वैश्विक महामारी के चलते सीबीएसई और दसवीं-बारहवीं की परीक्षाएं रद्द किए जाने के बाद उच्च शिक्षा संस्थानों और विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं को भी रद्द करने की मांग उठ रही है। अब सवाल यह है कि जब केरल और कर्नाटक जैसे राज्य 6 लाख से लेकर 12 लाख छात्रों की परीक्षाएं सफलतापूर्वक ले सकते हैं तो बाकी राज्य क्यों नहीं। सीबीएसई ने यद्यपि दसवीं-बारहवीं की परीक्षाएं रद्द करने का फैसला कर परिणाम घोषित करने के फार्मूले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगवा ली है, अब सवाल उच्च शिक्षा का है। पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ ने फाइनल सैमेस्टर की परीक्षाएं 15 जुलाई तक स्थगित कर दी गई है। उच्च शिक्षा संस्थानों में परीक्षाओं को लेकर बहुत से सवाल उठ खड़े हुए हैं। अगर विश्वविद्यालय परीक्षाओं को आनलाइन लेने के बारे में विचार किया जा रहा है तो यह गरीब छात्रों के लिए भेदभाव जैसा होगा। आधा वर्ष गुजर चुका है और किसी को कुछ पता नहीं है कि महामारी का प्रकोप कब तक रहेगा। स्कूली छात्रों की तरह कालेज छात्रों को भी एक फार्मूला बनाकर अगली कक्षा में प्रमोट कया जा सकता है।
महाराष्ट्र में कोरोना का प्रकोप लगातार जारी है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर उसे अंतिम वर्ष और सैमेस्टर परीक्षायें रद्द करने के लिए राष्ट्रीय शीर्ष संस्थानों को निर्देश देने की मांग की है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि मौजूदा माहौल में परीक्षा आयोजित करने के लिए अनुकूल नहीं है। मुम्बई का ही उदाहर ले लीजिए। कोरोना वायरस अब झुग्गी बस्तियों से पॉश इलाकों में पहुंच चुका है। चारों तरफ भय का माहौल है। राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान तय फार्मूले के आधार पर ही छात्रों को डिग्री दे सकते हैं। वहीं छात्रों के सामने परीक्षा देने का विकल्प भी रखा जा सकता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय और इससे संबद्ध डिग्री कालेजों की वार्षिक और समेस्टर परीक्षा पर फैसला अगस्त के पहले सप्ताह में ही हालात देखने के बाद ही होगा।
परीक्षा समिति ने कोरोना की स्थिति में सुधार होने या नहीं होने की दोनों स्थितियों में वार्षिक और समेस्टर परीक्षा को लेकर महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। अगर स्थिति में सुधार होता है तो परीक्षाएं 17 अगस्त से शुरू की जा सकती है और स्थिति सामान्य नहीं हुई तो परीक्षा केवल दो घंटे की होगी और उसमें सिर्फ चार ही प्रश्न होंगे। वहीं बीए, बीएससी और बी. कॉम के छात्रों को बिना परीक्षा प्रोन्नत किया जाएगा बल्कि अगली कक्षा में शामिल होने की अनुमति भी दी जाएगी। कोरोना को लेकर स्थितियां फिलहाल सुधरने के कोई ठोस संकेत नहीं मिल रहे। अगर स्थितियां ऐसी ही रही तो बिना परीक्षा के ही छात्रों को पास करने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं बचा है। विभिन्न कोर्सों के पहले वर्ष या दूसरे वर्ष के छात्रों को बिना परीक्षा पास करने में कोई मुश्किल नहीं लेकिन फाइनल वर्ष के छात्रों को बिना परीक्षा के पास किया गया तो प्रतिभाओं का मूल्यांकन ठीक तरह से नहीं पो पायेगा।
अब जबकि अधिकांश राज्य उच्च शिक्षा संस्थानों में परीक्षाओं से बच रहे हैं तो परीक्षाएं रद्द किए जाने की पूरी संभावना है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग परीक्षाओं के संबंध में और अकादमिक शिक्षा के लिए नई गाइडलाइन्स जारी करने की तैयारी कर रहा है। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने भी नए दिशा-निर्देशों की मांग की है। सवाल यह है कि 12वीं कक्षा तक के छात्रों को तो शिक्षा के मामले में काफी नुक्सान हो चुका है। ऑनलाईन क्लासें या वर्चुअल शिक्षा के माध्यम से भी शिक्षा का उचित वातावरण सृजित हो ही नहीं रहा। अभिभावक अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने को मानसिक रूप से तैयार ही नहीं। उच्च शिक्षा संस्थान तो छात्रों को हुए नुक्सान की भरपाई कर सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें समुचित संरचना तैयार करनी होगी। विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट डाटा की व्यवस्था और शिक्षकों की भर्ती करनी होगी। ऑनलाईन शिक्षा के बुनियादी ढांचे के अभाव में शिक्षा दम तोड़ देगी। बेहतर यही होगा कि फिलहाल परीक्षाएं रद्द कर नए अकादमिक स्तर की तैयारी की जाए। कोरोना काल में शुरु हुए विभिन्न ऑनलाईन शैक्षिक गतिविधियां, वेबिनार तथा फैकेल्टी डवैल्पमैंट कार्यक्रमों को विस्तार दिया जाए और इनमें अधिक से अधिक छात्रों को शामिल किया जाना सुनिश्चित की जाए। शिक्षा की भरपाई होना बहुत जरूरी है अन्यथा प्रतिभाओं से अन्याय ही होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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