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कर्नाटक का ताज किसके सिर?

कर्नाटक में शानदार चुनावी जीत के बाद कांग्रेस पार्टी को अब राज्य में नये मुख्यमन्त्री के नाम का चयन करना है। यह कार्य इतना सरल दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि राज्य से भाजपा का तख्तापलट करने में जिन दो प्रादेशिक नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है उनमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री डी.के. शिवकुमार व पूर्व मुख्यमन्त्री श्री सिद्धारमैया के नाम सबसे ऊपर माने जा रहे हैं। चुनावी जीत में पार्टी संगठन से लेकर लोकप्रिय नेतृत्व की भूमिका ही प्रमुख रहती है। इस लिहाज से देखा जाये तो श्री शिवकुमार व सिद्धारमैया दोनों की ही मुख्यमन्त्री पद के लिए की जा रही दावेदारी में कोई गलत बात नहीं है। मगर इन्हीं दोनों ने राज्य में मतदान होने से पहले ही साफ कर दिया था कि वे चुनाव में कांग्रेस के विजयी होने की स्थिति में मुख्यमन्त्री बनना चाहेंगे। अतः इस विषय से कांग्रेस आलाकमान पहले से ही परिचित था। इससे यह अऩुमान लगाया जा सकता है कि पार्टी आलाकमान ने इस पहेली को सुलझाने के लिए भी कोई फार्मूला पहले से ही तैयार कर रखा होगा। राज्य के चुनावी वातावरण को देखकर प्रत्येक चुनावी विशेषज्ञ पहले से ही यह अनुमान लगा चुका था कि इस बार राज्य की जनता सत्ता पलट करने जा रही है, इसलिए इसका अनुमान आलाकमान को न हो ऐसा नहीं माना जा सकता। इसकी एक वजह और भी है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे स्वयं कर्नाटक  के हैं और प्रदेश की राजनीति करने का अनुभव उन्हें 40 साल से भी अधिक का रहा है। अतः वह बैंगलुरू की मिट्टी सूंघ कर ही बता सकते थे कि चुनाव में हवा किस तरफ बहेगी। वह इतने अनुभवी राजनीतिज्ञ माने जाते हैं कि कर्नाटक की जनता के मन की इच्छा का अनुमान भी भलीभांति लगा सकते हैं और अपने पार्टी  कार्यकर्ताओं की हसरतों का भी। 

श्री खड़गे जानते हैं कि राज्य में आज के समय में श्री सिद्धारमैया से बड़ा लोकप्रिय नेता कोई नहीं है। राजनीति के दांव-पेंचों में भी उनसे बड़ा खिलाड़ी कोई दूसरा नहीं माना जाता है। बेशक डी.के. शिवकुमार वर्तमान दौर की ‘जमा-जोड़’ राजनीति के दांव-पेंचों को जमाने में सिद्धहस्त माने जाते हों, आम जनता के बीच समग्र रूप में स्वीकार्य श्री सिद्धारमैया ही माने जाते हैं। उनका समाज के सभी सम्प्रदायों व वर्गों में एक समान रूप से सम्मान है और उनकी राजनैतिक चादर पर कोई दाग भी नहीं है। गौर से देखा जाये तो वह जमीनी नेता माने जाते हैं। कांग्रेस को आज के दौर में ऐसे नेताओं की सख्त जरूरत है जिनकी जमीनी राजनीति पर गहरी पकड़ हो। जहां तक श्री शिवकुमार का सम्बन्ध है तो वह भी पार्टी के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि संगठन को सत्ता में रहते हुए भी लगातार जीवन्त बनाये रखने की जिम्मेदारी भी कोई छोटी जिम्मेदारी नहीं होती। कांग्रेस ने राज्य में ऐतिहासिक चुनावी सफलता प्राप्त की है और 1989 के बाद से अब तक का सबसे बड़ा जनसमर्थन 43 प्रतिशत मतों से अधिक का प्राप्त किया है। यह मत प्रतिशत भाजपा द्वारा प्राप्त 36 प्रतिशत मतों से सात प्रतिशत अधिक है। 

जाहिर है कि राज्य के लोगों के सामने 2013 से 2018 तक श्री सिद्धारमैया के नेतृत्व में चली कांग्रेस सरकार का उदाहरण भी सामने देखा था जिसे देख कर उन्होंने 2019 से 2023 तक चली भाजपा सरकारों की तुलना की होगी। अतः श्री सिद्धारमैया कर्नाटक की जनता के दिमाग में वोट डालते समय कहीं न कहीं जरूर रहे होंगे। उनकी सरकार पूरी तरह भ्रष्टाचार मुक्त थी और खुद उनका जीवन एक खुली किताब थी। कांग्रेस ने यह चुनाव  अमीर-गरीब का विमर्श खड़ा करके जीता है और जनता के समक्ष संशोधनवादी समाजवाद की वे नीतियां खड़ा करके जीता है जिन्हें लोक कल्याणकारी राज का अंग माना जाता है। इस परिभाषा में सिद्धारमैया स्वतः समाते नजर आते हैं। फिर भी मुख्यमन्त्री चुने जाने की संसदीय लोकतन्त्र में एक प्रणाली होती है जिसमें चुने हुए विधायकों की राय से ही उनका नेता चुना जाता है और फिर वही मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बैठता है। कांग्रेस पार्टी के भीतर लोकतान्त्रिक परंपराएं बहुत पुरानी हैं और यह उन्हीं पर आज भी चलना पसन्द करती है क्योंकि स्व. इंदिरा गांधी के कांग्रेस दौर में यह देख चुकी है कि मुख्यमन्त्री बिना विधायकों की मर्जी जाने बिना ‘नियुक्त’ करने का क्या हश्र होता है। अतः कांग्रेस विधायक दल की बैठक में इसके नेता का चयन करने के बाद ही नये मुख्यमन्त्री की घोषणा करेंगी और इसमें एक-दो दिन का समय लगना स्वाभाविक माना जा रहा है।