लिया है और भारत अब दूसरे देशों के उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने लगा है। गगनयान भेजने की इसरो की तैयारी भी उसके वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और कौशल का नतीजा है। अंतरिक्ष में मानव को भेजना जोखिम भरा काम होता है। इसके लिए गहन प्रशिक्षण और तकनीक की जरूरत होती है। 
जहां तक चन्द्रयान-3 का सवाल है, चन्द्रयान-2 से मिले अनुभव और उपलब्ध बुनियादी ढांचा चन्द्रयान-3 की लागत काे घटाएगा। चन्द्रयान-2 चांद पर उतरने की भारत की पहली कोशिश थी और कोई भी देश पहली कोशिश में ऐसा नहीं कर सका। अमेरिका भी काफी कोशिशों के बाद यह कर पाया था। गगनयान अभियान सफल रहा तो इंसान को अंतरिक्ष में भेजने वाला भारत चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन यह उपलब्धि हासिल कर चुके हैं।

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