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अप्रवासी भारतीयों की दिवाली

दुनिया भर में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों के लिए इस बार की दीपावली बहुत ही अद्भुत रही।

दुनिया भर में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों के लिए इस बार की दीपावली बहुत ही अद्भुत रही। दीपावली के दिन ऋषि सुनक के बिट्रेन का नया प्रधानमंत्री बनने की खबर ने अप्रवासी भारतीयों के भीतर नया उत्साह भर दिया। सुनक के पिता यशवीर डाक्टर थे और मां ऊषा फार्मासिस्ट थीं। दोनों पूर्वी अफ्रीका से 1960 के दशक में ब्रिटेन पहुंचे थे लेकिन इनकी जड़ें पंजाब में हैं। ऋषि सुनक के पीएम बनने की खबर के बाद ब्रिटेन में भारतीय समुदाय ने जमकर दिवाली का जश्न मनाया। भारतीय समुदाय के लिए यह एक ऐतिहासिक पल रहा। क्योंकि यह एक या दो दशक पहले सम्भव नहीं था। ऋषि सुनक धर्मपरायण हिन्दू हैं और उनके हाथ में बंधा क्लावा मीडिया के​ लिए चर्चा का विषय है। ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री बनना बहुसांस्कृतिक और नस्ली समानता के लिए ऐतिहासिक है। अमेरिकी न्यूज वेबसाइट सीएनएन ने ऋषि सुनक के पुराने इंटरव्यू की कुछ पंक्तियां छापी हैं जिसमें उन्होंने कहा है, ‘‘मैं पूरी तरह से ब्रिटिश हूं यह मेरा घर और देश है लेकिन मेरी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत भारतीय है, मेरी पत्नी भारतीय है, मैं हिन्दू हूं और इसमें छुपाने वाली कोई बात नहीं है।’’ सबसे बड़ी बात यह है कि ऋषि सुनक के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के साथ उनकी हिन्दू पहचान भी अहम रही है। ऋषि सुनक ने कुछ अन्य की भांति अपनी हिन्दू पहचान को छिपाने की कभी कोशिश नहीं की। वह गाय की पूजा करते देखे जाते हैं और दिवाली पर अपने घर के बाहर दीये जलाते हुए भी देखे जाते हैं। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ऋषि सुनक की मुलाकात इंडोनेशिया के बाली में होनी तय है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले ही उन्हें बधाई देते हुए दोनों देशों के मिलकर काम करने की इच्छा व्यक्त कर दी है। अब भारत और ब्रिटेन के ऐतिहासिक संबंधों की शुरूआत होगी।
दूसरी तरफ अमेरिका के व्हाइट हाउस में दीपावली पर्व धूमधाम से मनाया गया। अब तक के सबसे बड़े दीपावली उत्सव की मेजबानी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रथम महिला जिल बाइडेन ने की। इस मौके पर भारतीय मूल की अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी रोशनी के पर्व की बधाई दी। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय अमेरिका हो या ब्रिटेन या फिर कोई अन्य देश जहां भी गए वहां की संस्कृति और संविधान को उन्होंने आत्मसात कर लिया। अब प्रवासी भारतीय वहां की संस्कृति का हिस्सा हैं। उन्होंने वहां के विकास और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दुनिया के सात देश ऐसे हैं जहां वह शीर्ष पदों पर बैठे हैं। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन, सिंगापुर, कनाडा, मारीशस, आस्ट्रेलिया समेत कई अफ्रीकी और एशियाई देशों में भारतीय मूल के नेता उच्च पदों पर हैं। मारीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ भारतीय मूल के हैं, जिनकी जड़ें बिहार से जुड़ी हुई हैं। उनके पिता अनिरुद्ध जगन्नाथ भी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर रह चुके हैं। मारीशस के राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह भारतीय मूूल के राजनेता हैं। सूरी नाम के राष्ट्रपति चन्द्रिका प्रसाद संतोखी के तार भी भारत से जुड़े हैं। उन्होंने तो राष्ट्रपति पद की शपथ भी संस्कृत भाषा में ली थी। कनाडा की संसद में और मंत्री पद पर भी पंजाबी मूल के लोगों की शानदार उपस्थिति रही है। 
पुर्तगाल के प्रधानमंत्री ऐंटोनियो कोस्टा के परिवार का ताल्लुक गोवा से रहा है। सिंगापुर की पहली राष्ट्रपति हलीमा याकूब की जड़ें भी भारत से जुड़ी हुई हैं। उनके पिता भारतीय और मां मलय मूल की थीं। गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली के पूर्वजों की जड़ें शेशेल के राष्ट्रपति राम क्लावन की जड़ें भी बिहार के गोपालगंज से जुड़ी हुई हैं। अमेरिकी लोकतंत्र में 250 साल लम्बे इतिहास में पहली महिला उपराष्ट्रपति बनकर कमला हैरिस ने इतिहास रचा था। बाइडेन प्रशासन में भी लगभग 20 अमेरिकी भारतीय महत्वपूर्ण पदों पर हैं। इनमें नीना टंडन, डाक्टर ​विवेक मूर्ति, वनीता गुप्ता, सबरीना सिंह, उज्जरा जिया, विनय रेड्डी, समीरा और कई अन्य भारतीय नाम शामिल हैं। ऐसे में भारतीय मूल के लोग खुद पर गर्व क्यों न करें। यह स्पष्ट है कि अमेरिकी हमेशा अपने हितों को सर्वोपरि मानते हैं। बाइडेन प्रशासन ने​ विदेश सेवा की वरिष्ठ अधिकारी एलिजाबेथ जॉन्स को नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास में अंतरिम प्रभारी राजदूत नियुक्त किया है। बाइडेन प्रशासन ने जुलाई 2022 में एरिक गार्सेटी भारत में अगले अमेरिकी राजदूत के रूप में नामित  करने की घोषणा की थी। लेकिन अभी तक सीनेट में इसकी पुष्टि नहीं की है। अब वयोवृद्ध एलिजाबेथ को चार्ज डी अफेयर्स बनाकर भारत भेजा गया है। भारत में स्थाई अमेरिकी राजदूत को नहीं भेजे जाने का कारण समझ में नहीं आता। अमेरिका अब पुनः पाकिस्तान के प्रति रुख अपना रहा है। अमेरिका भले ही भारत को अपना राजनीतिक सांझेदार मानता है। लेकिन कहीं न कहीं उसकी नीतियां भारत के लिए चुभन पैदा करती हैं। फिलहाल संबंधों में उतार-चढ़ाव हाेते रहते हैं। अमेरिका को इस समय भारत की काफी जरूरत है। विदेशों में अप्रवासी भारतीयों की साख बढ़ी है और  उन्हें भारतीय होने का गौरव महसूस हो रहा है।

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