नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के तीर्थनगरी अयोध्या और श्रीराम को लेकर दिया गया वक्तव्य तथ्यहीन और बेतुका है। हैरानी इस बात की है कि नेपाल की बागडोर ऐसे शख्स के हाथ में है जिसे सांस्कृतिक रूप से जुड़े देश की भौगोलिक, ऐतिहासिक और पौराणिकता की कोई समझ नहीं या फिर वे नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं भड़काने तथा उग्र राष्ट्र तत्वों को संतुष्ट करने के लिए जानबूझ कर ऐसे बयान दे रहे हैं। नेपाल कभी हिन्दू राष्ट्र था, वहां भी भारत की तरह देवी-देवताओं का पूजन होता है। लेकिन राजशाही के खिलाफ बंदूक से निकली क्रांति ने हिन्दू राष्ट्र को लोकतांत्रिक देश में बदल दिया। काफी राजनीतिक उथल-पुथल के बाद नेपाल में वामपंथी दल की सरकार बनी लेकिन राजनीतिक स्थिरता अभी भी कायम नहीं हुई। केपी ओली ने नेपाल को चीन की गोद में बैठा दिया है और चीन के प्रभाव में ही वह भारत के विरुद्ध अनर्गल बातें कर रहे हैं। पहले उन्होंने नेपाल का नया नक्शा पारित करवाया जिसमें भारतीय क्षेत्रों को नेपाल में दर्शाया गया, फिर नेपाल में शादी करने वाली भारतीय युवतियों को सात साल तक नागरिकता नहीं देने का भी निर्देश जारी किया। अब उन्होंने श्रीराम पर बयान देकर खुद को हास्यास्पद बना लिया है। ओली अब मीम्स का हिस्सा बन गए हैं। सोशल मीडिया पर उनका जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है। लोग लिख रहे हैं कि महाराज की बुद्धि किसने हर ली है। ओली के बयान पर भारतीय संत समाज में काफी आक्रोश है। वे अपनी ही पार्टी में घिर गए हैं। उनसे बयान वापस लेकर माफी मांगने की बात उठ रही है। इसी बीच नेपाल के विदेश मंत्री ने सफाई दी है। यद्यपि इस सफाई में भी लीपापोती ही की गई है लेकिन जितना नुक्सान ओली को हो चुका है उसकी भरपाई नहीं हो सकती। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबू राम भट्टाराई ने ओली पर व्यंग्य कसते हुए ट्वीट किया है, ‘‘आदि कवि ओली द्वारा रचित कलयुग की नई रामायण सुनिये, सीधे बैकुंठ धाम की यात्रा करिए।’’
किसी भी प्रधानमंत्री के लिए इस तरह का आधारहीन और अप्रमाणिक बयान देना उचित नहीं। ऐसा लगता है कि वह भारत से नेपाल के रिश्ते बिगाड़ना चाहते हैं। जबकि उन्हें तनाव कम करने का प्रयास करना चाहिए। उनका यह कहना कि श्रीराम का जन्म नेपाल में हुआ था और अयोध्या भी नेपाल में है, ने भारतीय मीडिया को कुछ दिन का मसाला जरूर दे दिया है।
श्रीराम में करोड़ों भारतीयों की आस्था है। हमारे रोम-रोम में राम बसे हुए हैं। उनका जन्म अयोध्या में हुआ यह बात भी प्रमाणित है। भारत की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्त पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांचु, अवंतिका (उज्जपिली) आैर द्वारका में शामिल किया गया है। अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है। इसकी सम्पन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। केपी शर्मा ओली चाहें तो स्कंदपुराण पढ़ सकते हैं। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़ सी गई थी लेकिन उस दौर में भी श्रीराम मंदिर का अस्तित्व सुरक्षित था जो लगभग 14वीं सदी तक बरकरार रहा। बेंटली और पार्जिटर जैसे विद्वानों ने ग्रह मंजरी आदि प्राचीन ग्रंथों के आधार पर इनकी स्थापना का काल ईसा पूर्व 2200 के आसपास माना। सूर्य वंश में राजा रामचन्द्र जी के पिता दशरथ 63वें शासक थे।
जिस शहर की विरासत इतनी समृद्ध हो, उसके बारे में कोई ज्ञान नहीं रखना और बिना तथ्यों के बयान देना ओली की बदहवासी का ही परिणाम है। नेपाल की जनता में भी ओली का समर्थन और सम्मान कम हुआ है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड ने स्पष्ट कर दिया है कि ओली का शासन असफल है और उन्हें प्रधानमंत्री पद पर रहने का कोई अधिकार ही नहीं है। प्रचंड समेत अन्य नेताओं ने ओली को हटाने का निर्णय ले लिया है और आने वाले दिनों में पार्टी की शीर्ष समिति इस निर्णय पर अपनी मुहर लगा सकती है। ओली इस समय चीन के सम्मोहन में बुरी तरह फंस चुके हैं। ऐसा लगता है कि शासन ओली नहीं बल्कि नेपाल में चीनी राजदूत होऊ यांगी चला रही है। कूटनीति के इतिहास में अनेक ऐसी सर्वगुण सम्पन्न महिलाओं का जिक्र है जिन्हें राजा-महाराजाओं के भेद जानने के लिए उपयोग किया जाता रहा है। चीन की राजदूत यांगी ने नेपालियों का दिल जीतने के लिए सौम्य कूटनीति अपनाई और अब वह नेपाल की आंतरिक राजनीति में दखल देने लगी है। अब नेपाल की जनता और अन्य दल भी उनका विरोध करने लगे हैं उनके खिलाफ प्रदर्शन भी होने लगे हैं।
ओली काे यह भूलना नहीं चाहिए कि प्राचीन काल से ही भारत और नेपाल के गहरे संबंध रहे हैं, सांस्कृतिक, सामाजिक और भावनात्मक संबंधों को क्षणिक राजनीतिक लाभ के लिए संकट में डालना, बुद्धिमता का उदाहरण नहीं। अपनी कुर्सी बचाने के लिए श्रीराम को नेपाल का बताने से उन्हें ही नुक्सान होगा। ओली की विदाई नेपाल के ही पक्ष में है। नेपाल को याद रखना होगा कि उसके विकास का रास्ता भारत के साथ संबंधों से बनेगा। चीन की गोद में बैठना उसके लिए नुक्सानदेह होगा। क्योंकि चीन और नेपाल की संस्कृति में कोई मेल ही नहीं है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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