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अब कहिए जय श्रीराम

साथ ही न्यायपालिका के प्रति इस देश का विश्वास अब पहले से भी दुगना हो गया है तो यकीनन मोदी सरकार के कार्यकाल को भी यह देश कभी भुला नहीं पाएगा।

यह सच है कि जब-जब कोई भी कोई बीमारी या केस बहुत लम्बा ​खिंच जाता है तो फिर इसमें स्वाभाविक है कि ​जटिलताएं भी बढ़ती चली जाती हैं लेकिन यह भी सच है कि अगर केस या बीमारी का सही इलाज किया जाए तो हल भी निकल ही जाता है। शता​ब्दियों पुराना राम जन्म भूमि विवाद अगर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सही तरीके से हल ​करवा दिया जाता है तो इसके लिए वे पंच परमेश्वर धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने लगातार और अनवरत तरीके से सुनवाई करके सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इस चट्टान पर चढ़ाई करने में सफलता हािसल करके ही दम लिया। 
इसके साथ ही न्यायपालिका के प्रति इस देश का विश्वास अब पहले से भी दुगना हो गया  है तो यकीनन मोदी सरकार के कार्यकाल को भी यह देश कभी भुला नहीं पाएगा। सवाल श्रेय का नहीं बल्कि देश के प्रति जिम्मेवारी का है जिसे इस मोदी सरकार ने श्रीराम के ​लिए निभाया है। हम तो यही कहेंगे कि इसे कभी भी राजनीतिक चश्में से नहीं देखा जाना चाहिए। कुल मिला कर भारत ने एक मिसाल दुनिया और देश के सामने प्रस्तुत कर दी है। हां रही बात प्रतिक्रिया की तो यह तो शायर ने भी कहा है कि कुछ तो लोग कहेंगे लोगों  का काम है कहना छोड़ाे बेकार की बातें। 
अयोध्या में पूजास्थल से कब-कब छेड़छाड़ की गई और मुस्लिम पक्ष क्या कहता है या हिन्दू पक्ष क्या कहता है इस मामले में माननीय सीजेआई ने अपने सहयोगियों के साथ मिल कर तार्किक रूप से आगे कदम बढ़ाए और परिणाम निकल आया है। अहम बात यह है कि बहुत ही ऊपर उठ कर प्रधानमंत्री मोदी जी ने फैसले से पहले ही अपील इस देश के नाम कर दी थी कि फैसला जो भी आए इसे किसी की जीत या हार के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। सभी पक्षाें के साथ-साथ देशवा​सियों ने इसका सम्मान भी किया। इस बेहद संवदेनशील मामले में कोर्ट ने दिल के अंंदर बहुत ही गहराई त​क घुसे एक बहुत लम्बे भाले की चोट का हल निकाल लिया। 
दर्द ताे दर्द है कांटा चुभने का दर्द और होता है तथा कांटा निकलने का दर्द कुछ और होता है। दर्द इस बार भी हुआ है लेकिन अबकी बार कांटा निकलने का दर्द है। यह भी हकीकत है कि दोनों तरफ भावनाएं जुड़ी हुई थीं। मंदिर था तो भावनाएं श्रीराम से जुड़ी थीं और मस्जिद को लेकर मु​सलमान भाई भी भावनाओं से बाहर नहीं थे। मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन की व्यवस्था का ऐलान पंच परमेश्वर के विवेक को दर्शाता है। यह फैसला सिद्ध करता है कि विवादित भूमि पर अगर हिन्दुओं के मंदिर का दावा स्वीकार किया गया तो ​मस्जिद को लेकर भी नजरअंदाज नहीं किया गया। 
सबसे बड़ी बात यह है कि मुस्लिम प्रतिनिधियों ने जिस तरह से धीरज रखा और अमन-चैन बनाए रखते हुए भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान किया उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है लेकिन इसके बावजूद यह स्पष्ट कह देना चाहते हैं कि मंदिर को लेकर बहुत ज्यादा जोश और निर्माण के प्रति बहुत ज्यादा भावनाओं में बहने की जरूरत नहीं। मंदिर निर्माण होना चाहिए यह बात देश के हिन्दू चाहते थे और अब उन्हें खुद और अपनी भावनाओं पर काबू रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। 
हां प्रतिक्रिया को लेकर कुछ मुस्लिम संगठनों के ठेकेदार चाहे वो ओवैसी हो या कोई और उन्हें तथ्यों से परे और बेबुनियाद बयानाें ने बचना चाहिए जैसा ​कि इन महोदय ने कहा है कि मुझे मेरी मुस्जिद लौटाओ। हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। नई पीढ़ी तरक्की चाहती है। पाकिस्तान ने आज भी पुरानी बातों को नहीं छोड़ा इसीलिए वह पिछड़ता जा रहा है। दुनिया अमन चाहती है विवाद नहीं। पहले भी भारत और अमरीका, फ्रांस, इंग्लैंड ने विश्वव्यापी आतंकवाद में बहुत कुछ खोया है। 
भारत कितने ही बड़े नेता इस आतंकवाद की आग में गंवा चुका है। दुनिया और भारत को साम्प्रदायिक शांति, सद्भाव और विकास की जरूरत है इसी थीम को लेकर मोदी आगे बढ़ रहे हैं तो भारत का परचम लहरा रहा है। मंदिर-मस्जिद विवाद पर हुए इस ऐतिहासिक फैसले को लेकर हम उस रास्ते पर चलते हुए पूरी ​दुनिया को रोशनी दिखा सकते हैं कि अगर बड़े से बड़े विवाद, समस्याएं और बीमारियां हैं तो उसका इलाज भी है जैसा ​कि मंदिर-मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने विवेकपूर्ण ​फैसला देकर सिद्ध कर दिखाया है। आओ फिर से कहें जय श्रीराम।

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